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महाराष्ट्र: ₹10 खर्च करने पर बच्ची का प्राइवेट पार्ट जलाने वाली महिला को बॉम्बे HC से मिली जमानत

आरोपी वंदना काले को जमानत देते हुए जस्टिस शिवकुमार डिगे की बेंच ने कहा, "आवेदक चार साल और 6 महीने से ज्यादा वक्त से सलाखों के पीछे है, फिर भी मुकदमे में कोई प्रगति नहीं हुई है. कारावास अवधि को देखते हुए, उसे और हिरासत में रखने की जरूरत नहीं है."

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बॉम्बे हाईकोर्ट (फाइल फोटो)
बॉम्बे हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में एक महिला को जमानत दे दी, जिस पर अपनी सात साल की भतीजी को चॉकलेट खरीदने पर 10 रुपये खर्च करने के कारण गंभीर रूप से जलाने का आरोप था. आरोपी वंदना काले को जमानत देते हुए जस्टिस शिवकुमार डिगे की बेंच ने कहा, "आवेदक चार साल और 6 महीने से ज्यादा वक्त से सलाखों के पीछे है, फिर भी मुकदमे में कोई प्रगति नहीं हुई है. वह अपनी सात साल की बेटी के साथ जेल में है. आवेदक की कारावास अवधि को देखते हुए, उसे और हिरासत में रखने की जरूरत नहीं है."

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यह मामला 2020 का है, जब वंदना काले को भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या की कोशिश) और 506 (2) (आपराधिक धमकी) के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था. 

महिला पर क्या आरोप लगे थे?

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि वंदना ने 28 सितंबर, 2020 को अपनी भतीजी को चिकन खरीदने के लिए 50 रुपए दिए थे. बच्ची के लौटने पर पता चला कि उसने 10 रुपए का इस्तेमाल चॉकलेट खरीदने में किया था, जिससे कथित तौर पर वंदना नाराज हो गईं थी.

आरोप है कि उसने बच्ची के हाथ-पैर बांध दिए, उसके मुंह में रूमाल ठूंस दिया और उसके प्राइवेट पार्ट और जांघों को गर्म चम्मच और लोहे से जला दिया. बच्ची अपनी मौसी के साथ रहती थी क्योंकि उसकी मां की मौत हो चुकी है और उसका पिता शराबी था, जो उसकी देखभाल नहीं करता था. 

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एक पड़ोसी ने बच्ची के अन्य रिश्तेदारों को बताया कि वह गंभीर चोटों की वजह से चलने नहीं पा रही है, जिसके बाद मामला दर्ज किया गया.

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जमानत के विरोध में क्या दलील दी गई?

सरकारी वकील ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया, "आवेदक द्वारा सात साल की बच्चे के साथ किया गया क्रूर व्यवहार चिकित्सा साक्ष्य के जरिए साबित होता है. अगर उसे रिहा किया जाता है, तो वह पीड़िता और अभियोजन पक्ष के गवाहों को धमका सकती है." 

आरोपी वंदना ने मुंबई के डिंडोशी सेशन कोर्ट में चार जमानत याचिकाएं दायर की थी, जहां नाबालिग के हलफनामे में भी दावा किया गया था कि पूरा अभियोजन मामला गलतफ़हमी के कारण था. हालांकि, निचली अदालत ने इतनी छोटी बात पर इस तरह के जघन्य अपराध को किए जाने पर उसके आवेदनों को खारिज कर दिया था.

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