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बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट को दी सलाह, बच्चे की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बदला जा सकता है कस्टडी का फैसला

बच्चे की कस्टडी को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के निर्देशित किया है. कोर्ट ने कहा कि बच्चों के भविष्य में होने वाले उनके विकास, जरूरत और कल्याण के लिए जरूरी है कि कस्टडी का फैसला कभी भी बदला जा सकता है. मामला एक तलाकशुद दंपती से जुड़ा था, जिसमें पिता ने पूर्वपत्नी के विवाह के बाद संतान की कस्टडी मांगी है.

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बॉम्बे हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
बॉम्बे हाई कोर्ट (फाइल फोटो)

मां-बाप के अलगाव के बाद, बच्चे की कस्टडी को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम बात कही है. कोर्ट ने कहा, बच्चे की कस्टडी को लेकर सख्त रुख नहीं अपनाया जा सकता है. समय बीतने पर बच्चों की जरूरत और उनके विकास-कल्याण को ध्यान में रखते हुए फैसला बदला भी जा सकता है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को आदेश दिए हैं कि वह इससे जुड़े एक मामले में याचिका कर्ता की ओर से दिए गए आवेदन पर फिर से सुनवाई करे. 

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40 साल के व्यक्ति ने लगाई थी याचिका
असल में ये याचिका 40 साल के एक व्यक्ति की ओर से दायर की गई थी, जिसमें  उसने पूर्व पत्नी के पुनर्विवाह के बाद अपने नाबालिग बेटे के कानूनी अभिभावक होने की मांग की थी. न्यायमूर्ति नीला गोखले की एकल पीठ ने गुरुवार यानी 4 मई को दिए आदेश में कहा कि बच्चों की कस्टडी एक संवेदनशील मुद्दा है. जीवन के बढ़ते चरणों में बच्चों को देखभाल, सराहना और स्नेह चाहिए होता है.

फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती
न्यायमूर्ति गोखले की पीठ उस व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें परिवार न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी. इस आदेश में हिंदू मैरिज एक्ट के तहत दायर किए गए याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया गया था. अदालत में, बेंगलुरु के पते पर नोटिस भेजे जाने के बावजूद पूर्व पत्नी अदालत में पेश ही नहीं हुई और साथ ही जवाब भी दाखिल नहीं किया गया.

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ये है मामला
मामला कुछ यूं है कि 3 जुलाई 2017 को दंपती ने तलाक की अर्जी दी थी. छह माह के दिए गए समय के बाद दिसंबर 2017 में दोनों के बीच तलाक हो गया था. इस दौरान की सहमति की शर्तों के अनुसार, यह तय किया गया था कि उनका बेटा दोनों की संयुक्त हिरासत में रहेगा. दंपति के बीच इस बात पर भी सहमति बनी थी कि यदि याचिकाकर्ताओं में से कोई एक फिर से शादी करता है, तो वह बेटे की कस्टडी दूसरे याचिकाकर्ता को सौंप देगा जिसने शादी नहीं की है. 

बच्चे के पिता ने की ये मांग
नाबालिग बच्चे की फिजिकल कस्टडी पति के पास थी. पति का तर्क है कि उसकी पत्नी ने दूसरी शादी कर ली है और अब अपने पति के साथ रह रही है. शख्स के मुताबिक, 2017 में तलाक की कार्यवाही में दाखिल सहमति की शर्तों में उसने और उसकी पूर्व पत्नी ने इस बात पर सहमति जताई थी कि अगर दोनों में से एक ने दोबारा शादी की तो दूसरे को बच्चे की पूरी कस्टडी मिलेगी. फैमिली कोर्ट ने हालांकि उस व्यक्ति के आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि उसे गार्जियन एंड वार्ड एक्ट के प्रावधानों के तहत दायर करना चाहिए था न कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत.

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हाईकोर्ट ने रद्द किया फैमिली कोर्ट का आदेश
व्यक्ति ने अपनी दलील में कहा कि वह केवल तलाक की कार्यवाही में दायर सहमति शर्तों में संशोधन की मांग कर रहा था. हाईकोर्ट ने परिवार अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और नाबालिग बच्चे की हिरासत से संबंधित सहमति शर्तों में संशोधन की मांग करने वाले व्यक्ति के आवेदन पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया. न्यायमूर्ति गोखले ने अपने आदेश में कहा कि पारिवारिक अदालत का दृष्टिकोण "बहुत अधिक तकनीकी" था. 

इसने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट का यह मानना ​​सही था कि पिता को बच्चे के कानूनी अभिभावक के रूप में अपनी नियुक्ति के लिए गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट के तहत एक याचिका दायर करनी चाहिए थी, लेकिन हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक आवेदन पिता द्वारा दायर किया गया था जिसमें संशोधन की मांग की गई थी. पहले का आदेश भी "पूरी तरह से मान्य" था.

 

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