scorecardresearch
 

जाट रेजिमेंट, गढ़वाल राइफल्स और जम्मू-कश्मीर का दस्ता... इन जवानों ने बढ़ाई परेड की शान

भारत अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. कर्तव्यपथ पर हिंदुस्तान की ताकत देखकर हर भारतवासी रोमांचित दिखा. परेड के दौरान जांबाजों की कदमताल ने हर किसी की धड़कनों को तेज किया. ऐसे में आइए आपको बताते हैं इस परेड में शामिल उन रेजिमेंट के बारे में जिनके पराक्रम ने देश की मजबूती को और पुख्ता किया है.

Advertisement
X
परेड में जवानों के कदमताल ने बढ़ाई धड़कन.
परेड में जवानों के कदमताल ने बढ़ाई धड़कन.

भारत अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. कर्तव्यपथ पर हिंदुस्तान की ताकत देखकर हर भारतवासी रोमांचित दिखा. परेड के दौरान जांबाजों की कदमताल ने हर किसी की धड़कनों को तेज किया. ऐसे में आइए आपको बताते हैं इस परेड में शामिल उन रेजिमेंट के बारे में जिनके पराक्रम ने देश की मजबूती को और पुख्ता किया है...
 
ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स...

Advertisement

लाल रंग की वर्दी में ब्रिगेड ऑफ गार्डस के जवानों का उत्साह देखते ही बना. इस दस्ते का नेतृत्व 19 गार्ड्स के कैप्टन रविंद्र भारद्वाज ने किया. इस रेजिमेंट को भारतीय सेना की पहली अखिल भारतीय ऑल क्लॉस रेजिमेंट होने का सम्मान प्राप्त है. इन्होंने स्वतंत्रता से पूर्व और बाद के सभी संघर्षों में योगदान दिया है. रेजिमेंट के नायक जदुनाथ सिंह और लांस नायक अलबर्ट एक्का को दुश्मन के समक्ष सर्वोच्च बलिदान के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. 

जाट रेजिमेंट

कर्तव्य पथ पर वीरता की मिसाल कायम करने वाले जाट रेजिमेंट का भी जलवा दिखा. दो सौ वर्षों के गौरवशाली इतिहास की साक्षी जाट रेजिमेंट के इस दस्ते की कमान कैप्टन अजय सिंह गरसा के हाथों में रही. जाट रेजिमेंट का गठन कलकता मिलिशिया के नाम से 1795 में हुआ और 1859 में यह नियमित इंफैंट्री बटालियन में तब्दील हो गई. इन्होंने प्रथम और द्वितीय दोनों विश्व दोनों युद्धों में अपनी शूरवीरता का परचम दिखाकर फ्रांस, मेसोपोटेमिया, बर्मा और उत्तरी अफ्रीका के युद्धों में सक्रिय योगदान दिया. 

Advertisement

गढ़वाल राइफल्स

कर्तव्य पथ पर सधी कदमताल से आगे बढ़ता गढ़वाल राइफल्स का भी दस्ता दिखा. इसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट रोहित लक्षमण कुडाचे ने किया.भारतीय सेना की 136 वर्ष पुरानी रेजिमेंट में गढ़वाल मंडल के पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, देहरादून, उत्तरकाशी यानी सात जिलों के जवानों का प्रतिनिधित्व है. प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में सभी दुर्गम और जटिल युद्ध क्षेत्रों में अपने शौर्य के जौहर दिखाने के फलस्वरूप रेजिमेंट के जवानों को कई युद्ध सम्मान मिले हैं, जिसमें 3 विक्टोरिया क्रॉस हासिल हुए. इनका युद्ध घोष है 'बदरी विशाल लाल की जय' है.

यह भी पढ़ें: इरविन एम्फीथिएटर में मना था भारत के पहले गणतंत्र दिवस का जश्न, 100 लड़ाकू विमान, 3 हजार जवानों ने की थी परेड

महार रेजिमेंट

महार रेजिमेंट का नेतृत्व कैप्टन अमन कुमार सिंह ने किया. डॉ भीमराव अम्बेडकर के अथक प्रयासों के फलस्वरूप बेलगाम में 1 अक्टूबर 1941 को महार रेजिमेंट का गठन हुआ. रेजिमेंट ने अपने गठन के बाद से कई ऑपरेशनों में भाग लिया है और राहत अभियान, राष्ट्र निर्माण और खेलों में भी अपनी योग्यता साबित की है. यह रेजिमेंट अब 21 नियमित इंफैंट्री बटालियन्स, तीन प्रादेशिक बटालियन्स, तीन राष्ट्रीय राइफल्स और एक टास्क फोंस के साथ मिलकर विस्तार ले चुकी है. इनका युद्धघोष है: बोलो हिंदुस्तान की जय

Advertisement

जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स का मार्चिंग दस्ता

कर्तव्य पथ पर जम्मू-कश्मीर राइफल्स की टुकड़ी बड़े शान से आगे बढ़ती दिखी. इस दस्ते का नेतृत्व जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स की 18वीं बटालियन के मेजर बिक्रमजीत सिंह ने किया. यह रेजिमेंट डोगरा राज्य के महाराजा गुलाब सिंह द्वारा राज्य बलों के तौर पर सन् 1820 में गठित की गई थी. 15 जनवरी 1957 को यह रेजिमेंट भारतीय सेना के साथ मिला दी गई और अब इसे जम्मू एवं कश्मीर रेजिमेंट के नाम से जाना जाने लगा. फरवरी 1963 में इस रेजिमेंट को जम्मू एवं कश्मीर राइफल्स के तौर पर पुनः नामित किया गया. इनका युद्ध घोष है- दुर्गा माता की जय.

Live TV

Advertisement
Advertisement