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लाइफ, लीडरशिप और 70 घंटे काम... गौर गोपालदास ने बताया कॉर्पोरेट लाइफ का सक्सेस फंडा

आध्यात्मिक गुरु गौर गोपाल दास ने कहा कि केवल रणनीति बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि उसे लागू करने के लिए सही दृष्टिकोण भी उतना ही जरूरी है. "आपके पास सबसे अच्छी रणनीति हो सकती है, लेकिन अगर आपके पास आंतरिक शक्ति, धैर्य और मानसिक लचीलापन नहीं है, तो उसका कोई फायदा नहीं.

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आध्यात्मिक गुरु और मोटिवेशनल स्पीकर गौर गोपालदास
आध्यात्मिक गुरु और मोटिवेशनल स्पीकर गौर गोपालदास

बिजनेस टुडे के खास कार्यक्रम बीटी माइंडरश का आयोजन शनिवार को हुआ. इस मौके पर विशेष सत्र में आध्यात्मिक गुरु और मोटिवेशनल स्पीकर गौर गोपाल दास ने हिस्सा लिया. "द आर्ट एंड साइंस ऑफ माइंड मैनेजमेंट" नामक सत्र में उन्होंने मन की शांति, जीवन के नजरिए और रणनीति जैसे गहन विषयों पर अपने विचार साझा किए.

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गौर गोपाल दास ने अपने संबोधन में कहा, "हमारे सभी निर्णय, चाहे वे व्यावसायिक हों या व्यक्तिगत, हमारे मन की शांति और स्पष्टता पर निर्भर करते हैं. जिस तरह एक झील का पानी अगर बुलबुलों से भरा हुआ हो तो उसका तल दिखाई नहीं देता, वैसे ही मन की अशांति हमें सही रास्ता देखने से रोकती है. जब मन शांत होता है, तभी हम सही निर्णय ले सकते हैं." उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मन को स्थिर रखना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यह बेहद जरूरी भी है.

कैसे अलग-अलग तत्वों से प्रभावित होते हैं हमारे फैसले?
उन्होंने आज की दुनिया को 'वुका' (VUCA) यानी अस्थिर, अनिश्चित, जटिल और अस्पष्ट बताते हुए कहा कि इस दौर में मानसिक और भावनात्मक मजबूती का होना अनिवार्य है. उन्होंने आगे कहा, "आज का वैश्विक अर्थतंत्र इतना जटिल है कि कई परस्पर जुड़े हुए तत्व हमारे निर्णयों को प्रभावित करते हैं. बाजार की स्थिति, वित्तीय उतार-चढ़ाव और अनिश्चितता के बीच सही रास्ता चुनने के लिए मन का स्थिर होना बेहद जरूरी है." इस संदर्भ में उन्होंने यह भी बताया कि आज की दुनिया में तेजी से बदलते हालात और अप्रत्याशित परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाने के लिए मानसिक लचीलापन एक महत्वपूर्ण गुण है.

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रणनीति बनाना ही जरूरी नहीं
गौर गोपाल दास ने यह भी कहा कि केवल रणनीति बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि उसे लागू करने के लिए सही दृष्टिकोण भी उतना ही जरूरी है. "आपके पास सबसे अच्छी रणनीति हो सकती है, लेकिन अगर आपके पास आंतरिक शक्ति, धैर्य और मानसिक लचीलापन नहीं है, तो उसका कोई फायदा नहीं. यह न सिर्फ नेताओं के लिए, बल्कि उनके साथ काम करने वाली पूरी टीम के लिए भी जरूरी है." उन्होंने नेतृत्व और टीमवर्क के संदर्भ में यह संदेश दिया कि एक स्थिर और संतुलित मन ही सफलता की कुंजी है.

उन्होंने इस बात पर बल दिया कि दुनिया को संभालने से पहले अपने मन को संभालना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. "रणनीति और दृष्टिकोण दोनों का आधार हमारा मन है. अगर हम अपने भीतर की शक्ति को जगा सकें, तो बाहर की हर चुनौती से निपटना आसान हो जाता है." इस प्रेरक संदेश के साथ उन्होंने उपस्थित लोगों को जीवन में संतुलन और शांति की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.

70 घंटे और कॉर्पोरेट लाइफ के बीच संतुलन
इसी दौरान बातचीत के बढ़ते हुए क्रम में, गौर गोपाल दास ने कॉर्पोरेट जगत में काम के घंटों और संतुलन के मुद्दे पर अपनी राय रखी. इस सत्र में उनसे पूछा गया कि क्या भारत को वर्ल्ड लीडर बनने के लिए 70-90 घंटे प्रति सप्ताह काम करना जरूरी है, जैसा कि कुछ कॉर्पोरेट्स का मानना है. इस बहस में उनकी स्थिति क्या होगी?

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गौर गोपाल दास ने जवाब में एक मजेदार हिंदी कविता सुनाई:
"परेशान थी पप्पू की वाइफ, क्योंकि नॉन-हैपनिंग थी उसकी लाइफ.
पप्पू करता था दिन भर काम ही काम, उसको कभी भी नहीं मिलता था आराम.
पप्पू के बॉस भी थे बड़े ही कूल, प्रमोशन को हर बार conveniently जाते थे भूल.
काम तो करवाते थे अप टिल नाइन, कभी नहीं भूलते थे वो डेडलाइन.
पप्पू भी बनना चाहता था बेस्ट, इसलिए वो नहीं करता था रेस्ट.
एक दिन पप्पू को समझ आया, और छोड़ दी उसने प्रमोशन की माया.
बॉस को बोला, यूँ क्यों सताते हो? अप्रेजल का लड्डू दिखाकर उल्लू क्यों बनाते हो?
बॉस हंसकर बोले, कोई नहीं कोई बात, अभी और भी पप्पू हैं मेरे पास."  

'अगर कोई चाहे तो 24 घंटे काम करे'
इस कविता के जरिए उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में कॉर्पोरेट दबाव और बर्नआउट की समस्या को उजागर किया. इसके बाद उन्होंने गंभीरता से कहा, "अगर कोई दिन-रात, 24 घंटे काम करना चाहता है और उसमें उसे खुशी मिलती है, तो मैं उसे रोकने वाला कौन होता हूँ? हम एक आजाद दुनिया में रहते हैं, जहाँ हर किसी को अपनी सोच और मेहनत की आजादी है. लेकिन अगर इस विचारधारा को सब पर थोप दिया जाए, तो यह उन लोगों के लिए बर्नआउट का कारण बन सकता है जिन्हें हम नेतृत्व करते हैं."

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क्या है सर्वेंट लीडरशिप?
उन्होंने 'सर्वेंट लीडरशिप' का जिक्र करते हुए कहा कि एक नेता का पहला कर्तव्य अपनी टीम के कल्याण की चिंता करना है. "कल्याण का मतलब सिर्फ पेशेवर और आर्थिक सफलता नहीं, बल्कि मानसिक, भावनात्मक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य भी है. आज लोग पेशेवर रूप से कुशल हैं, लेकिन वे पेशेवर रूप से स्वस्थ नहीं हैं." उन्होंने सवाल उठाया कि क्या हर इंसान में इतने लंबे समय तक काम करने की क्षमता होती है? "हर इंसान की अपनी सीमा होती है. शरीर और मन को आराम की जरूरत होती है. बिना आराम के उत्पादकता, दक्षता और प्रभावशीलता कम हो जाती है."

उन्होंने सलाह दी कि दुनिया की राय से प्रभावित होने के बजाय अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनें. एक मछली बेचने वाले की कहानी सुनाते हुए उन्होंने कहा कि अगर हर किसी की बात मानते रहे, तो हमारा अपना अस्तित्व खत्म हो जाएगा. "70 घंटे काम करें या 17 घंटे, यह मायने नहीं रखता. मायने रखता है कि आप अपने लिए सही संतुलन खोजें." 

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