
दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) में 2013 से 2019 के बीच ऐसी स्थिति भी आई कि इंडियन पीनल कोड (IPC) के तहत रजिस्टर्ड अपराधों में 275% का इजाफा तक हो गया था. जघन्य अपराधों में वृद्धि और पुलिस के पास मानव संसाधन की कमी ने अपराधों की जांच को प्रभावित किया है, साथ ही अपराधियों को कानून के अंजाम तक पहुंचाने के काम में बाधा पहुंचाई है. आधे से अधिक मोबाइल पैट्रोल वैन्स में बंदूकधारी नहीं हैं.
पुलिस की ओर से इस्तेमाल किए जाने वाला कम्युनिकेशन सिस्टम 20 साल पुराना पड़ चुका है. एंटी टेरर यूनिट के पास पर्याप्त हथियार, गोला-बारूद और बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं हैं और SWAT (स्पेशल वेपन्स एंड टैक्टिक्स) टीमें घटी हुई क्षमता के साथ काम कर रही हैं.
ये कुछ निष्कर्ष दिल्ली पुलिस में मैनपावर और लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट पर परफॉर्मेंस ऑडिट रिपोर्ट के हैं. इस रिपोर्ट को नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने बुधवार को संसद में पेश किया.
ऑडिट रिपोर्ट में जो कहा गया है वो राष्ट्रीय राजधानी में रहने वाले लोगों के बीच असुरक्षा की भावना को एक तरह से गहराने वाला है, क्योंकि यह जाहिर करता है कि बढ़ती चुनौतियों के बीच पुलिस फोर्स को कैसे मैनपॉवर, बुनियादी ढांचे और बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है.
ऑडिट रिपोर्ट में मुख्य रूप से लॉ एंड ऑर्डर पुलिस (टेरिटोरियल पुलिस डिस्ट्रिक्ट्स), सिक्योरिटी यूनिट, पुलिस कंट्रोल रूम (PCR), ऑपरेशंस एंड कम्युनिकेशंस, स्पेशल सेल, प्रोविजन एंड लॉजिस्टिक्स, आईटी सेल और पुलिस हेड क्वार्टर (PHQ) को कवर किया गया है. रिपोर्ट के आकलन की अवधि छह साल, यानि 2013-14 से 2018-19 तक है.
दिल्ली के NCR में अपराध
कैग रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) में आईपीसी के तहत 2019 तक दर्ज अपराध की घटनाओं में 2013 की तुलना में एक बार 275% तक का इजाफा हो गया था.
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 से 2019 के बीच दिल्ली में दर्ज किए गए जघन्य अपराधों की संख्या 4,159 से बढ़कर 5,185 (2019 में) हो गई. दिलचस्प बात यह है कि 2015 की तुलना में ऑडिट में अपराध की दर 2019 में कम होना इंगित किया गया है. 2013 में रजिस्टर्ड 4,159 जघन्य अपराधों की तुलना में 2015 में ये 11,187 हो गए थे.
पुलिस इस बढ़ोतरी के लिए अपराधों की व्यापक रिपोर्टिंग ("अन्य चोरी" और "वाहन चोरी") को वजह बताती है. साथ ही e-FIR दर्ज कराने के लिए बेहतर FIR सुविधा को भी गिनाती है.
पुलिस मामलों के एक विशेषज्ञ ने हालांकि कहा, "रिपोर्ट के निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि 2015-2019 के दौरान दर्ज अपराधों में लगातार कमी आई है. क्या इसे एक पॉजिटिव ट्रेंड माना जाए या अपराधों के रजिस्ट्रेशन में कमी आई है.
दिल्ली पुलिस में मैनपॉवर की स्थिति
कैग ऑडिट में दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली को मैनपावर की कमी से गंभीर रूप से प्रभावित पाया गया. गृह मंत्रालय या MHA ने पहले चरण में 3139 पोस्ट्स को ऑपरेशनल करने की सलाह के साथ कुल 12,518 पोस्ट्स को मंजूरी दी थी. साथ ही कहा था कि इन 3,139 पोस्ट्स पर जमीनी तैनाती पूरी हो जाने के बाद बाक़ी 9379 पोस्ट्स पर भर्ती की जाए.
ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि 3,139 पुरुषों की भर्ती के पहले दौर के बाद, दिल्ली पुलिस ने अगस्त 2020 तक बाकी 9,379 स्वीकृत पोस्ट्स को ऑपरेशनलाइज नहीं किया.
बुनियादी ढांचा पर्याप्त नहीं
अगर दिल्ली को महिलाओं के लिए असुरक्षित जैसा टैग दिया जाता है, तो ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि दिल्ली पुलिस में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 11.75% था, जो कि निर्धारित लक्ष्य 33% से काफी कम है.
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस पीसीआर वैन और मोबाइल पैट्रोल वैन (MPVs) केवल 4,144 पुलिस कर्मियों के साथ काम कर रहे हैं जबकि 6,171 कर्मियों की आवश्यकता है. रिपोर्ट में इस तथ्य पर हैरानी जताई गई है कि 55% एमपीवी बिना बंदूकधारी के ऑपरेट कर रही हैं.
पुराना पड़ चुका कम्युनिकेशन सिस्टम
ऑडिट में पाया गया कि राष्ट्रीय राजधानी में दिल्ली पुलिस की ओर से 20 साल पुराने ट्रंकिंग सिस्टम (APCO) का इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि अपनी सामान्य निर्धारित अवधि से पहले ही 10 साल ऊपर हो चुका है. रिपोर्ट में ऑब्जर्व किया गया है कि यह देखता है कि इन कम्युनिकेशन सेट्स के अपग्रेडेशन के प्रस्तावों को एक दशक पहले शुरू किया गया था, लेकिन आज की तारीख तक टेंडर्स को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका.
यही काफी नहीं है. तुरंत रिस्पॉन्स और समन्वय के लिए वायरलेस सेट की दक्षता सबसे अहम होती है. हालांकि ऑडिट में पाया गया कि आबादी के बेतहाशा बढ़ने और चुनौतियों का स्तर कहीं ऊंचा होने के बावजूद दिल्ली पुलिस के साथ पारंपरिक प्रणाली के वायरलेस सेट्स की संख्या में गिरावट आई है.
अगर जून 1999 में जून दिल्ली पुलिस के पास 9,638 वायरलेस सेट थे तो 2019 में उनकी संख्या घटकर 6,172 हो गई. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस अवधि में खारिज किए गए करीब 3,000 सेट्स की जगह नए सेट्स नहीं लाए गए.
निर्भया केस के बाद केंद्र और दिल्ली सरकार ने दिल्ली के चप्पे-चप्पे को सीसीटीवी कैमरों से कवर करने का वादा किया था. दिल्ली पुलिस ने रणनीतिक स्थानों पर पूरी दिल्ली में 3,870 सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं. लेकिन इनमें से अधिकतर कैमरे काम नहीं करते हैं.
44 फीसदी CCTV खराब
ऑडिट में पाया गया कि पायलट फेज में 31% सीसीटीवी कैमरे पूरी तरह से खराब हो चुके हैं. अन्य फेज में स्थापित 44% के आसपास सीसीटीवी निष्क्रिय हैं.
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों से निपटने के लिए दिल्ली पुलिस ने फरवरी 2018 में हिम्मत प्लस मोबाइल ऐप लॉन्च किया था. यह पहले लॉन्च किए गए हिम्मत ऐप का उन्नत संस्करण था.
दिल्ली पुलिस ने हिम्मत प्लस के विकास पर 18.5 लाख रुपये खर्च किए. हैरानी की बात ये है कि इस हिम्मत और हिम्मत प्लस ऐप के प्रचार पर ही 6.82 करोड़ की मोटी रकम खर्च कर डाली गई. फिर भी यूजर्स का ऐप को लेकर रिस्पॉन्स अधिक उत्साह वाला नहीं रहा. हिम्मत/हिम्मत प्लस ऐप के शुरुआती 1.66 लाख इंस्टाल्स में से 1.32 लाख अनइंस्टॉल हो गए, इस तरह मई 2019 तक केवल 34,000 यूजर्स ही बचे रहे.
यह रिपोर्ट दिल्ली पुलिस के उन दावों में छेद करती है जो उभरती चुनौतियों का सामना करने की क्षमता के साथ आधुनिक फोर्स होने की बात करते हैं. कैग ऑडिट में आतंकवाद, दंगों, वीआईपी सुरक्षा और साइबर अपराधों से निपटने को लेकर फोर्स की क्षमता से जुड़ी खामियों की ओर भी इंगित किया गया.
रिपोर्ट ने दिल्ली पुलिस की प्रमुख काउंटर टेरर यूनिट ‘स्पेशल सेल’ की ओर से ऑपरेट रेंजस को वाहनों, बुलेटप्रूफ जैकेट्स जैसे सुरक्षात्मक उपकरणों, हथियारों और गोला-बारूद की उपलब्धता को लेकर जूझते हुए पाया. ये सभी त्वरित रियल टाइम रिस्पॉन्स के लिए अहम फैक्टर्स हैं.
SWAT यूनिट दिल्ली में आतंकवादियों, गैंगस्टर्स या राष्ट्र-विरोधी तत्वों के किसी भी हथियारों वाली गतिविधि पर रिस्पॉन्स देने वाली पहली यूनिट है. परफार्मेंस ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक इस यूनिट को बुलेटप्रूफ जैकेट के साथ-साथ स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग के पहलुओं में कम दक्षता के साथ काम करना पड़ रहा था. जबकि ये उनके समग्र विकास और तैयारियों के लिए बहुत जरूरी है.
इसी प्रकार स्पेशल सेल की साइबर क्राइम यूनिट इकाई के पास पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित और योग्य कर्मी नहीं हैं. जिससे साइबर संबंधित अपराधों को कुशलतापूर्वक हैंडल किया जा सके. यही वजह है कि साइबर क्राइम यूनिट के केसों का पर्याप्त निस्तारण नहीं हो पा रहा.
हालांकि दिल्ली पुलिस नियमित रूप से VVIPs और अन्य संरक्षित व्यक्तियों को प्रदान किए जाने वाले उत्साही सुरक्षा कवर के लिए जनता की नाराजगी का सामना करती है. लेकिन ऑडिट ने पाया कि सभी संरक्षित व्यक्तियों (पीपीएस) की सुरक्षा के लिए 3,896 पुलिस कर्मियों की आवश्यकता थी लेकिन इसकी तुलना में केवल 2,661 कर्मी ही सक्रिय ड्यूटी पर तैनात थे. इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में भी मैनपॉवर की 32% कमी है.
हैरान करने वाला एक तथ्य ये है कि दिल्ली पुलिस ऐसे 27 संरक्षित व्यक्तियों को 261 कर्मियों की ओर से सुरक्षा प्रदान करती पाई गई, जो दिल्ली में रहते भी नहीं हैं. मानदंडों के अनुसार, जहां ये संरक्षित व्यक्ति रहते हैं वहीं की संबंधित राज्य सरकारों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए.
सरकार विफल रही
पहले से ही दबाव में काम कर रहे पुलिस बल को पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं देने के तौर और देखभाल में सरकार विफल रही है. लगभग 80,000 पुलिस कर्मियों के लिए दिल्ली में केवल 15,360 क्वार्टर उपलब्ध हैं.इसका मतलब है कि दिल्ली पुलिस के 20% से भी कम कर्मियों को क्वार्टर उपलब्ध कराए गए हैं.
ऑडिट टीम ने 72 थानों के अपने निरीक्षण में पाया कि सिर्फ एक थाने में ही ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवेलपमेट (BPR&D) की ओर से निर्धारित मानदंडों के मुताबिक स्टाफ तैनात था. इन 72 थानों में देखा गया कि मैनपॉवर की 35% कमी थी.
रिपोर्ट में निष्कर्ष दिया गया कि कर्मचारियों की भारी कमी के कारण पुलिस बल भारी दबाव में है. छह टेस्ट-चेक किए गए पुलिस जिलों (मध्य, नई दिल्ली, दक्षिण, द्वारका, नॉर्थ ईस्ट और रोहिणी) में देखा गया कि पुलिसकर्मी 12 से 15 घंटे काम कर रहे हैं. जबकि मॉडल पुलिस एक्ट 2006 में यह अवधि 8 घंटे निर्धारित की गई है.
अगर दिल्ली के लोग पुलिस स्टेशन जाने के विचार से बचते हैं तो ऑडिट रिपोर्ट में इसके कारण भी गिनाए गए हैं. “कई पुलिस स्टेशनों में बैरक, कैंटीन/मेस, किचन, परेड/प्ले ग्राउंड जैसी सुविधाओं का अभाव है, जो तनाव घटाने के लिए जरूरी है. थानों में आने वाले नागरिकों के लिए स्वागत/प्रतीक्षा क्षेत्र, टॉयलेट्स, महिला हेल्प डेस्क आदि सुविधाएं आवश्यक मानकों से नीचे पाई गईं.”
कैग ऑडिट टीम ने पाया कि वाहनों की कमी है, जो पुलिस स्टेशनों में कानून और व्यवस्था की स्थितियों को लेकर फोर्स के रिस्पॉन्स को प्रभावित करती है.
पुलिस कंट्रोल रूम
दिल्ली के लोग भी दबाव में काम करने वाली दिल्ली पुलिस के लिए मुश्किलें बढ़ाते हैं.
ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक सेंट्रल पुलिस कंट्रोल रूम में कंप्यूटर एडेड डिस्पैच सिस्टम (PA-100 /ERSS-112) के जरिए डिस्ट्रेस कॉल प्राप्त होती हैं, जिनमें से बहुत सारी ब्लैंक कॉल होती हैं. रिपोर्ट कहती है, “बीते सालों में ब्लैंक कॉल का बढ़ना इमरजेंसी रिस्पांस सिस्टम के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाली बड़ी अड़चन है, जिसका संतोषजनक समाधान नहीं मिल सका है.”
‘सेफ एंड सिक्योर दिल्ली’(एक उद्यम-व्यापी डेटा इंटीग्रेशन और इंटेलिजेंस गैदरिंग प्रोजेक्ट) जिसे विश्व बैंक की ओर से 40 करोड़ फंडिंग के माध्यम से अमल में लाया जाना था. लेकिन कई बार की कोशिशों के बावजूद ये सिरे नहीं चढ़ सका क्योंकि दिल्ली पुलिस वेंडर्स को अंतिम रूप देने में नाकाम रही.