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दशकों से पदोन्नति की राह देख रहे हैं CAPF के अधिकारी, क्या है इसके पीछे की वजह? पढ़ें- इनसाइड स्टोरी

2006 के दौरान जब 6वें केंद्रीय वेतन आयोग ने आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, आईआरएमएस (रेलवे सेवा) आदि जैसी सभी संगठित समूह ए सेवाओं (ओजीएएस) के लिए गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन (एनएफएफयू) योजना शुरू की, तो कैडर अधिकारियों ने भी इसकी मांग की, लेकिन सीएपीएफ को संगठित समूह ए सेवा के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया गया. 

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

पांच केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल/सीएपीएफ (अर्धसैनिक बल) यानी बीएसएफ, सीआरपीएफ, एसएसबी, सीआईएसएफ और आईटीबीपी गृह मंत्रालय के तत्वावधान में देश की सेवा करते हैं. इन बलों के समूह ए अधिकारियों की सेवाएं 1986 से संगठित हैं, लेकिन इन बलों को उनका लाभ नहीं दिया जा रहा है. 2006 के दौरान जब 6वें केंद्रीय वेतन आयोग ने आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, आईआरएमएस (रेलवे सेवा) आदि जैसी सभी संगठित समूह ए सेवाओं (ओजीएएस) के लिए गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन (एनएफएफयू) योजना शुरू की, तो कैडर अधिकारियों ने भी इसकी मांग की, लेकिन सीएपीएफ को संगठित समूह ए सेवा के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया गया. 

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दिल्ली HC के फैसले को SC में दी गई थी चुनौती 
इसके बाद CAPF अधिकारियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसला दिनांक 3 सितंबर 2015 में इन सीएपीएफ को 1986 से संगठित समूह ए सेवा घोषित किया. दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी. सर्वोच्च न्यायालय ने 5 फरवरी, 2019 के अपने फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 जुलाई 2019 को यह घोषणा करते हुए मंजूरी दे दी कि सीएपीएफ संगठित समूह 'ए' सेवा है और इसलिए इसके लिए पात्र हैं अतः एनएफएफयू योजना के परिणामी लाभ इन्हें दिए जाएं.

उसी निर्णय के आधार पर जिसमें रेलवे सुरक्षा बल (RPF) भी CAPFs के साथ न्यायालय में एक सह-याचिकाकर्ता था, रेल मंत्रालय ने न्यायालय के आदेश को अक्षरशः लागू किया है और तदनुसार RPF को संगठित सेवा का दर्जा दिया है और पिछले साल ही आरपीएफ अधिकारियों को सभी परिणामी एनएफएफयू लाभ दिए गए और उनकी सेवा का नाम बदलकर 'आईआरपीएफएस' कर दिया. 

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इसके विपरीत, सीएपीएफ में पुराने सेवा नियमों की आड़ में खंडित एनएफएफयू को माननीय न्यायालय के आदेश की गलत व्याख्या करके लागू किया गया है, जो सीएपीएफ अधिकारियों के एक बहुत छोटे हिस्से को लाभान्वित करता है और उनमें से अधिकांश की पदोन्नति को समस्याओं को दूर करने में विफल रहा है. यह विडंबनापूर्ण प्रतीत होता है कि एक ही न्यायालय के आदेश की विभिन्न मंत्रालयों द्वारा अलग-अलग व्याख्या की गई है.

OGS पैटर्न क्या है!
जब तक ओजीएएस (संगठित सेवा) पैटर्न के अनुसार भर्ती नियमों/सेवा नियमों में संशोधन नहीं किया जाता है, तब तक ओजीएएस का लाभ नहीं दिया जा सकता है. सीएपीएफ के अधिकारियों की मांग ओजीएएस पैटर्न के अनुसार संशोधित भर्ती नियमों/सेवा नियमों के साथ कैबिनेट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पूर्ण कार्यान्वयन है. सीएपीएफ के कैडर अधिकारी भारत संघ की अन्य संगठित सेवाओं पर लागू ओजीएएस और एनएफएफयू के सभी लाभों को प्राप्त करने के लिए नए सेवा नियमों और कैडर समीक्षा के लिए कई प्रतिनिधित्व के माध्यम से अपने संबंधित बलों से अनुरोध  कर रहे हैं, लेकिन उनकी सेवा नियम / भर्ती नियम (आरआर) अभी तक उनके कैडर कंट्रोलिंग अथॉरिटी गृह मंत्रालय और डीओपीटी द्वारा संशोधित नहीं किए गए हैं, जिसके विफल होने पर सीएपीएफ अधिकारी लंबे समय तक अपने रैंक में स्थिर रहे हैं और भारी मौद्रिक नुकसान उठा रहे हैं. विशेष रूप से सीआरपीएफ और बीएसएफ अधिकारी 12 साल से अधिक समय से अपनी पहली पदोन्नति की प्रतीक्षा कर रहे हैं और कई अधिकारी 10 से अधिक वर्षों से एक ही रैंक पर स्थिर हैं जो उनके मनोबल को सीधा प्रभावित कर रहा है.

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NFFU पर क्या है मौजूदा स्थिति, 22 फरवरी को फिर कोर्ट में मामला
अब सीआरपीएफ कैडर रिव्यू की एसएलपी, सीएपीएफ की ओजीएएस (संगठित सेवा के लाभ) की एसएलपी, बीएसएफसी का एनएफएफयू  कंटेंप्ट (सी पी त्रिवेदी), सीआईएसएफ का एनएफएफयू कंटेंप्ट (सुब्रत राय) करुणा निधान सीआरपीएफ का एनएफएफयू  कंटेंप्ट  22/02/2023 को लिस्टेड है सुनवाई के लिए.

उक्त मामलों की सुनवाई सितंबर 2021 से उच्चतम न्यायालय में हो रही है, लेकिन विभिन्न कारणों से मामले पर अभी तक जरूरी बहस नहीं हो सकी है. मामला तयशुदा तारीख पर लिस्टिंग में आता तो है लेकिन अंतिम पंक्ति में लिस्टिंग होने के कारण जज तक सुनवाई के लिए बारी नहीं आ पाती है. पिछले लगभग 1.5 वर्षों से यही स्थिति बनी हुई है. जिसके कारण सीआरपीएफ अधिकारियों को जो कैडर रिव्यू सितंबर 2021 तक होना था उसकी फाइल सीआरपीएफ महानिदेशालय एवं गृह मंत्रालय के चक्कर काट रही है और हजारों अधिकारी दशकों से प्रमोशन की राह देख रहे हैं.
 

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