scorecardresearch
 

Caste Census: आखिरी बार कब हुई, क्यों उठ रही मांग... जानिए जातिगत जनगणना का इतिहास

Caste Census Bihar: बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर सियासत थमने का नाम नहीं ले रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना के लिए 1 जून को ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई है.

Advertisement
X
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातिगत जनगणना कराने पर अड़े हुए हैं. (फाइल फोटो-PTI)
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातिगत जनगणना कराने पर अड़े हुए हैं. (फाइल फोटो-PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बिहार में जातिगत जनगणना की मांग तेज
  • नीतीश कुमार ने बुलाई ऑल पार्टी मीटिंग
  • आखिरी बार 1931 में हुई थी ऐसी जनगणना

Caste Census Bihar: बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर एक बार फिर सियासत तेज हो गई है. केंद्र सरकार जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में नहीं है, लेकिन बिहार में बीजेपी के समर्थन से सरकार चला रहे नीतीश कुमार इसकी जिद पर अड़े हैं. जातिगत जनगणना कराने को लेकर बिहार विधानसभा में दो बार प्रस्ताव भी पास हो चुका है. अब 1 जून को ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई है, जिसमें जातिगत जनगणना को लेकर फैसला लिया जाएगा. 

Advertisement

केंद्र की मोदी सरकार जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में नहीं है. लेकिन बिहार में नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जाति के आधार पर जनगणना कराने की लगातार मांग कर रहे हैं. 

नीतीश कुमार अक्सर खुले मंच से जातिगत जनगणना की हिमाकत करते रहे हैं. कुछ लोग इसे समाज को बांटने वाला कदम भी बता रहे हैं. हालांकि, नीतीश का तर्क है कि जाति के आधार पर जनगणना होने से नीतियां बनाने में मदद मिलेगी. वो ये भी कहते हैं कि इससे समाज बंटेगा नहीं, बल्कि एकजुट होगा. 

भारत में क्या है जनगणना का इतिहास?

भारत में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी. पहली बार जब जनगणना हुई थी, तब भारत की आबादी 25.38 करोड़ थी. तब से हर 10 साल पर जनगणना हो रही है. 

Advertisement

1931 तक जाति के आधार पर भी जनगणना के आंकड़े जुटाए गए. 1941 में भी जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन इसे जारी नहीं किया गया था. 

आजादी के बाद 1951 में जनगणना हुई थी. तब सरकार ने तय किया था कि सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आंकड़े ही जुटाए जाएंगे. इसके बाद से सिर्फ एससी और एसटी के आंकड़े जारी होते हैं. 

ये भी पढ़ें-- जातिगत जनगणना पर नीतीश इतने मुखर क्यों? समझें JDU की सियासी रणनीति

जातियों को लेकर क्या आया था सामने?

1931 में आखिरी बार जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए थे. उस समय अलग-अलग रियासतों में जातिवार आंकड़े दिए गए थे. उस समय बिहार और ओडिशा एक रियासत थी. यहां 23 से ज्यादा जातियां थीं. सबसे ज्यादा ग्वाला (अहीर) थे. इनकी आबादी 34.55 लाख से ज्यादा थी. इनके बाद 21 लाख से ज्यादा ब्राह्मण थे. वहीं, करीब 9 लाख आबादी भूमिहार ब्राह्मणों की थी. 

इनके अलावा 14.52 लाख कुर्मी, 14.12 लाख राजपूत, 12.96 लाख चमार, 12.90 लाख दोसाध, 12.10 लाख तेली, 10.10 लाख खंडैत और 9.83 लाख जोलाहा थे. 4 लाख से ज्यादा धोबी और 2 लाख से ज्यादा बनिया थे. 

जातिगत जनगणना की जरूरत क्यों?

जातिगत जनगणना का समर्थन करने वाले कहते हैं कि 1951 से एससी और एसटी का जातिवार डेटा पब्लिश होता है, जबकि ओबीसी की जातियों का डेटा नहीं आता है. इससे ओबीसी की आबादी का अनुमान लगाना मुश्किल होता है. 

Advertisement

वीपी सिंह की सरकार में मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर पिछड़ों को आरक्षण दिया था. उसमें 1931 की जनगणना के आधार पर देश में ओबीसी की आबादी 52% होने का अनुमान लगाया था.

जानकार मानते हैं कि देश में एससी और एसटी वर्ग को जो आरक्षण मिलता है, उसका आधार उनकी आबादी है, लेकिन ओबीसी के आरक्षण का कोई मौजूदा अधिकार नहीं है.

क्या केंद्र मानेगी?

केंद्र सरकार जातिगत जनगणना के समर्थन में नहीं है. इसी साल फरवरी में लोकसभा में जातिगत जनगणना को लेकर सवाल किया गया था. इसके जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि संविधान के मुताबिक, सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की ही जनगणना हो सकती है. 

क्या किसी और राज्य में हो चुकी है जातिगत जनगणना?

जानकार मानते हैं कि अगर कोई राज्य अपने स्तर पर जातिगत जनगणना करा भी लेती है तो भी उसका बहुत महत्व नहीं होगा, क्योंकि केंद्र इसे नहीं मानेगा. इसका एक कारण ये भी है कि जनगणना कराने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है, राज्य सरकार की नहीं.

इससे पहले कर्नाटक में जातिगत जनगणना कराई गई थी. 2015 में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने जातिगत जनगणना करवाई थी. इसके लिए 162 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. लेकिन लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय की नाराजगी से बचने के लिए इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया था.

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement