scorecardresearch
 

बोफोर्स, कांग्रेस की संलिप्तता और हर्शमैन के फैक्ट... आखिर जांच में अमेरिका से क्यों मदद मांग रही CBI?

CBI ने पिछले महीने फरवरी में अमेरिका के सक्षम प्राधिकारी को एक अनुरोध पत्र भेजा है. सीबीआई का मामला स्वीडन के M/s AB बोफोर्स द्वारा साल 1986-87 के दौरान भारत को हथियारों की आपूर्ति के लिए एक कॉन्ट्रैक्ट की खरीद के संबंध में कथित रिश्वतखोरी से संबंधित है.

Advertisement
X
बोफोर्स घोटाले में CBI ने US से मांगी मदद (प्रतीकात्मक तस्वीर)
बोफोर्स घोटाले में CBI ने US से मांगी मदद (प्रतीकात्मक तस्वीर)

केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने अमेरिका को एक लेटर ऑफ रोगेटरी (LR) भेजा है, जिसमें 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स रिश्वत कांड के बारे में निजी जांचकर्ता माइकल हर्शमैन से जानकारी मांगी गई है. अधिकारियों ने पुष्टि की है कि आधिकारिक चैनलों के जरिए जानकारी प्राप्त करने के लिए की गई कई कोशिशों के बाद कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बाद फरवरी ये गुजारिश की गई थी.

Advertisement

Fairfax Group के प्रमुख हर्शमैन ने 2017 में भारत का दौरा किया था और आरोप लगाया था कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बोफोर्स मामले की जांच को पटरी से उतार दिया था.

उन्होंने दावा किया कि उन्हें 1986 में भारत के वित्त मंत्रालय द्वारा मुद्रा नियंत्रण कानूनों के उल्लंघन और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करने के लिए नियुक्त किया गया था, जिनमें से कुछ बोफोर्स सौदे से जुड़े थे. उन्होंने भारतीय एजेंसियों के साथ जानकारी साझा करने की इच्छा भी जताई.

इंटरपोल के जरिए की गई अपील

CBI ने मामले में हर्शमैन के जुड़े होने के बारे में वित्त मंत्रालय से प्रासंगिक दस्तावेज मांगे, लेकिन बताया गया कि मामले से जुडे़ ऐसे कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं थे. एजेंसी ने 2023 और 2024 में अमेरिकी अधिकारियों को कई अनुरोध भेजे थे, साथ ही इंटरपोल के जरिए अपील भी की थी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

Advertisement

जनवरी 2025 में गृह मंत्रालय की मंजूरी और फरवरी में एक स्पेशल कोर्ट से मंजूरी मिलने के बाद, एजेंसी ने अमेरिकी अधिकारियों को औपचारिक LR अनुरोध के साथ आगे बढ़ना शुरू किया. 

यह भी पढ़ें: PM Modi Interview: 'राफेल मुद्दा बोफोर्स के पाप धोने को उठाया गया, ‘अडानी-अंबानी’ जैसे सवाल कांग्रेस की साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम', बोले PM

क्या है बोफोर्स मामला?

बोफोर्स मामला 1986-87 का है, जिसमें स्वीडिश हथियार निर्माता एबी बोफोर्स द्वारा 400 हॉवित्जर फील्ड गन की आपूर्ति के लिए कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए भारतीय राजनेताओं और रक्षा अधिकारियों को रिश्वत देने के आरोप शामिल हैं.

यह विवाद राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के लिए एक बड़ा राजनीतिक घोटाला बन गया और पिछले कुछ वर्षों में यह बहस का विषय बना हुआ है.

यह भी पढ़ें: बोफोर्स की तरह सरकार पर क्यों नहीं चिपकेगा अडाणी का मुद्दा... अमित शाह ने बताया

स्वीडिश रेडियो चैनल द्वारा रिश्वतखोरी के आरोपों की पहली बार रिपोर्ट किए जाने के तीन साल बाद सीबीआई ने 1990 में मामला दर्ज किया था, जबकि 1999 और 2000 में आरोपपत्र दायर किए गए थे. दिल्ली हाई कोर्ट ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए 2005 में सभी आरोपों को खारिज कर दिया था.

सीबीआई ने 2018 में फैसले को चुनौती दी, लेकिन देरी की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी. हालांकि, एजेंसी को 2005 में एटवोकेट अजय अग्रवाल द्वारा दायर एक मौजूदा अपील में अपनी चिंताओं को उठाने की अनुमति दी गई थी.

Live TV

Advertisement
Advertisement