scorecardresearch
 

समलैंगिक विवाह को केंद्र का रेड सिग्नल, सुप्रीम कोर्ट में कहा- ये इंडियन फैमिली सिस्टम के खिलाफ

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा कि प्रारंभ में ही विवाह की धारणा अनिवार्य रूप से अपोजिट सेक्स के दो व्यक्तियों के बीच एक मिलन को मानती है. यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से विवाह के आइडिया और कॉनसेप्ट 6 में शामिल है और इसे विवादित प्रावधानों के जरिए खराब नहीं किया जाना चाहिए.

Advertisement
X
केन्द्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने का विरोध किया है
केन्द्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने का विरोध किया है

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिका पर हलफनामा दाखिल किया है. केन्द्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने का विरोध किया है. इस हलफनामे मे कहा गया है कि समान सेक्स संबंध की तुलना भारतीय परिवार की पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों के कॉनसेप्ट से नहीं की जा सकती.

Advertisement

'विवाह की धारणा अपोजिट सेक्स के मेल को मानती है'

केंद्र ने कहा कि प्रारंभ में ही विवाह की धारणा अनिवार्य रूप से अपोजिट सेक्स के दो व्यक्तियों के बीच एक मिलन को मानती है. यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से विवाह के आइडिया और कॉनसेप्ट 6 में शामिल है और इसे विवादित प्रावधानों के जरिए खराब नहीं किया जाना चाहिए.

'समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में क्या करेंगे?'
 
अपने 56 पेज के हलफनामे में सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपने कई फैसलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्याख्या स्पष्ट की है. इन फैसलों की रोशनी में भी इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए क्योंकि उसमें सुनवाई करने लायक कोई तथ्य नहीं है. मेरिट के आधार पर भी उसे खारिज किया जाना ही उचित है. कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती. क्योंकि उसमे पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग- अलग माना जा सकेगा?.

Advertisement

केंद्र ने समलैंगिक विवाह से जुड़ी 15 याचिकाओं का किया विरोध

केंद्र ने सभी समलैंगिक विवाह से जुड़ी 15 याचिकाओं का विरोध किया. सुप्रीम कोर्ट मामले में अगली सुनवाई सोमवार को करेगा. सरकार ने यहां कोर्ट में कहा - संहिताबद्ध और असंहिताबद्ध व्यक्तिगत कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के डिक्रिमिनलाइजेशन के बावजूद हर धर्म की सभी शाखाओं पर ध्यान दिया जाता है. याचिकाकर्ता समान-लिंग विवाह के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं. किसी भी समाज में देश के कानून, पार्टियों का आचरण और उनके पारस्परिक संबंध हमेशा व्यक्तिगत कानूनों, संहिताबद्ध कानूनों या कुछ मामलों में प्रथागत कानूनों/धार्मिक कानूनों द्वारा शासित और परिचालित होते हैं.

'इसे निजता का मुद्दा नहीं माना जा सकता'

सरकार ने आगे कहा कि किसी भी देश का न्यायशास्त्र, चाहे वह संहिताबद्ध कानून के माध्यम से हो या सामाजिक मूल्यों, विश्वासों और सांस्कृतिक इतिहास पर हो, एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह को न मान्यता प्राप्त है और न ही स्वीकृत है.  

केंद्र ने कहा  विवाह किसी व्यक्ति की निजता के क्षेत्र में केवल एक कॉन्सेप्ट के रूप में नहीं छोड़ा जा सकता है वो भी तब जब इसमें रिश्ते को औपचारिक बनाने और उससे उत्पन्न होने वाले कानूनी परिणामों जैसी चीज इसमें शामिल हो. विवाह, कानून की एक संस्था के रूप में, इसके कई वैधानिक और अन्य परिणाम हैं. इसलिए, इस तरह के मानवीय संबंधों की किसी भी औपचारिक मान्यता को दो वयस्कों के बीच सिर्फ एक निजता का मुद्दा नहीं माना जा सकता है.

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement