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चंद्रबाबू नायडू 16 लोकसभा सीटें जीतकर बने किंगमेकर, उनके सियासी सफर पर एक नजर

केंद्र की सत्ता में इस बार जनता ने किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है. बीजेपी 240 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी है, लेकिन बहुमत का आंकड़ा 272 है. भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 292 सीटों के साथ बहुमत हासिल करने में सफल रहा है.  टीडीपी भी एनडीए का हिस्सा है और उसने लोकसभा चुनाव में 16 सीटें जीती हैं. इस तरह केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली अगली सरकार बनाने में चंद्रबाबू नायडू की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है.

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तेलुगु देशम पार्टी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू. (PTI Photo)
तेलुगु देशम पार्टी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू. (PTI Photo)

चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी ने आंध्र प्रदेश में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है. वहीं लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा है और आंध्र की 25 में से 16 संसदीय सीटों पर उसे जीत मिली है. केंद्र की सत्ता में इस बार जनता ने किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है. बीजेपी 240 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी है, लेकिन बहुमत का आंकड़ा 272 है. भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 292 सीटों के साथ बहुमत हासिल करने में सफल रहा है.  

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टीडीपी भी एनडीए का हिस्सा है और इस तरह केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली अगली सरकार बनाने में चंद्रबाबू नायडू की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. उन्होंने खुद को किंगमेकर के रूप में स्थापित कर लिया है. केंद्र में एनडीए की सरकार बनेगी या फिर इंडिया गठबंधन की, यह तय करने में नायडू की भूमिका काफी अहम होगी. अगर चंद्रबाबू नायडू के राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो यह उपब्धियों से भरा रहा है. उनकी सियासी समझ ने उन्हें इस महत्वपूर्ण स्थिति में ला खड़ा किया है.

वह 1995 से 2004 और 2014 से 2019 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. उन्होंने 2004 से 2014 तक आंध्र प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी कार्य किया. एक बार फिर चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री के रूप में आंध्र प्रदेश का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं. नायडू का राजनीतिक करियर 1970 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस  से शुरू हुआ. 1978 में, वह आंध्र प्रदेश विधान सभा के लिए चुने गए और 1980 से 1982 तक, उन्होंने राज्य मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में कार्य किया. 

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बाद में वह टीडीपी में शामिल हो गए, जिसकी स्थापना उनके ससुर नंदमुरी तारक रामा राव (NT Rama Rao) ने की थी. नायडू शुरू में एनटीआर के मुखर आलोचक हुआ करते थे. 1984 में एनटीआर को मुख्यमंत्री पद से हटाने के कांग्रेस के प्रयास को विफल करने में मदद करने के बाद, नायडू उनके विश्वासपात्र बन गए और टीडीपी के महासचिव बनाए गए. चंद्रबाबू नायडू ने 1989 से 1995 तक टीडीपी विधायक के रूप में कार्य किया और इस अवधि के दौरान वह एक हाई-प्रोफाइल विपक्षी नेता बन गए. 1995 में एनटी रामा राव के नेतृत्व के खिलाफ पार्टी के भीतर तख्तापलट के बाद वह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 

राजग से अलगाव

साल 2018 में, चंद्रबाबू नायडू ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से नाता तोड़ लिया था. इसके पीछे प्रमुख कारण था आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाना.

चुनाव में पराजय

आंध्र में 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस हार के बाद नायडू के नेतृत्व को सवालों के घेरे में रखा जाने लगा.

राजग में वापसी

मार्च 2024 में, चंद्रबाबू नायडू ने राजग में फिर से वापसी की. टीडीपी, भाजपा और पवन कल्याण की जनसेना ने आंध्र में साथ मिलकर चुनाव लड़ा. इस राजनीतिक समीकरण ने उन्हें फिर से चर्चा में ला दिया.

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संयुक्त मोर्चा का नेतृत्व

नायडू ने 1996 और 1998 में संयुक्त मोर्चा का नेतृत्व किया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन दिया. यह उनके राजनीतिक करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, जिसने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में मजबूती प्रदान की.

किंगमेकर की भूमिका

आज चंद्रबाबू नायडू वह ताकत हैं जो यह तय कर सकते हैं कि भारत में अगले प्रधानमंत्री कौन होंगे. कम सीटें जीतने के बावजूद भी राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. चंद्रबाबू नायडू की यह स्थिति उनकी राजनीतिक समझ और उनकी कुशल रणनीतियों का परिणाम है. उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखा जा सकता है जो बदलते वक्त के साथ खुद को ढालने की क्षमता रखता है. यही कारण है कि वह आज राष्ट्रीय राजनीति में किंगमेकर के तौर पर उभर कर सामने आए हैं.

इंडिया गठबंधन को मिलीं 234 सीटें

लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक की 234 सीटें आई हैं, जिसमें कांग्रेस 99 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. समाजवादी पार्टी 37 सीटों के साथ दूसरे, तृणमूल कांग्रेस 29 सीटों के साथ तीसरे और डीएमके 22 सीटों के साथ चौथे नंबर पर है. इंडिया ब्लॉक को सरकार बनाने के लिए कम से कम 38 और सांसदों की जरूरत होगी. यह तभी संभव दिखता है जब चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार एनडीए से अलग होकर इंडिया ब्लॉक के साथ आएं और विपक्षी गठबंधन को कुछ और छोटे दलों और निर्दलीय सांसदों का साथ मिले. लेकिन फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा. क्योंकि नीतीश और नायडू की ओर से एनडीए में विश्वास जताया गया है.

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बिहार में NDA को 40 में से 30 सीटें

नीतीश की पार्टी जदयू भी एनडीए का हिस्सा है. बता दें कि जदयू, भाजपा, चिराग की लोजपा (रामविलास), जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने एनडीए के बैनर तले बिहार में चुनाव लड़ा था. जदयू को 12 सीटें मिलीं. चिराग की पार्टी अपनी पांचों सीटें जीतने में कामयाब रही, जो उसे सीट बंटवारे में मिली थीं. जीतन राम मांझी भी गया से जीतने में सफल रहे. उपेंद्र कुशवाहा को काराकाट में हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी ने 12 सीटें जीतीं. इस तरह बिहार में एनडीए ने 40 में से 30 सीटें जीतीं. देश में 10 साल बाद एक बार फिर गठबंधन सरकार की वापसी होने जा रही है. बता दें कि 2014 और 2019 में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिली थी.

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