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क्या चारधाम प्रोजेक्ट बड़ा खतरा है? पर्यावरणविदों ने कही ये बात

इंडिया टुडे 'स्टेट ऑफ द स्टेट: उत्तराखंड फर्स्ट' कार्यक्रम में चारधाम प्रोजेक्ट के सदस्य हेमंत ध्यानी ने कहा कि उत्तराखंड का 50 फीसदी से अधिक क्षेत्र भूस्खलन जोखिम वाला है. 2018 में जब चारधाम प्रोजेक्ट को लाया गया तो इंजीनियर्स ने उसे रिजेक्ट कर दिया था. हमने कहा कि इस प्रोजेक्ट को सही ढंग से रिव्यू किया जाए लेकिन एक नहीं सुनी गई.

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इंडिया टुडे 'स्टेट ऑफ द स्टेट: उत्तराखंड फर्स्ट' कार्यक्रम
इंडिया टुडे 'स्टेट ऑफ द स्टेट: उत्तराखंड फर्स्ट' कार्यक्रम

इंडिया टुडे/आज तक के कार्यक्रम 'INDIA TODAY STATE OF THE STATE: UTTARAKHAND FIRST' कार्यक्रम में पर्यावरणविदो ने उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की आपदाओं पर चर्चा की. चारधाम प्रोजेक्ट से जुड़ी चुनौतियों से भी वाकिफ कराया गया.

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इस दौरान द हिल्स: न्यू अपॉर्चुनिटीज सत्र में हिमालयन एनवायरमेंट स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन के फाउंडर पद्मभूषण विजेता अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि विकास के नाम पर इंसानी जिंदगी को दांव पर लगाया जा रहा है. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में अभी जो हो रहा है, वो उसी लापरवाही का नतीजा है. पूरी इकोनॉमी ढह गई है. 

चार धाम प्रोजेक्ट एक बड़ा खतरा

गंगा आह्वान मूवमेंट के संयोजक और चारधाम प्रोजेक्ट के सदस्य हेमंत ध्यानी ने कहा कि असल सवाल विकास बनाम पर्यावरण का है. भारत में सड़कें बनाने की जो गाइडलाइन है या फिर पहाड़ों पर सड़कें बनाने का जो हिल रोड मैनुअल है, उसमें कहीं भी डंपिंग शब्द का जिक्र नहीं है. जब क्लाइमेट चेंज पर पहली बार हो-हल्ला मचा था तो सभी राज्यों से इसे लेकर एक्शन प्लान बनाने को कहा गया. 2014 में उत्तराखंड का एक आधिकारिक डॉक्यूमेंट है, जिसका नाम है क्लाइमेट चेंज एक्शन प्लान. इसमें साफ कहा गया है कि सड़कों का बेसिक प्रिंसिपल होगा Mass Balancing Cut & Fill. लेकिन नेशनल हाईवे हो या फिर चारधाम प्रोजेक्ट में जब हमने इस बात को सर्वसम्मति से कहा कि यह चारधाम प्रोजेक्ट से बहुत बड़ा खतरा आ सकता है. क्योंकि ये पूरा प्रोजेक्ट कट एंड डंप अप्रोच पर आधारित है. 

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उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का 50 फीसदी से अधिक क्षेत्र भूस्खलन जोखिम वाला है. आज राज्य का हाल देखिए, मॉनसून में बद्रीनाथ हाईवे बंद है, सीमा कनेक्टिविटी बंद पड़ी है. हर साल बारिश में कनेक्टिविटी खत्म हो जाती है. चमोली में इस समय 20 जगह लैंडस्लाइड है. बद्रीनाथ और रुद्रप्रयाग के बीच भी ऐसी ही स्थिति है. इसी तरह के प्रोजेक्ट लाए जा रहे हैं, जिससे तबाही हो और तबाही हो भी रही है. 

हेमंत ने कहा कि 2018 में जब चारधाम प्रोजेक्ट को लाया गया तो इंजीनियर्स ने उसे रिजेक्ट कर दिया था. हमने कहा कि इस प्रोजेक्ट को सही ढंग से रिव्यू किया जाए लेकिन एक नहीं सुनी गई. निराश होकर कई सदस्यों ने कमिटी छोड़ दी. हमें एंटी नेशनल कहा गया. लेकिन अब देखिए कि क्या हालत है. बद्रीनाथ हाईवे, माणा बॉर्डर, लिपुलेख बॉर्डर में ना जाने कितनी लैंडस्लाइड हैं, जो नासूर बनती जा रही हैं.

हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट भी खतरे की घंटी

उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में एनवायरमेंटल साइंस के प्रोफेसर एसपी सति ने कहा कि विकास किसी नहीं चाहिए लेकिन इंसानी कीमत पर नहीं. उत्तराखंड के लोग सुरक्षित नहीं है तो फिर ये इन्फ्रास्ट्रक्चर किसके लिए बनाया जा रहा है. बीते कुछ सालों में डिजास्टर बढ़े हैं. हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट भी खतरे की घंटी है. 

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उन्होंने कहा कि 2021 में एक स्टडी सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि हिमालय के जितने भी हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट हैं. वो बहुत बड़े खतरे की जद में हैं. क्लाइमेट चेंज की वजह से हिमलाय में ग्लेशियर का कटाव हो रहा है. किसी तरह के प्रोटोकॉल का पालन नहीं हो रहा. ऐसे-ऐसे प्रोजेक्ट्स को अंधाधुंध मंजूरी मिल रही है, जो खतरे की घंटी हैं. चारधाम प्रोजेक्ट में और उत्तराखंड में रोड कंस्ट्रक्शन में दुनिया की सबसे पुरानी तकनीक से काम होता है, जिसमें जेसीबी का ड्राइवर अलाइनमेंट तय करता है. वो सीधे पहाड़ से मलबे को उठाकर डंप करता है. पूरे हिमालय में जहां भी सड़कें चौड़ी की जा रही हैं या नई सड़कें बनाई जा रही हैं, सभी में नियमों का उल्लंघन हो रहा है. 

उत्तराखंड अकेला राज्य जहां माइग्रेशन कमीशन

चारधाम प्रोजेक्ट के सदस्य हेमंत ने कहा कि उत्तराखंड देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां माइग्रेशन कमीशन है. हमें हिमालय पर लक्ष्मण रेखा तय करनी होगी. कहां-कहां कंस्ट्रक्शन करना है, कहां एक दायरे में करना है और कहां नहीं करना है. 

प्रोफेसर एसपी सति ने कहा कि आज उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में जो तबाही मच रही है, वह हर साल होगी बल्कि और बड़े पैमाने पर होगी. हर साल ऐसी ही बारिश आएगी. हिमालय का बड़ा हिस्सा खतरे की जद में है. 

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