चीता. दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर. 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ये दौड़ सकता है. और महज 3 सेकंड में ही 97 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकता है. इस लिहाज से चीता किसी स्पोर्ट्स कार से भी ज्यादा तेज है. चीते का छोटा सिर, पतला शरीर और लंबी टांगे, इसे तेज रफ्तार पकड़ने में मदद देती है.
भारत में तो चीते को विलुप्त हुए 7 दशक से ज्यादा बीत गए हैं. लेकिन अब ये चीता एक बार फिर से भारत में आने वाला है. भारत और नमीबिया के बीच 8 चीतों को लेकर करार हुआ है. इनमें 4 नर और 4 मादा हैं. ये चीते 15 अगस्त से पहले भारत आ जाएंगे. इन्हें मध्य प्रदेश कूनो-पालपुर नेशनल पार्क में रखा जाएगा.
एक बार फिर से विलुप्ति की कगार पर...
चीता का पूर्वज अमेरिका प्यूमा को माना जाता है. यही चीता एक बार फिर से विलुप्ति की कगार पर आ गया है. नेशनल जियोग्राफिक की एक रिपोर्ट बताती है कि इतिहास में दो बार चीतों को विलुप्ति का सामना करना पड़ा है.
पहली बार एक लाख साल पहले. रिपोर्ट बताती है कि करीब एक लाख साल पहले चीतों ने एशिया, यूरोप और अफ्रीका में फैलना शुरू किया. इनकी आबादी तेजी से बढ़ी होगी. लेकिन रिश्तेदार में ही संभोग करने की वजह से इनके जीन में बदलाव होने लगा, जिससे इनकी प्रजनन क्षमता पर असर पड़ा और आबादी घटने लगी.
दूसरी बार 10 से 12 हजार साल पहले हुई घटनाओं ने चीतों का सफाया कर दिया था. जब आखिरी हिमयुग चल रहा था, तब ऐसी घटनाएं हुईं, जिसने अमेरिका और यूरोप से चीतों को खत्म कर दिया. इसके बाद एशिया और अफ्रीका में ही चीते बचे रहे.
क्लाइमेट चेंज और इंसानों के शिकार करने की वजह से चीता विलुप्ति की कगार पर आ गए हैं. उनकी आबादी लगातार घट रही है. 19वीं सदी तक दुनियाभर में लगभग एक लाख चीता हुआ करते थे. लेकिन अब 8 हजार से भी कम अफ्रीकी चीते और ईरान में 50 एशियन चीते बचे हैं.
भारत में कैसे खत्म हुए चीते?
एक समय था जब भारत में चीतों की अच्छी-खासी आबादी रहती थी. लेकिन राजा-महाराजाओं ने इनका शिकार करना शुरू कर दिया. इसके अलावा चीतों की खाल का कारोबार करने के लिए भी इनका शिकार किया जाने लगा. इतना ही नहीं, ब्रिटिश इंडिया के दौर में चीते गांव में घुस आते थे, जिस कारण लोग इन्हें मार देते थे. इन सब वजहों से भारत में इनकी आबादी घटती रही.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में पहली बार चीतों को पालने का चलन भारत में ही शुरू हुआ था. 16वीं सदी में मुगल शासक जहांगीर ने चीतों को पालना और उन्हें कैद में रखना शुरू किया. अकबर के समय भी 10 हजार से ज्यादा चीते पले हुए थे. इनमें से करीब 1 हजार चीते उनके दरबार में थे.
20वीं सदी में खेल के लिए भी जानवरों का आयात होना शुरू हो गया. एक रिसर्च के मुताबिक, 1799 से 1968 के बीच कम से कम 230 चीते भारत के जंगलों में थे.
भारत में आखिरी बार 1948 में चीता देखा गया था. 1948 में सरगुजा के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने तीन चीतों का शिकार किया था. यही भारत के आखिरी चीते थे. 1952 में भारत ने चीतों के खत्म होने की घोषणा कर दी.
जब ईरान से चीते आते-आते रह गए
1970 के दशक में इंदिरा गांधी की सरकार में चीतों को भारत लाने की कोशिश हुई. उस समय सरकार ने ईरान की सरकार से एशियाई चीतों को लाने पर बातचीत की. एशियाई शेरों के बदले में ईरान से एशियाई चीते लाने की बात हुई. लेकिन बाद में ये समझौता नहीं हो सका.
74 साल बाद आएंगे 8 चीते
भारत में आखिरी तीन चीतों का शिकार 1948 में हो गया था. अब 74 साल बाद फिर से जंगलों में चीते आएंगे. नमीबिया से 8 चीते लाए जाएंगे. एक अनुमान के मुताबिक, नमीबिया में करीबी साढ़े तीन हजार चीते हैं.
इसी साल जनवरी में केंद्र सरकार ने चीतों की वापसी का एक्शन प्लान तैयार किया है. ये पूरा एक्शन प्लान 300 से ज्यादा पन्नों का है. इसके मुताबिक, अगले 5 साल में 50 चीतों को भारत लाया जाएगा. पहले 8 चीते मध्य प्रदेश के कूनो-पालपुर नेशनल पार्क में रहेंगे.
कूनो-पालपुर नेशनल पार्क 748 वर्ग किमी में बना हुआ है. जबकि, पूरा जंगली इलाका 6,800 वर्ग किमी का है. एक्शन प्लान के मुताबिक, ये जगह चीतों के रहने के लिए सबसे सही है. यहां कम से कम 21 चीते रह सकते हैं. इतना ही नहीं, यहां चीते को अपना शिकार करने के लिए चीतल जैसे जानवर भी आसानी से मिल सकेंगे. यहां एक चीते पर हर एक किमी के दायरे में 38 से ज्यादा चीतल हैं.
कूनो-पालपुर नेशनल पार्क अक्सर सूखा रहता है. यहां अधिकतम तापमान 42.3 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 6 से 7 डिग्री सेल्सियस तक रहता है. यहां साल में औसतन 760 मिलीमीटर बारिश होती है.