राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होना है. इससे पहले दोनों राज्यों में कांग्रेस की मुसीबत बढ़ गई है. जहां एक ओर राजस्थान में सचिन पायलट ने मंगलवार को अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन करने का ऐलान किया है. तो वहीं छ्त्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने भी तल्ख तेवर दिखाए हैं. उन्होंने इशारों ही इशारों में कहा कि जब अलाकमान की ओर से किए हुए वादे पूरे नहीं किए जाते, तो दुख होता है.
दरअसल, टीएम सिंह देव की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है. वे लगातार छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार पर सवाल खड़े करते रहे हैं. अब सिंह देव से राजस्थान और सचिन पायलट के मुद्दे पर सवाल किया गया. इस दौरान उनसे पूछा गया कि क्या राजस्थान की तरह छत्तीसगढ़ में भी विवाद उमड़ रहा है? क्या टीएस सिंह देव को लग रहा है कि उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा?
इस पर सिंह देव ने कहा, मेरे लिए नाराजगी की बात नहीं है. लेकिन बंद कमरों में क्या बात होती है, उसे बोलने के लिए हम फ्री नहीं हैं. मीडिया में बार बार 2.5-2.5 साल सीएम (2.5 साल बघेल सीएम और 2.5 साल सिंह देव सीएम) वाली बात आती रही, मुझे लगता है कि मीडिया को इस बारे में जानकारी होगी. लेकिन जब ये नहीं हुआ, तो दुख तो होता है. एक चांस था कि काम करने का मौका मिल सकता था. लेकिन ये पार्टी के अंदर की बात है. पार्टी आलाकमान जो तय करता है, हम उसे मानते हैं.
टीएस सिंह देव से पूछा गया कि क्या पार्टी ने उनसे 2.5 साल के बाद सीएम बनाने का वादा किया था? इस पर सिंह देव ने कहा, ये कांग्रेस ने सार्वजनिक तौर पर नहीं कहा. ये सब बंद कमरों की बातें होती हैं. इनकी मर्यादा बनाए रखनी होती है. कभी मौका मिला, तो क्या बात हुई थी, ये बताएंगे.
जब सिंह देव से पूछा गया कि वे सचिन पायलट की बागवत को कैसे देखते हैं?
इस पर उन्होंने कहा, सचिन के साथ क्या चर्चा हुई, इसकी जानकारी नहीं है. उनका का भी मीडिया में लगातार विकल्प के रूप में चांस मिल सकता है, इसकी जानकारी मिलती रही है. लोग अलग होते हैं, रिस्पांस अलग होते हैं. छत्तीसगढ़ अलग है, राजस्थान अलग है. अलग अलग जगह पर अलग अलग घटनाक्रम होते हैं. सचिन यंग हैं, पीसीसी अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने टफ फाइट देकर सरकार बनाई. चर्चा थी अध्यक्ष के नाते उन्हें चांस मिल सकता है, लेकिन वो बातें नहीं हो पाई थीं.
टी एस सिंह देव सरगुजा रियासत के राजा हैं. वे छत्तीसगढ़ सरकार में नंबर दो की हैसियत रखते हैं. सूबे में सिंह देव की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है. वे अंबिकापुर विधानसभा सीट से तीन बार के विधायक हैं. टीएस सिंह देव राज्य के सबसे अमीर विधायक भी हैं. पिछले चुनाव में पेश किए गए हलफनामे के मुताबिक सिंह देव पर 500 करोड़ से अधिक की संपत्ति है. टी एस सिंह देव बीजेपी सरकार के दौरान नेता प्रतिपक्ष भी रहे. अंबिकापुर इलाके में कई मकान, सरकारी इमारतें, यात्रियों के लिए बनाए गए सराय, हॉस्पिटल, स्कूल या खेतों पर इन्हीं के परिवार का मालिकाना हक है. टी एस सिंह देव राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हैं. पिछले दिनों उन्होंने पंचायत मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
छत्तीसगढ़ में 2018 में कांग्रेस 15 साल बाद सत्ता में लौटी थी. लेकिन इसके बाद सीएम की कुर्सी को लेकर सिंह देव और भूपेश बघेल के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ गई थी. कहा जाता है कि ऐसे में ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री का फॉर्मूला तय हुआ था और भूपेश बघेल के सिर सत्ता का ताज सजा था. लेकिन ढाई साल मुख्यमंत्री वाला फॉर्मूला लागू नहीं हुआ. इसके उलट टीएस सिंह देव को लगातार हाशिए पर डालने की कोशिशें भी की जाती रहीं. ऐसे में सिंह देव नाराज हैं.
उधर, राजस्थान में पायलट ने एक बार फिर अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने जयपुर के शहीद स्मारक पर तत्कालीन बीजेपी सरकार की सीएम वसुंधरा राजे की सरकार में कथित घोटालों की जांच को लेकर वर्तमान सीएम गहलोत सरकार के खिलाफ अनशन करने का ऐलान किया.
सचिन पायलट के उपवास के फैसले पर कांग्रेस ने सोमवार रात उन्हें कड़ी चेतावनी दी है. पार्टी ने दो टूक कहा है कि इस तरह की कोई भी गतिविधि पार्टी विरोधी गतिविधि मानी जाएगी. इसके बावजूद पायलट अनशन के फैसले पर अडिग हैं.
राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच सियासी वर्चस्व की यह जंग 2018 के चुनाव के बाद से ही चली आ रही है. नवंबर 2018 में विधानसभा चुनाव हुए थे. सचिन पायलट तब प्रदेश अध्यक्ष थे. इस चुनाव में कांग्रेस राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनी. उसे 99 सीटें ही मिल सकीं. ऐसे में मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों नेता अड़ गए. पायलट कांग्रेस अध्यक्ष होने और बीजेपी के खिलाफ पांच सालों तक संघर्ष करने के बदले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावेदारी जता रहे थे तो अशोक गहलोत ज्यादा विधायकों का अपने पक्ष में समर्थन होने और वरिष्ठता के आधार पर अपना हक जता रहे थे.
पार्टी अलाकमान ने गहलोत को सीएम की कुर्सी पर बैठाया. वहीं, पायलट समर्थकों का दावा है कि सीएम के लिए ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला तय हुआ था. सरकार बनने के साथ ही गहलोत-पायलट के बीच मनमुटाव की खबरें आने लगीं. जुलाई 2020 में पायलट ने कुछ कांग्रेस विधायकों के साथ मिलकर बगावत भी कर दी थी. जुलाई 2020 को सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम पद से बर्खास्त कर दिया गया. हालांकि, बाद में प्रियंका गांधी के दखल के बाद पायलट की नाराजगी दूर हुई.
बीते साल जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए थे तो इस पद के लिए अशोक गहलोत का नाम सबसे आगे था. ऐसे में कहा जाने लगा था कि अगर गहलोत पार्टी अध्यक्ष बनते हैं तो राजस्थान की कमान सचिन पायलट को दी जा सकती है, लेकिन इस दौरान गहलोत ने अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से मना कर दिया था और राज्य के सीएम बने रहे.