छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में हुई नक्सल घटना ने एक बार फिर पूरे देश की आंखें नम कर दी हैं. डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG)के 10 जवान और एक वाहन चालक की शहादत ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है. किसी का सुहाग उजड़ा तो किसी ने अपने नौजवान बेटे को खोया. कई मासूमों के सिर से पिता का साया उठा. पिता के लिए बच्चे बिलखते नजर आए, तो कहीं सुहाग उजड़ने के बाद पत्नियां खुद को संभाल नहीं पाईं.
कसोली गांव में जब शहीद पति लखमू मरकाम के लिए चिता सजाई गई तो उनकी पत्नी उसी चिता पर लेट गईं. बिलखते हुए कहने लगीं, 'इनसे पहले मुझे जला दो.' यह मंजर देख वहां मौजूद हर किसी की आंखों से आंसू छलक पड़े. इधर, साथियों की शहादत और उनके घरवालों की चीखें सुनकर DRG की महिला कमांडोज भी रो पड़ीं.
एक वायरल वीडियो में देखा गया कि अपने शहीद पिता और परिजनों के पार्थिव शव लेने पहुंचे बच्चे और बड़े सुबकते रोते नजर आए. इस दौरान महिला कमांडोज उन बिलखते बच्चे को अपने हाथों से भरी गर्मी में पानी पिलाती और दुलारती हुईं नजर आईं. देखें Video:-
ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में बीते बुधवार को नक्सलियों द्वारा किए गए IED विस्फोट में 10 पुलिसकर्मी शहीद हो गए और एक ड्राइवर की मौत हो गई थी. शहीद पुलिसकर्मियों में से पांच नक्सलवाद छोड़ने के बाद पुलिस बल में शामिल हुए थे.
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इस घटना में मृतकों की पहचान प्रधान आरक्षक जोगा सोढ़ी, मुन्ना राम कड़ती, संतोष तामो, आरक्षक दुल्गो मंडावी, लखमु मरकाम, जोगा कवासी, हरिराम मंडावी, गोपनीय सैनिक राजू राम करटम, जयराम पोड़ियाम और जगदीश कवासी और निजी वाहन चालक धनीराम यादव के रूप में हुई है. नक्सली हमले में शहीद पुलिस जवानों में से ज्यादातर दंतेवाड़ा जिले के रहने वाले हैं.
बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी. के अनुसार, प्रधान आरक्षक जोगा सोढ़ी (35), मुन्ना कड़ती (40), आरक्षक हरिराम मंडावी (36) जोगा कवासी (22) और गोपनीय सैनिक राजूराम करटम (25) पहले नक्सली के रूप में सक्रिय थे. सरेंडर करने के बाद वह पुलिस में शामिल हो गए थे.
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बता दें कि नक्सल प्रभावित इलाकों के युवकों और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को सुरक्षाबलों के सबसे मारक क्षमता वाले ड्रिस्टिक्ट रिजर्व गार्ड में भर्ती किया जाता है. डीआरजी में ज्यादातर स्थानीय आदिवासी शामिल हैं, जिन्हें माओवादियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया गया है.
2008 में हुआ था DRG का गठन
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों को कमजोर करने के लिए 2008 में DRG का गठन किया गया था. इस फोर्स को सबसे पहले कांकेर और नारायणपुर में तैनात किया गया था. इसके बाद 2013 में बीजापुर और बस्तर फिर 2014 में सुकमा और कोंडागांव, इसके बाद 2015 में दंतेवाड़ा में इन्हें तैनात किया गया.