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सर्दियों से पहले प्रदूषण की टेंशन, पराली न जलाने पर एक्टिव हुए केजरीवाल

मुख्यमंत्री केजरीवाल ने संस्थान के दौरे के दौरान संवाददाताओं से कहा, मैं एक-दो दिन में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से मिलूंगा और उनसे पड़ोसी राज्यों को इस तकनीक को लागू करने का अनुरोध करूंगा. इस साल अब ज्यादा समय नहीं बचा है. हम अगले साल की बेहतर प्लानिंग करेंगे.

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (फाइल-पीटीआई)
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (फाइल-पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पराली से होने वाले प्रदूषण से निजात मिलने की उम्मीद
  • पूसा में कृषि अनुसंधान ने तैयार किया गया पूसा डी-कंपोजर
  • पराली जलाने से दिल्ली-NCR में पर्यावरण पर पड़ता है असर

ठंड का मौसम आने से पहले दिल्ली के आसपास के इलाके में पराली जलाने से रोकने की कोशिश शुरू हो चुकी है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को कहा कि वे केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मिलेंगे और उनसे अनुरोध करेंगे कि वे पराली को जलाने से रोकने के लिए फसलों के अवशेष के निपटान को लेकर पूसा में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित कम लागत वाली तकनीक के इस्तेमाल के लिए पड़ोसी राज्यों को निर्देश दें.

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तकनीक जिसे पूसा डी-कंपोजर कहा जाता है, में पूसा डी-कंपोजर कैप्सूल का उपयोग करके इसे तरल रूप में तैयार किया जाता है, और फिर इसका 8 से 10 में फर्मेन्टिंग होता है. फिर इस मिश्रण का जैविक तौर पर नष्ट के लिए पराली के ऊपर स्प्रे किया जाता है. 

20 रुपये का यह कैप्सूल प्रभावी रूप से प्रति एकड़ 4-5 टन कच्चे भूसे को निपटा सकता है.

मुख्यमंत्री केजरीवाल ने आज पूसा संस्थान का दौरा किया. अपने दौरे के दौरान संवाददाताओं से कहा, 'मैं एक-दो दिन में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से मिलूंगा और उनसे पड़ोसी राज्यों को इस तकनीक को लागू करने का अनुरोध करूंगा.' उन्होंने कहा, 'इस साल अब ज्यादा समय नहीं बचा है. हम अगले साल की बेहतर प्लानिंग करेंगे. दिल्ली में, हम इसे सर्वोत्तम तरीके से लागू करेंगे.'

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15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में धान की कटाई का सीजन होता है. किसान गेहूं और आलू की खेती करने से पहले फसल अवशेषों को जल्दी से हटाने के लिए अपने खेतों में आग लगा देते हैं जिससे प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर बढ़ जाता है और दिल्ली-एनसीआर में हवा का स्तर बेहद खराब हो जाता है.

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