पिछले दो साल तक तल्ख रिश्तों के बाद भारत और चीन फिर बातचीत की टेबल पर आ सकते हैं. अगले हफ्ते Uzbekistan में SCO समिट होने वाला है, कहा जा रहा है कि उस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की द्विपक्षीय मुलाकात हो सकती है. चीन ने अभी तक इस पर मुहर तो नहीं लगाई है, लेकिन अटकलें तेज हैं कि फिर बातचीत की टेबल पर आया जा सकता है.
पूर्वी लद्दाख में पीछे हटी चीनी सेना
यहां ये जानना जरूरी है कि कुछ दिन पहले ही पूर्वी लद्दाख में तनाव कम करने के लिए दोनों सेनाओं ने अपने कदम पीछे खीचे हैं. पूर्वी लद्दाख के गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स के क्षेत्र में पीछे हटना शुरू कर दिया है. दोनों सेनाओं की 16वीं बैठक हुई थी, उसी में शांति बनाए रखने के लिए पीछे हटने का फैसला हुआ. दो साल बाद इस बड़ी पहल ने बढ़ती तल्खी को कुछ कम करने का काम किया है. अब उस माहौल में अगले हफ्ते SCO की अहम बैठक होने वाली है. अब इसमें हिस्सा तो दोनों भारत और चीन ले रहे हैं, लेकिन क्या द्विपक्षीय मुलाकात होती है या नहीं, स्पष्ट नहीं.
वैसे चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि अभी इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी जा सकती है. हम सिर्फ उम्मीद करते हैं इस संगठन का बेहतरीन विकास होगा. वहीं जब गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स के क्षेत्र में पीछे हटने पर सवाल पूछा गया तो चीन ने इसे सकारात्मक पहल बताया और कहा कि बातचीत की वजह से ही ऐसा संभव हो पाया है. जानकारी के लिए बता दें कि आठ सितंबर को भारत और चीन के बीच में 16वें दौर की बातचीत हुई थी. फैसला लिया गया कि गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स के क्षेत्र से सेना पीछे हटेगी. इससे बॉर्डर पर शांति बनी रहेगी.
भारत की नई रणनीति क्या है?
अब उस फैसले के बाद ही ऐसे कयास लगाए जाने लगे पीएम मोदी और शी जिनपिंग फिर बातचीत की टेबल पर लौट आएंगे. वैसे इस मामले में एक तरफ चीन ने ज्यादा कुछ नहीं बोला है तो भारत की तरफ से तो प्रतिक्रिया ही नहीं है. ऐसे में इस मुलाकात को लेकर सस्पेंस बना हुआ है.
वैसे भारत चीन के खिलाफ एक नई रणनीति पर भी काम कर रहा है. इस रणनीति के तहत सैनिकों को स्पेशल ट्रेनिंग दी जा रही है और जवानों का 'पुनर्संतुलन' स्थापित करने पर भी जोर दिया जा रहा है. एक सैन्य अधिकारी ने बताया है कि इस समय बॉर्डर एरिया में सड़क निर्माण, ब्रिज बनाने पर ज्यादा फोकस दिया जा रहा है. इसके अलावा आरएएलपी क्षेत्र (शेष अरुणाचल प्रदेश) में सैनिकों को तुरंत लामबंद करने के लिए भी जरूरी सैन्य ढांचे को विकसित किया जा रहा है.
बड़ी बात ये है कि अब जिम्मेदारियां बांट दी गई हैं. एक तरफ थल सेना पूरी तरह उत्तरी सीमा पर तैनात होकर चीन का मुकाबला करेगी तो वहीं असम राइफल्स उग्रवाद विरोधी सभी अभियान में सक्रिय भूमिका निभाएगी. अभी तक इन अभियानों में थल सेना ही ज्यादा एक्टिव दिखाई देती थी. जानकारी ये भी मिली है कि ऊपरी दिबांग घाटी में सड़क निर्माण के साथ-साथ हेलीपैड और दूसरे बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं.