
प्राचीन काल से प्रोपेगेंडा का इस्तेमाल मनोवैज्ञानिक युद्ध के औजार के रूप में किया जाता रहा है. अमेरिकी आर्मी फील्ड मैनुअल्स (अब अप्रचलित) ने प्रोपेगेंडा की व्याख्या राष्ट्रीय उद्देश्य की मदद के लिए संचार के ऐसे रूप के तौर पर की है जिसे किसी ग्रुप की राय, भावनाओं या बर्ताव को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर लाभ पहुंचाया जा सके.
हाल ही में, भारत-चीन सीमा तनाव की पृष्ठभूमि में, बीजिंग ने प्रचार पर जोर देने के साथ एक मनोवैज्ञानिक युद्ध की शुरुआत की है. इसका मकसद भारत के लोगों की राय, भावनाओं, और बर्ताव को प्रभावित करना है, विशेष तौर पर भारतीय सेना की.
इंडिया टुडे की ओपन सोर्स इंटेलीजेंस टीम (OSINT) टीम ने चीनी प्रोपेगेंडा की पहल का विश्लेषण किया, ये समझने के लिए इसकी क्या रणनीति और लक्ष्य हैं? कैसे भारतीय सेना के मनोबल को कमतर दिखाने और भारतीय लोगों के दिमाग को नियंत्रित करने का इस प्रोपेगेंडा का मंसूबा है? इसके असर को समझने के लिए विश्लेषण SCAME (सोर्स, कंटेंट, ऑडियंस, मीडिया, इफेक्ट्स) के आधार पर किया गया.
स्रोत यानि सोर्स को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया - सफेद, जिसका स्रोत ज्ञात है; ग्रे, जिसका सोर्स ज्ञात नहीं है; और काला, जिसमें सूचना के लिए सोर्स के अलावा कोई और उत्तरदायी होता है.
सोर्स और कंटेंट
सोर्स पर आधारित प्रोपेगेंडा वर्गीकरण आम तौर पर कंटेंट की जगह उन तरीकों को बताता है जिनके माध्यम से मैसेज को आगे बढ़ाया जाता है. सफेद, ग्रे और काले वर्गीकरण सोर्स की पहचान उपलब्ध कराते हैं, जो बदले में मैसेज का मकसद और लक्ष्य स्पष्ट करता है.
ये सोर्स हू ज़िजिन या ईवा झेंग जैसे निजी व्यक्ति हो सकते हैं, जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी, खुद सरकार, या वीबो अकाउंट्स के जरिए प्रोपेगेंडा को स्पॉन्सर करने वाले कुछ संगठन है जो साफ तौर पर बीजिंग से जुड़े हैं. @HuXijin_GT और @evazhengll जैसे ट्विटर हैंडल प्रोपेगैंडा के जरिए भारतीय सेना को कमतर दिखाने की रणनीति का खुलकर पीछा कर रहे हैं.
जहां तक पूर्वी लद्दाख का संबंध है, प्रोपेगेंडा का सोर्स सफेद और ज्ञात है. कंटेंट आम तौर पर मौजूदा स्थिति पर आधारित होता है और इसमें ऐसी घटनाएं शामिल होती हैं जिन्हें असत्य बयानों को तथ्य के तौर पर आगे बढ़ाने के लिए तोड़ामरोडा जाता है.
ऑडियंस
ऑडियंस मोटे तौर पर आम लोग हैं, जो मौजूदा सीमा की स्थिति के बारे में बहुत चिंतित हैं. सीमा पर वास्तव में क्या हो रहा है, इस तक उनकी पहुंच नहीं है. प्रबुद्ध लोगों, सेना के अधिकारियों और जवानों को अलग से टारगेट किया जाता है.
जो मीडिया इस्तेमाल किया जाता है उसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लाउडस्पीकर्स, अखबार, टेलीविजन और सोशल मीडिया शामिल है. इनमें से अधिकतर ऑडियो-विजुअल मीडिया हैं, इससे वो ध्यान आकर्षित करने में सफल है, अब चाहे संदेश विश्वसनीय हो या नहीं. प्रोपेगेंडा ध्यान खींचता है लेकिन अधिक देर टिकता नहीं. ऐसा भारत के रणनीतिक विश्लेषकों और बुद्धिजीवियों के समय से विश्लेषण और प्रोपेगेंडा को खारिज किए जाने की वजह से है.
चीनी प्रोपेगेंडा
बीजिंग ने महसूस किया है कि वह पूर्वी लद्दाख में एक मजबूत सेना का सामना कर रहा है. प्रोपेगेंडा के पहले उदाहरणों में से एक गलवान संघर्ष के बाद देखा गया था, जिस संघर्ष में भारत के 20 बहादुर जवानों की शहादत हुई और चीन ने अपने हताहतों की संख्या को साझा नहीं किया था. सीसीपी-नियंत्रित चीनी मीडिया हाउसों ने दावा किया कि समय से बचाव न किए जाने और खराब मेडिकल स्टाफ की वजह से भारत ने अपने जवान खोए.
सच्चाई बिलकुल अलग थी. लेह, जो भारत के सर्वश्रेष्ठ सैन्य अस्पतालों में से एक है, संघर्ष की जगह से मुश्किल से 90 किमी दूर है, जबकि पीएलए को झिंजियांग के होटन जैसे शहर तक पहुंचने के लिए कम से कम 295 किमी दूर अपने घायलों को निकाल कर ले जाना पड़ा होगा. यहां तक कि न्यूनतम चिकित्सा सुविधाओं के साथ निकटतम शहर रुतोग भी संघर्ष की जगह से 215 किमी दूर है.
जब भारत ने चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और चीनी सामानों के बहिष्कार के आंदोलन को बढ़ावा मिला, तो CCP ने जुलाई के आंकड़ों में एक कहानी जारी की कि जून में भारतीय आयात वास्तव में बढ़ा. तथ्य यह था कि आयातों से प्रतिबंध को थोड़ी देर पहले ही हटाया गया था. ये आयात पहले से ही प्रक्रिया में थे लेकिन कोरोना वायरस के खतरे की वजह से लगभग छह महीने से रुके हुए थे.
चीनी मीडिया की ओर से दिए गए आंकड़ों की तुलना उसी अवधि के पिछले वर्षों के आंकड़ों से नहीं की गई थी, जो तथ्यों को झूठ से अलग कर देता.
चीनी इंटरनेट पर एक वीडियो वायरल किया गया था और और यहां तक कि भारतीय सोशल मीडिया पर भी, इसमें हेक्साकॉप्टर को अग्रिम क्षेत्रों में खाने के पैकेट गिराते देखा गया. वीडियो में दावा किया गया कि पीएलए के सैनिक गर्म खाने का आनंद ले रहे हैं, जबकि भारतीय सैनिक पूर्वी लद्दाख में ऊंचे क्षेत्रों में पर ठंडा खाना खा रहे होंगे. इंडिया टुडे ने सच्चाई का खुलासा किया और बताया कि कैसे 30-40 मीटर की ऊंचाई से गिराकर खाना डिलीवर करना असंभव है.
सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को दिखाने वाला एक और वीडियो वायरल हुआ, पहले वीबो पर और बाद में पूरी दुनिया में. वीडियो में पीएलए एयरफोर्स की झांसा देने की कोशिश देखी जा सकती है. सच्चाई यह है कि भारत पहले से ही PLA के ऐसे झांसो को जानता है. और जो फैक्टरियां ऐसी चीजें बनाती हैं, उन्हें भी इंडिया टुडे ने बेनकाब किया.
हाल ही में, भारतीयों को नई दिल्ली में चीनी दूतावास के लिए एक बहुत ही प्रतिष्ठित अखबार के एक पूरे पेज के विज्ञापन को देखकर झटका लगा. सच्चाई यह है कि भारत में किसी ने भी उस पेज पर क्या लिखा था, उसे पढ़ा भी नहीं लेकिन विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद से चीन के लिए नफरत कई गुणा बढ़ गई थी.
प्रोपेगेंडा का तोड़
चीन के प्रोपेगेंडा अभियान का मुकाबला करने के लिए कई तकनीकें हैं, जिनमें से कुछ अमेरिकी आर्मी फील्ड मैनुअल में बताई गई हैं. टारगेटेड ऑडियंस को नियमित मनोवैज्ञानिक वारफेयर के लिए दुश्मन के प्रोपेगेंडा के बारे में शिक्षित किए जाने की आवश्यकता है ताकि वे जागरूक हों और प्रोपेगेंडा और वास्तविकता के बीच अंतर कर सकें.
पेशबंदी की तकनीक का इस्तेमाल कर किसी मुद्दे पर पहले से ही सक्रियता दिखाई जाती है जिससे कि दुश्मन उसका प्रोपेगेंडा के लिए इस्तेमाल न कर सके. दुश्मन के प्रोपेगेंडा को सीधे तौर पर बिंदु वार खारिज किया जाता है या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर इसका काउंटर तैयार करके.
नए विषयों का उपयोग करके दर्शकों का ध्यान अन्य विषयों की ओर मोड़ने के लिए डायवर्जन तकनीक का उपयोग किया जाता है. इसे भारत में अक्सर इस्तेमाल होते देखा जाता है. शत्रु के दुष्प्रचार को मोड़ने और इसे अपने हित में इस्तेमाल करने के लिए उसी तरह की चालाकी का अनुसरण किया जाता है.
सबसे अच्छी काउंटर-प्रोपेगेंडा तकनीक मौन रहना है, दुश्मन के प्रोपेगेंडा पर प्रतिक्रिया नहीं करने से हमेशा बेहतर परिणाम मिले हैं.
प्रोपेगेंडा की कुछ किस्मों का मुकाबला करने के लिए प्रतिबंधात्मक उपायों को अपनाया जाता है. भारतीय बाजारों में चीनी एंट्री को प्रतिबंधित करने के लिए अपनाए गए कुछ आर्थिक उपाय वीबो जैसे सोशल मीडिया ऐप पर प्रतिबंध लगाने में कारगर रहे, जिसका इस्तेमाल चीन के प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा था.
लगता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी यानि CCP के प्रोपेगेंडा के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं, यह दिखाना कि पीएलए बहुत उन्नत है और भारतीय सेना मानक से नीचे है. पीएलए की ओर से साथ ही भारतीय सैनिकों के मनोबल को कमतर दिखाने की कोशिश की जा रही है ताकि वो समन्वित लड़ाई लड़ने में कामयाब न हो. इस तरह के प्रोपेगेंडा के माध्यम से चीन भारतीय प्रबुद्ध लोगों को यह संदेश देना चाहता है कि उसके साथ युद्ध लड़ना निरर्थक है.
(कर्नल विनायक भट (रिटायर्ड) इंडिया टुडे के लिए एक सलाहकार हैं. वे सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषक हैं, उन्होंने 33 वर्षों तक भारतीय सेना में सर्विस की)