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लद्दाख गतिरोध को लेकर क्या सोचते हैं चीनी रणनीतिकार?

लद्दाख में पैंगोंग सो के दक्षिणी तट पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच ताजा संघर्ष ने चीनी रणनीतिक हलकों में काफी सुगबुगाहट पैदा की है. ताजा स्थिति पर बात करते हुए चीनी रणनीतिकारों के बीच मुख्य तर्क यह है कि सरहद की हालिया घटना भारत की तरफ से वार्ता की मेज पर तोल-मोल की जगह बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है.

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भारत-चीन के बीच गतिरोध जारी (फाइल फोटो-PTI)
भारत-चीन के बीच गतिरोध जारी (फाइल फोटो-PTI)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चीनी एक्सपर्ट्स ने जाहिर की राय
  • भारतीय पक्ष वार्ता को लेकर नाखुश
  • चीन को लेकर भारत का रुख सख्त

लद्दाख में पैंगोंग सो के दक्षिणी तट पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच ताजा संघर्ष ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर बढ़ते तनाव को लेकर चिंता उठाई हैं. ऐसे वक्त में चीनी रणनीतिक समुदाय किस तरह से स्थिति का विश्लेषण कर रहा है, यह जानना अहम है. 

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इस घटनाक्रम ने चीनी रणनीतिक हलकों में काफी सुगबुगाहट पैदा की है. ताजा स्थिति पर बात करते हुए चीनी रणनीतिकारों के बीच मुख्य तर्क यह है कि सरहद की हालिया घटना भारत की तरफ से वार्ता की मेज पर तोल-मोल की जगह बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है. 

बीजिंग की सिंगुआ यूनिवर्सिटी के नेशनल स्ट्रेटेजी इंस्टीट्यूट रिसर्च डिपार्टमेंट के डायरेक्टर कियान फेंग के हवाले से चीनी मीडिया में लिखा गया है, “भारतीय पक्ष वार्ता में प्रगति को लेकर नाखुश है और उसका मानना ​​है कि चीन ने उसकी शर्तों को नहीं माना है. इसलिए, बातचीत के अगले दौर में चीन पर दबाव बनाने के लिए, उसने टकराव के नए पॉइन्ट्स खोलने की कोशिश की है. यही नहीं, चीनी पक्ष ने चिंता के साथ भारत की ओर से दक्षिण चीन सागर में युद्धपोत भेजने की खबरों पर भी गौर किया है. 

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समुद्र की पेचीदा स्थिति 

एक चीनी मिलिट्री एक्सपर्ट ली जी ने Huanqiushibao (ग्लोबल टाइम्स के चीनी संस्करण) में तर्क दिया कि इस तरह की कार्रवाइयों से भारतीय पक्ष एक मजबूत संकेत भेज रहा है कि अगर सीमा पर चीन और भारत के बीच जमीन पर नियंत्रित न किए जा सकने वाला संघर्ष होता है, तो वो समुद्र में जवाबी कार्रवाई कर सकता है. इसके लिए वो चीन के तेल और गैस ट्रासपोर्ट जहाजों को निशाना बना सकता है, "ऐसे में चीन सरकार से अपील है कि वो समुद्र में गड़बड़ी से निपटने के उचित जवाबी कदम उठाए.” 

दूसरा मुख्य तर्क यह है कि भारत अमेरिका के इशारे पर काम कर रहा है. कुछ चीनी रणनीतिकार नवंबर में आगामी अमेरिकी चुनावों से पहले बीजिंग और वाशिंगटन के बीच संभावित सैन्य मुठभेड़ की चेतावनी दे रहे हैं, और कई भारत-चीन के मौजूदा तनाव को चीन और अमेरिका के बीच संबंध बदतर होने का ही विस्तार मानते हैं. 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (फोटो-रॉयटर्स)

चीन के सैन्य मामलों पर ऑनलाइन प्रकाशन, Xilu.com में एक लेख में कहा गया है “एलएसी में भारत की सैन्य बढ़ोतरी और कड़े रुख को देखते हुए, लगता है कि भारत अमेरिकियों के साथ कुछ पर्दे के पीछे की डील्स तक पहुँच गया है. जहां अमेरिका की ओर से चीन के पूर्वी और दक्षिणी मोर्चों पर दबाव बनाया जा रहा है, वहीं भारत ने पश्चिमी मोर्चे को सक्रिय करने की पहल की है. जिससे कि चीन को कार्रवाई के लिए मजबूर किया जा सके और उसे दो पक्षों से लड़ाई की प्रतिकूल स्थिति में धकेला जा सके.” 

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अमेरिका के साथ खड़ा है भारत  

फुदान यूनिवर्सिटी से जुड़े दक्षिण एशिया मामलों के अहम जानकार लिन मिनवांग का निष्कर्ष है कि भारत के चीन को लेकर सख्त रुख के लिए अमेरिका का राजनीतिक समर्थन अहम है. वो इंगित करते हैं कि “जब से महामारी (कोविड) फैली है, भारत और अमेरिका ने नजदीकी संवाद कायम कर रखा है- नेताओं की कॉल्स, उप विदेश मंत्री स्तर पर कॉल्स, और ऑनलाइन मीटिंग्स का निर्बाध सिलसिला, इसने भारत को ग्लोबल एंटी चीन फ्रंट की अगुआई करने को प्रेरित किया. भारत अब अमेरिका के कई सहयोगियों से ज्यादा चीन विरोधी है.” मिनवांग कहते हैं, भारत सरकार की विदेश नीति से अब ये बहुत साफ है कि भारत ने ग्रेट पावर कम्पिटीशन में अमेरिका के साथ खड़े होने का फैसला कर लिया है.” 

तीसरा तर्क यह है कि हालिया संघर्ष देश में बिगड़ती कोविड स्थिति और अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट से भारतीय जनमत का ध्यान हटाने के लिए है, और “एक काल्पनिक दुश्मन” चीन के खिलाफ झंडा बुलंद करके जनता को उसके नीचे इकट्ठा करने के लिए है. कुछ चीनी विश्लेषकों का ये अनुमान भी है कि "यह पीछे हटने से पहले भारत की आखिरी लड़ाई है.” 

पिछले कुछ हफ्तों में, चीन में ऐसी धारणा बनाने की कोशिश की जा रहा थी कि भारत "अपने रुख को नरम कर रहा है", "चीन के साथ शांति की मांग कर रहा है" और यह कि "सीमा गतिरोध का एक प्रारंभिक समाधान बहुत नजदीक है", इसके लिए विशेष रूप से विदेश मंत्री एस जयशंकर के हालिया भाषणों का जिक्र और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में चीन-भारत-रूस के नेताओं की बैठक की संभावना, ब्रिक्स नेताओं की बैठ और जी-20 रियाद शिखर सम्मेलन का हवाला दिया जा रहा था. 

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भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर (फोटो-रॉयटर्स)

'फेस सेविंग स्ट्रेटेजी' 

उसी टोन में अब यह तर्क दिया जा रहा है कि सार्वजनिक तौर पर यह कह कर कि "भारत ने चीन की एकतरफा रूप से यथास्थिति में बदलाव करने की मंशा को कामयाबी से रोक दिया है," और " इस संघर्ष में भारतीय सेना की जीत" को हाईलाइट करना, पहले से ही भारत की खिंची हुई स्थिति (महामारी, सुस्त अर्थव्यवस्था और अन्य कारणों के कारण) में फेस सेविंग एग्जिट का रास्ता साफ करना है. लेकिन, चीन में कई लोग जिस बात पर आगबबूला है वो ये है कि भारत ने पहले कार्रवाई की ‘हिमाकत’ की और टकराव वाली जगह पर भारतीय सेना के जवानों ने तिब्बती "स्नो माउंटेन लॉयन" झंडा लहराया, जिसका वीडियो चीनी सोशल मीडिया में वायरल हो गया. चीनी सोशल मीडिया स्पेस अब ‘उपर्युक्त पलटवार’ के आह्वानों से अटा पड़ा है. 

माओवादी और कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक चीनी इंटरनेट फोरम यूटोपिया में एक लेख के मुताबिक “कुछ चीनी हार्डलाइनर्स का तर्क है कि अगर चीन भारत के "मिसएडवेंचर्स" पर बलपूर्वक प्रतिक्रिया नहीं देता है, तो वह (भारत) पूरे अक्साई चिन पर कब्जा करना चाह सकता है, जबकि दूसरी ओर, अमेरिका, जापान, वियतनाम, फिलीपींस और अन्य देश चीन के विरोध को आगे बढ़ाएंगे. ऐसे में भारत के खिलाफ इस वक्त पलटवार जरूरी है, क्योंकि यह न केवल एक पलटवार होगा, बल्कि चीन की बड़ी ताकत को दुनिया के सामने साबित करने का भी रास्ता होगा.”  

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लद्दाख में भारतीय सेना के ट्रक (फोटो-रॉयटर्स)

 
चीन को बरतना चाहिए संयम 

हालांकि, ऐसा भी नहीं कि सभी आश्वस्त हैं- "रणनीतिक दिशा में बहुत अधिक ध्यान और संसाधनों का निवेश करना चीन के हित में होगा, जो वर्तमान में चीन की प्राथमिक रणनीतिक दिशा के मुताबिक नहीं है." वे तर्क देते हैं कि इस मोड़ पर भारत के साथ एक सैन्य संघर्ष शुरू करना एक ऐसे जाल में चलने जैसा होगा जो चीन की राष्ट्रीय ताकत को कम करेगा और केवल अपने प्रमुख विरोधी जो कि अमेरिका है, उसी को खुश करेगा. इसलिए, उनका सुझाव है कि भारत के खिलाफ बड़े पैमाने पर सैन्य संघर्ष के लिए तैयार रहने के दौरान, चीन को बिना क्षेत्र को खोए वर्तमान स्थिति को यथासंभव नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए. 

माओवादी विचारधारा की ओर झुकाव वाली एक और चीनी वेबसाइट “Maoflag.net में एक लेख में कहा गया है-“चीन ने पहले ही अक्साई चिन के रणनीतिक स्थान पर कब्जा करा हुआ है, और फिलहाल अधिक क्षेत्र हासिल करने की आवश्यकता नहीं है. इसलिए, सीमा-निर्धारण और संघर्षों को लेकर , स्थिति को यथासंभव नियंत्रित किया जाना चाहिए और आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए... एक बार जब चीन अमेरिका को 30 से 40 साल में पूर्वी एशिया से पीछे हटने के लिए मजबूर करता है, तो उसके बाद इस समस्याग्रस्त रिश्ते से निपटने पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है.” 

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व्यापक रणनीति समय की जरूरत  

इन रणनीतिकारों का सुझाव है कि “छोटी मोटी प्रतिक्रियाओं के बजाय, भारत के "बहु-आयामी (राजनीतिक-आर्थिक-सैन्य) हमलों" के खिलाफ एक व्यापक रणनीति तैयार करने का समय है. इसके लिए तीन मुख्य  उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए- (i) यह सुनिश्चित करना कि भारत पाकिस्तान की जगह चीन को प्रमुख रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी न मानने लगे; (ii) यदि ऐसा होता है, तो भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत चीन के साथ सामरिक प्रतिस्पर्धा में अपनी सारी शक्ति का इस्तेमाल करने में समर्थ ना हो, अर्थात, संदेश जाए कि भारत अपनी ऊर्जा और संसाधनों को समाप्त कर रहा है, जिससे कश्मीर में सुरक्षा स्थिति बिगड़ने से इसके आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, समूचे दक्षिण एशिया पर भी, जिससे भारत को अधिक लचीले रवैये के साथ वार्ता की मेज पर वापस आने के लिए मजबूर होना पड़े; (iii) यह सुनिश्चित करना कि भारत चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करते समय अमेरिका के साथ खुले तौर पर खड़ा न हो, यदि भारत खुले तौर पर अमेरिका के साथ गठबंधन करता है तो इसका मतलब होगा "दक्षिण-पश्चिम और हिंद महासागर में चीन की रणनीतिक स्थिति में एक बड़ी गिरावट." 

लद्दाख में तैनात भारतीय सेना का जवान (फोटो-रॉयटर्स)

 
घरेलू चीनी आबादी के लिए इन रणनीतिकारों का कहना है कि वो भारत के साथ तनाव की बार बार आने वाले खबरों से परेशान न हो और विश्वास रखें कि सरकार और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) कभी भी चीन के हितों से समझौता नहीं करेगी. 
इसलिए, चीनी नेरेटिव  के आधार पर, कोई यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि चीन-भारत संबंध वास्तव में चाकू की धार पर खड़े हैं, और तनाव में बढ़ोतरी या कम होने की बराबरी की संभावनाएं हैं. 

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(अंतरा घोषाल सिंह दिल्ली पॉलिसी ग्रुप में रिसर्चर हैं. वे चीन की सिंगुआ यूनिवर्सिटी से स्नातक हैं और नेशनल सेंट्रल यूनिवर्सिटी, ताइवान में चीनी लैंग्वेज फैलो रही हैं) 

 

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