देश के सबसे बड़े अर्धसैनिक बल में सोमवार को सुकमा से ये खबर आई कि चार्ली बटालियन के एक जवान ने तड़के अपने 7 साथी जवानों पर AK-47 से हमला कर दिया. इसमें 4 जवान मारे गए जबकि 3 गंभीर रूप से घायल हो गए. सुकमा में हुई इस घटना ने सारी फोर्स को स्तब्ध कर दिया है. अब खुद सीआरपीएफ के डीजी कुलदीप सिंह सुकमा के लिंगापल्ली के चार्ली बटालियन का दौरा कर पूरी स्थिति की गंभीरता को समझेंगे.
सीआरपीएफ डीजी ने अधिकारियों को निर्देश दिए है कि सीआरपीएफ के हर एक बटालियन और कैम्प में जवानों में आत्महत्या और गुस्से में अपने ही साथियों पर फायरिंग करने जैसी घटनाओं को कम करने के लिए "चौपाल पे चर्चा" आयोजित की जाए.
जवानों के साथ चौपाल पर चर्चा
इसके तहत CRPF के उस एरिया के सभी आईजी और डीआईजी रेंज जवानों के साथ चौपाल पर चर्चा करेंगे यानी उनकी समस्याओं का निवारण करके उसको ऑन द स्पॉट सुलझाएंगे. पर ये नौबत फोर्स में आई ही क्यों? आखिर सीआरपीएफ जवानों को गुस्सा क्यों आता है, वे एकाएक अपने साथियों पर घातक वार कर बैठते हैं. ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब अभी तक नहीं मिल सका है. पिछले एक दशक से केंद्रीय गृह मंत्रालय और बल मुख्यालय का इस बाबत एक ही जवाब रहा है कि जवान के परिवार में कोई परेशानी रही होगी. वह परेशानी जब उसके दिमाग पर हावी हो जाती है, तो उस स्थिति में जवान, घातक कदम उठा लेता है.
लगातार आ रही आत्महत्या और हत्या की घटनाएं
आज तक के पास जो आंकड़े मौजूद हैं उसके मुताबिक 2018 से 2021 के बीच सीआरपीएफ के जवानों के द्वारा अपने साथियों पर 13 बार फायरिंग की अलग- अलग घटनाएं हुई जिसमें 40 जवानों की मौत हो चुकी है. वहीं इस साल अब तक 51 जवानों ने आत्महत्या करके अपनी जान गवां दी है. सूत्रों के मुताबिक सीआरपीएफ इनको रोकने की पूरी कोशिश में है पर अभी सफल नहीं हो पा रही है. सीआरपीएफ से आज तक को जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक 2018 से 2021 तक 192 जवानों ने अलग अलग घटनाओं में आत्महत्या की है. 2018 में 38 जवानों ने आत्महत्या की, 2019 में 43 जवानों ने आत्महत्या की, 2020 में 63 जवानों ने आत्महत्या की तो 2021 में अबतक 51 जवानों ने आत्महत्या कर अपनी जान गंवा दी है.
6 सालों में 680 जवानों ने की आत्महत्या
गृह मंत्रालय ने जवानों द्वारा अपने साथियों की हत्या और खुद जवानों की आत्महत्या पर अलग- अलग दलीलें दी हैं. अगस्त के महीने में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में जानकारी दी थी कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) और असम राइफल्स (एआर) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह वर्षों के दौरान अर्धसैनिक बलों के 680 जवानों की आत्महत्या से मौत हुई है. इन सबके पीछे गृह मंत्रालय ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा था कि घरेलू समस्याएं, बीमारी और वित्तीय समस्याएं आत्महत्याओं के पीछे कारक हैं.
इसके साथ ही सरकार ने जानकारी दी थी कि सरकार समय-समय पर पेशेवर एजेंसियों के साथ परामर्श करके इस मुद्दे की समीक्षा करती रहती है. ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (बीपीआरएंडडी) ने 2004 में तनाव पैदा करने वाले कारकों पर एक अध्ययन किया था. वहीं भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद ने 2012 में बीएसएफ और सीआरपीएफ के लिए इसी तरह का अध्ययन किया था. पर सरकार के द्वारा इन सब अध्ययनों के बावजूद भी जवानों में आत्महत्या की संख्या में कमी नहीं हो रही है. सीआरपीएफ में तो इस साल अब तक 51 जवानों ने विभिन्न कारणों के चलते आत्महत्या कर ली है.