केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लागू करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. इसके साथ ही अब नागरिकता संशोधन कानून देशभर में लागू हो गया है. लेकिन राज्यों में इस कानून को लागू करने को लेकर विवाद बढ़ गया है. पश्चिम बंगाल और केरल जैसे कई राज्यों का कहना है कि वे अपने-अपने राज्यों में इस कानून को लागू नहीं करेंगे.
लेकिन भारत के संविधान ने ये स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी राज्य सीएए लागू करने से इनकार नहीं कर सकता क्योंकि नागरिकता संघ सूची के तहत आता है ना कि राज्य सूची के.
नागरिकता संशोधन का बिल दिसंबर 2019 में संसद के दोनों सदनों से पास हो गया था. इसके बाद से इसे लेकर देशभर में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. इस कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, सिख, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के प्रताड़ित लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है. लेकिन इसके लिए शर्त है कि ये लोग 31 दिसंबर 2014 से भारत आए हो.
कौन से राज्य कर रहे विरोध?
केरल और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों का कहना है कि वे अपने राज्यों में सीएए को लागू नहीं होने देंगे. केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने जारी बयान में कहा कि चुनावों से पहले सीएए के प्रावधानों को अधिसूचित करने का केंद्र का ये कदम देश में अशांति लाना है. गृह मंत्रालय ने लोकसभा चुनाव के ऐलान से ठीक पहले सीएए का नोटिफिकेशन जारी किया है.
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि ये बीजेपी का काम है. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, उन्होंने न्यूज चैनलों के जरिए इसे फैलाना शुरू कर दिया है. लेकिन डरें नहीं, हम बंगाल में सीएए लागू नहीं होने देंगे. ये बंगाल है.
संविधान क्या कहता है?
संविधान के अनुसार भारत के राज्य सीएए को लागू करने से इनकार नहीं कर सकते क्योंकि नागरिकता संघ सूची के तहत आती है ना कि राज्य सूची के. संविधान के आर्टिकल 246 में संसद और राज्य विधानसभाओं के बीच विधायी शक्तियों को वर्गीकृत किया गया है.
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी ने इंडिया टुडे को बताया कि राज्यों के पास कोई विकल्प नहीं है, उन्हें संसद की ओर से पारित कानून को लागू करना होगा. जहां तक राज्यों की शिकायतों का सवाल है, वे हमेशा सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं. अगर उन्हें लगता है कि उनके नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है तो वे कोर्ट जा सकते हैं.
CAA के खिलाफ 220 याचिकाएं दायर
केरल के इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नेता असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, एनजीओ रिहाई मंच और सिटिजनन्स अगेंस्ट हेट, असम एडवोकेट्स एसोसिएशन और कुछ कानूनी छात्रों सहित सीएए के खिलाफ कुल 220 याचिकाएं दायर की गई हैं. सीएए एक्ट को चुनौती देते हुए केरल सरकार की ओर से भी एक याचिका लंबित है.
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट अश्विनी दुबे ने इंडिया टुडे को बताया कि केंद्र जिन मुद्दों पर फैसले ले सकता है, उनमें पूर्ण स्पष्टता है. राज्यों के पास केंद्र सरकार की ओर से पारित किए गए कानूनों को रद्द करने की शक्ति नहीं है. जो राज्य सीएए का विरोध कर रहे हैं, संविधान के अनुरूप ऐसा करने की उनके पास कोई शक्ति नहीं है.
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बता दें कि सीएए को संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत लागू किया गया है. ऐसे 97 विषय हैं, जिन्हें संघ सूची की 7वीं अनुसूची के अधीन हैं, जिनमें रक्षा, विदेश मामले, रेलवे और नागरिकता आदि शामिल हैं.
दुबे ने कहा कि अगर राज्य सीएए को अपने यहां लागू नहीं करते तो ये एक तरह से नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन होगा. अगर जरूरत पड़ी तो किसी विशेष राज्य के नागरिक अपने मौलिक अधिकारों को लागू करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट अनस तनवीर ने इंडिया टुडे को बताया कि नागरिकता पूरी तरह से केंद्र सरकार का अधिकार क्षेत्र है. लेकिन संघवाद में ऐसी परंपरा है कि राज्य भी इसमें अपनी भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि, ये केंद्र सरकार पर निर्भर है कि वे इसमें राज्य सरकारों को भागीदार बनाएं या नहीं.