भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ रविवार को सेवानिवृत्त हो गए. इस मौके पर बार काउंसिल के सदस्यों ने उनके कार्यकाल के बारे में अपने विचार साझा किए हैं और उनके द्वारा दिए एक ऐतिहासिक फैसलों, योगदान को याद किया. साथ ही बार सदस्यों ने उन क्षेत्रों का भी याद किया, जहां सीजेआई उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे.
जैसा कि अक्सर कहा जाता है कि बार काउंसिल एक न्यायाधीश की विरासत के सही मापदंड होता है. जिससे ये समझना जरूरी हो जाता है कि कानूनी समुदाय के वरिष्ठ सदस्य कार्यालय में अपने वक्त को कैसे देखते हैं. इसी को लेकर इंडिया टुडे ने कई प्रमुख अधिवक्ताओं से उनके दृष्टिकोण जानने के लिए संपर्क किया है. क्योंकि बार का आत्मविश्वास किसी भी जज के लिए व्यापक रूप से अपरिहार्य माना जाता है.
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने न्यायपालिका के आधुनिकीकरण के लिए सीजेईआ चंद्रचूड़ के समर्पण के लिए याद किया. लूथरा ने कहा, "डिजिटल अदालतों और तकनीकी एकीकरण की वकालत करने के लिए जाने जाने वाले डीवाई चंद्रचूड़ ने कानूनी पेशे को आभासी उपकरणों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया, जबकि कुछ ने महामारी से पहले की फिजिकल हेयरिंग की वापसी की मांग की थी."
उन्होंने कहा, "वह हमेशा बार के प्रति विनम्र रहे, उन्हें हमेशा मुस्कुराते रहने और अपने कोर्ट को ग्रेस से संचालित करने के लिए याद किया जाएगा."
'परिवार्तनकारी रहा CJI चंद्रचूड़ का कार्यकाल'
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा ने कहा कि सीजेआई चंद्रचूड़ के न्याय व्यवस्था के लिए परिवर्तनकारी रहा है और बार की जरूरतों पर ध्यान देने के लिए उन्होंने सीजेआई की जमकर तारीफ की है.
पाहवा के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश के कार्यों जैसे मुद्दों को सुलझाने के लिए सीधे रजिस्ट्रार को बुलाना, "अदालत के कामकाज में सुधार और न्याय तक पहुंच के प्रति समर्पण" को दर्शाता है.
पाहवा ने चंद्रचूड़ द्वारा शुरू किए गए ई-फाइलिंग, वर्चुअल सुनवाई और डिजिटल रिकॉर्ड-कीपिंग जैसे सुधारों की भी सराहना की. जिसमें उन्होंने कहा कि "विशेष रूप से जियोग्राफिकल और फाइनेंस जैसी बाधाओं का सामना करने वाले लोगों के लिए न्याय प्रणाली तक पहुंच में काफी तेजी लाई है.
पाहवा ने कहा, "डीवाई चंद्रचूड़ की सेवानिवृत्ति एक युग के अंत का प्रतीक है, लेकिन न्यायिक नवाचार, सुधार और संवैधानिक आदर्शों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की उनकी विरासत न्यायविदों, अधिवक्ताओं और नागरिकों को समान रूप से प्रेरित करती रहेगी."
'इन फैसलों के लिए किया जाएगा याद'
वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने प्रोग्रेसिव प्राइवेसी, होमोसेच्युअलिटी, व्यभिचार, सेम-सेक्स मैरिज और अन्य मुद्दों पर चर्चा करते हुए सीजेआई को बहुत प्रतिष्ठित, सुरुचिपूर्ण और विद्वान" बताया है.
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया की दुनिया में एक मजबूत न्यायपालिका के साथ, कानून की अदालतों को मानवाधिकारों और स्वतंत्रता का गढ़ बनना होगा और फिर भी नागरिकों के लिए एक सुरक्षित संतुलन सुनिश्चित करना होगा जो एक नाजुक संतुलन है. मैं कह सकती हूं कि न्यायपालिका और विशेष रूप से भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा बहुत कठिन फैसले की जरूरत है, जिससे आने वाले कुछ दशकों में उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत की गवाही देगा.
'लॉ पेशे के सचिन तेंदुलकर थे CJI'
वहीं,वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने उनकी बौद्धिक क्षमता के लिए उनकी तुलना "कानूनी पेशे के सचिन तेंदुलकर" से की. हालांकि, उन्होंने माना कि चंद्रचूड़ की विरासत, किसी भी अन्य की तरह, जांच का सामना कर रही है. हेगड़े ने कहा, "वह कानूनी पेशे के सचिन तेंदुलकर थे, लेकिन तेंदुलकर की विरासत पर भी सवाल उठते रहे हैं."
एक अन्य वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने उनकी "बुद्धिमत्ता, धैर्य और अदालत में संवेदनशीलता" को पहचाना, फिर भी उल्लेख किया कि मीडिया धारणाओं पर चंद्रचूड़ के ध्यान ने मिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त की. हालांकि, शंकरनारायणन ने महसूस किया कि आलोचनाएं अक्सर अत्यधिक होती थीं.
इसके इतर अधिवक्ता संजय घोष ने निराशा जताई और सुझाव दिया कि मुख्य न्यायाधीश ने मणिपुर हिंसा, द हिंडेनबर्ग रिपोर्ट, पेगासस विवाद और महाराष्ट्र राजनीतिक संकट जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान करने के मिले मौकों को गंवा दिया.
घोष ने कहा, "दुख की बात है कि उनकी विरासत उनकी अपनी बुद्धिमत्ता और विद्वता से प्रेरित महान उम्मीदों के बोझ तले दबी हुई है." अपनी चिंताओं के बावजूद, घोष ने मुख्य न्यायाधीश के धैर्य और शिष्टाचार के लिए उनकी सराहना की है.