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'तीस्ता समझौता में पश्चिम बंगाल को क्यों नहीं किया शामिल...', सीएम ममता ने पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी

सीएम ममता बनर्जी ने यह मुद्दा उठाया है कि बातचीत के दौरान पश्चिम बंगाल को क्यों छोड़ दिया गया. ममता ने इसके लिए पीएम मोदी को विरोध पत्र भी भेजा है. टीएमसी सांसद संसद सत्र में इस मुद्दे को उठाएंगे. टीएमसी इस मुद्दे पर भारत के सहयोगियों से बातचीत कर रही है.

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ममता बनर्जी
ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को दिल्ली में शेख हसीना के साथ हुई द्विपक्षीय तीस्ता वार्ता में उन्हें शामिल नहीं करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराजगी जताई है. शेख हसीना और पीएम मोदी ने शनिवार को फरक्का समझौते के नवीनीकरण पर फैसला लिया था. फरक्का में गंगा के पानी के बंटवारे पर बांग्लादेश और भारत के बीच फरक्का समझौता 2026 में समाप्त होगा. टीएमसी ने इसे लेकर जल्द ही एक लेटर लिखकर नाराजगी जताने की बात कही थी, जिसके जानकारी आजतक ने पहले ही दी थी. अब सीएम ममता ने इसे लेकर केंद्र को चिट्ठी लिखी है और अपनी नाराजगी जताई है.

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पश्चिम बंगाल को क्यों नहीं किया शामिलः सीएम ममता
सीएम ममता बनर्जी ने यह मुद्दा उठाया है कि बातचीत के दौरान पश्चिम बंगाल को क्यों छोड़ दिया गया. ममता ने इसके लिए पीएम मोदी को विरोध पत्र भी भेजा है. टीएमसी सांसद संसद सत्र में इस मुद्दे को उठाएंगे. टीएमसी इस मुद्दे पर भारत के सहयोगियों से बातचीत कर रही है. मोदी-हसीना ने संयुक्त फैसला लिया कि बांग्लादेश की तरफ तीस्ता नदी के संरक्षण के लिए एक तकनीकी टीम रंगपुर जाएगी.

भारत ढाका में जलाशय बनाने में मदद करेगा. बंगाल की सीएम ने पार्टी नेताओं से कहा, "मैं बांग्लादेश के खिलाफ नहीं हूं. ढाका के साथ व्यक्तिगत संबंध भी अच्छे हैं, लेकिन मैं पश्चिम बंगाल की सीएम हूं. मुझे बंगाल के हितों की रक्षा करनी है. तीस्ता नदी एक है. आप बांग्लादेश में जल भंडार पर निर्णय ले रहे हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार को सूचित किए बिना, क्या यह संघीय एकता है?”

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सीएम ममता ने लिखी चिट्ठी
ममता ने पीएम को कड़ा पत्र लिखकर उन्हें शामिल किए बिना तीस्ता नदी जल बंटवारा वार्ता पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है और कहा है कि राज्य सरकार की भागीदारी के बिना बांग्लादेश के साथ तीस्ता जल बंटवारे और फरक्का संधि पर कोई चर्चा नहीं की जानी चाहिए. 

चिट्ठी में ममता बनर्जी ने क्या लिखा?
पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी में ममता बनर्जी ने कहा कि, राज्य सरकार के परामर्श और राय के बिना इस तरह की एकतरफा विचार-विमर्श और चर्चा न तो स्वीकार्य है और न ही वांछनीय है.  भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से बांग्लादेश के साथ हमारा बहुत करीबी रिश्ता है, मैं बांग्लादेश के लोगों से प्यार करती हूं और उनका सम्मान करती हूं और हमेशा उनकी भलाई की कामना करती हूं. पश्चिम बंगाल राज्य ने अतीत में कई मुद्दों पर बांग्लादेश के साथ सहयोग किया है. भारत-बांग्लादेश परिक्षेत्रों, जिन्हें चितमहलों के नाम से भी जाना जाता है, के आदान-प्रदान पर समझौता, भारत-बांग्लादेश रेलवे लाइन और बस सेवाएं इस क्षेत्र में अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए बांग्लादेश के साथ मिलकर काम करने के कुछ मील के पत्थर हैं. 

हालाँकि, पानी बहुत कीमती है और लोगों की जीवन रेखा है. हम ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर समझौता नहीं कर सकते जिसका लोगों पर गंभीर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ऐसे समझौतों के प्रभाव से सबसे ज्यादा नुकसान पश्चिम बंगाल के लोगों को होगा. मुझे पता चला कि भारत सरकार भारत बांग्लादेश फरक्का संधि (1996) को नवीनीकृत करने की प्रक्रिया में है, जो 2026 में समाप्त होनी है. यह एक संधि है जो बांग्लादेश और भारत के बीच जल बंटवारे के सिद्धांतों को रेखांकित करती है और जैसा कि आप जानते हैं इसका पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए अपनी आजीविका बनाए रखने पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है और फरक्का बैराज में जो पानी मोड़ा जाता है, वह कोलकाता बंदरगाह की नौवहन क्षमता को बनाए रखने में मदद करता है.

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'भारत के पूर्वी हिस्से में बदला नदी की आकृति का विज्ञान'
सीएम ममता ने कहा 'मैं आपके ध्यान में लाना चाहूंगी कि कई वर्षों में भारत के पूर्वी हिस्से और बांग्लादेश में नदी की आकृति विज्ञान बदल गया है, जिससे पश्चिम बंगाल वंचित हो गया है और राज्य में पानी की उपलब्धता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. पिछले 200 वर्षों में गंगा (और बांग्लादेश में पद्मा) का पूर्व की ओर पलायन हुआ है, जिससे पश्चिम बंगाल की कई नदियों के साथ उनका संबंध बाधित हो गया है. उदाहरण के लिए, जलांगी और माथाभंगा नदियाँ/पद्मा से अलग हो गईं और सुंदरबन में ताज़ा पानी का प्रवाह नबन्ना है.'

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