संविधान को अपनाने के 75 साल के मौके पर देश की संसद में चार दिन चली संविधान पर चर्चा एक ऐसे हंगामे पर आकर खत्म हुई है जहां संविधान की बात कम हुई और आंबेडकर का नाम सभी ने लिया. आंबेडकर के अपमान का आरोप लगाया गया. सबकुछ आंबेडकर के नाम पर हुआ. वो नाम जो भारत में पिछड़ों को आगे लाने की पहचान है, वो नाम जो प्रतीक है जुल्म के खिलाफ आवाज का, सिद्धांतों का और अब नेताओं के लिए सियासी मौकों का भी, जिनके अपमान का आरोप लगाकर खुद सम्मान का दावा करती संसद चर्चा की जगह दांव देने का अखाड़ा बन गई.
संविधान को स्वीकार करने के 75वें वर्ष के मौके पर संविधान से चलने वाले देश और देश की संसद में संविधान पर होती चर्चा के दौरान आंबेडकर के नाम पर राजनीति का वो अखाड़ा दिखा, जिसने देश को संविधान की सौगात देने वाले आंबेडकर की चिंता को जमीन पर ला दिया. चार दिन जिस संसद में संविधान की कसमें खाई गईं, वहां पांचवें दिन आंबेडकर के नाम पर इस्तीफा मांगने और अपनी राजनीति साधने के दांव-पेंच आ गए.
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एक-दूसरे पर वार-पलटवार कर रहे कांग्रेस-बीजेपी
कांग्रेस ने 17 दिसंबर को रात 9 बजकर 19 मिनट पर अमित शाह के बयान के एक हिस्से को लगाकर वीडियो पोस्ट किया. कांग्रेस ने लिखा कि BJP और RSS के नेताओं के मन में बाबा साहेब आंबेडकर को लेकर बहुत नफरत है. राज्य सभा में अमित शाह के भाषण के एक हिस्से के आधार पर ही आंबेडकर के अपमान का आरोप लगाकर कांग्रेस ने सुबह हाथ में आंबेडकर की तस्वीर लेकर संसद में प्रदर्शन किया. शाम को अरविंद केजरीवाल भी आंबडेकर के अपमान का मुद्दा उठाकर प्रदर्शन करने निकले.
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मनुस्मृति को मानने वालों को आंबेडकर से तकलीफ बेशक होगी. आंबेडकर के अपमान को मुद्दा बनाती विपक्ष के दांव का जवाब देने के लिए छह पोस्ट प्रधानमंत्री ने किए. साफ लिखा कि संसद में गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के आंबेडकर के अपमान करने वाले और एससी-एसटी को नजरअंदाज करने के काले इतिहास को उजागर कर दिया तो अब कांग्रेस नाटकबाजी करने लगी है.
आंबेडकर के अपमान और सम्मान की इस राजनीति में बीजेपी याद कराती है कि आंबेडकर के जीवित रहते और मृत्यु के बाद भी कांग्रेस ने हमेशा उनका अपमान किया तो कांग्रेस ये याद दिलाना चाहती है कि बीजेपी के मन में आंबेडकर और संविधान को लेकर श्रद्धा नहीं है. इन सबके बीच आप लोकसभा चुनाव और उसके आसपास की राजनीति को याद करिए.
संविधान और आंबेडकर के आसपास हो रही राजनीति
लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी, अखिलेश यादव संविधान लेकर वोट मांगने निकले. इसके बाद संसद में भी हाथ में संविधान लेकर ही कई सांसदों ने शपथ ली. फिर शपथ लेने के दौरान जय संविधान का नारा लगाने को लेकर विवाद हुआ. इन सबके बाद संविधान को मुद्दा बनाती कांग्रेस को बीजेपी ने आपातकाल के पचास साल होने पर कार्यक्रम करके घेरा. 26 जून को लोकसभा में आपातकाल के खिलाफ निंदा प्रस्ताव आता है. इसके बाद विपक्ष के कई सांसदों ने सेंगोल की जगह संविधान को ही स्थापित करने की मांग की और अब आंबेडकर के अपमान का आरोप वाली राजनीति आई है.
इसकी वजह है दलित वोटबैंक. देश में 20 करोड़ 13 लाख 78 हजार 86 दलित हैं, जो देश की आबादी का 16.63 फीसदी हैं. देश के 76.4 फीसदी दलित ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, जबकि पूरे देश की आबादी के 68.8 फीसदी लोग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. यानी ज्यादातर दलित आबादी गांवों में हैं. देश के 23.6 फीसदी दलित शहरी इलाकों में रहते हैं जबकि पूरे देश की आबादी के 31.2 फीसदी लोग शहरी इलाकों में रहते हैं. क्या इसी वोट को साधने की जुगत में कांग्रेस ने आंबेडकर के अपमान का आरोप लगाकर मुद्दा बनाया है? क्या सिर्फ दलित वोट से मिली सीटों के उत्साह ने अमित शाह के बयान के आधे हिस्से को दिखाकर कांग्रेस को पूरी राजनीति करने का मौका दिया?
राहुल गांधी बुधवार शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस करने नहीं आए बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पहुंचे. मल्लिकार्जुन खड़गे सिर्फ अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष होने की वजह से ये मोर्चा नहीं संभाल रहे. कांग्रेस ने इसलिए भी उन्हें आगे किया होगा क्योंकि वो दलित नेता भी हैं. अब सवाल है कि क्या कांग्रेस को लगता है कि आधे बयान का मुद्दा मजबूती से उठाकर बीजेपी को उस वोटबैंक पर घेरा जा सकता है क्योंकि दलितों-पिछड़ों का वोट इंडिया गठबंधन को इस बार लोकसभा चुनाव में मिला है.
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दलित वोटबैंक का आंकड़ा
आंकड़ा है कि देश की 156 सीटें ऐसी हैं, जहां दलित वोट काफी संख्या में है. इन 156 सीटों में से इस बार विपक्षी गठबंधन ने 93 और एनडीए ने 57 सीटें जीतीं. दलित वोट वाली 156 सीटों में इस बार 2019 के मुकाबले विपक्ष को 53 सीटों का फायदा कराया और एनडीए को 34 सीट का नुकसान कराया. क्या कांग्रेस को ये लगने लगा है कि आंबेडकर के अपमान का मुद्दा उठाकर वो इसी दलित वोट को अपने साथ आगे भी जोड़ या बढ़ा सकती है? और इसीलिए कांग्रेस ही सबसे ज्यादा आक्रामक हो रही है.
देश में लोकसभा की 543 सीटों में से 84 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं. लेकिन मुद्दा सिर्फ 84 सीटों का है ही नहीं. देश के कुछ बड़े राज्यों में 20 फीसदी से ज्यादा दलित वोट वाली सीटों का हिसाब देखकर आप इस मुद्दे पर होती सियासत को समझ जाएंगे.
यूपी- 42, पश्चिम बंगाल- 26, तमिलनाडु- 21, पंजाब- 13, कर्नाटक- 11, राजस्थान- 10, आंध्र प्रदेश- 9, बिहार- 6, हरियाणा- 5, तेलंगाना- 3, एमपी- 8, महाराष्ट्र- 4 सीट ऐसी हैं लोकसभा की जहां 20 प्रतिशत से ज्यादा यानी हर पांच में एक वोट दलित नागरिक का है. क्या यही वजह नहीं है कि देश में बड़े राज्यों की 150 से ज्यादा सीट पर जब दलित वोट प्रभावी है तो कांग्रेस संविधान की कॉपी दिखाकर आरक्षण खत्म होने का डर जताकर जो फायदा 7 महीने पहले पा चुकी है, अब उसी को फिर से भुनाना चाहती है.
देश के 74 जिलों में दलित आबादी 25 फीसदी से ज्यादा है यानी हर चार वोटर में एक दलित है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि जैसे मुस्लिम वोटिंग का एक पैटर्न देखा जाता है, वैसे ही दलित वोट के शिफ्ट होने का पैटर्न समय समय पर देखा गया है. जहां बीस साल पहले कांग्रेस को बीजेपी से दोगुना दलित वोट देश में मिलता रहा लेकिन 2004 में जहां बीजेपी कुल 13 प्रतिशत दलित वोट पाती थी, वो बीजेपी अब कांग्रेस से 12 प्रतिशत ज्यादा वोट हासिल करती है. तो क्या कांग्रेस को लगता है कि मुद्दा उठाने से वक्त बदलेगा?
विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को नहीं मिला फायदा
जिस वक्त देश में हिंदू, हिंदू मंदिर और मस्जिदों में मंदिर खोजती राजनीति अचानक बढ़ती दिख रही है ऐसे वक्त में आंबेडकर के दिखाए रास्ते पर खुद के चलने के सियासी दावे इसलिए आए क्योंकि दलित मतदाता आंबेडकर को ही भगवान मानता है. लेकिन लोकसभा चुनाव में जो फायदा कांग्रेस दलित वोट पर पाई, अब वो हासिल करती नहीं दिख रही है. जैसे हरियाणा में दलितों के लिए आरक्षित सीट पर पिछली बार के मुकाबले पांच से बढ़कर बीजेपी की आठ सीटें हो गईं.
महाराष्ट्र में देखें तो 2024 लोकसभा चुनाव में INDIA गठबंधन से 11% NDA पीछे था. दावा है कि विधानसभा चुनाव में NDA की विपक्ष पर 7% की लीड हो गई. जो दलित वोट इस बार विपक्षी गठबंधन के लिए थोड़ा फायदेमंद होता दिखा था, वहां बीजेपी ने फिर मजबूती से वापसी की और इसीलिए राजनीतिक जानकार मानते हैं कि संसद में संविधान पर होती चर्चा के दौरान आंबेडकर के अपमान का मुद्दा इतना बड़ा बनाया गया.