महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और बाला साहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे के हाथ से शिवसेना पूरी तरह से निकल गई. चुनाव आयोग ने शुक्रवार को एक बहुत महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें उसने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को असली शिवसेना माना है और शिंदे गुट को शिवसेना नाम और शिवसेना का चुनाव चिन्ह धनुष बाण इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी है. यानि धनुष-बाण वाली शिवसेना अब एकनाथ शिंदे की हो गई है और उद्धव ठाकरे के पास अब सिर्फ ठाकरे परिवार का नाम ही बचा है.
बता दें कि शिवसेना की स्थापना वर्ष 1966 में हुई थी और 57 साल बाद पहली बार ऐसा हुआ है, जब शिवसेना की कमान बाला साहेब ठाकरे के परिवार के हाथों से निकल चुकी है. अब इस पार्टी की विरासत का नेतृत्व एकनाथ शिंदे करेंगे, जो ठाकरे परिवार के सदस्य नहीं हैं. चुनाव आयोग को ये फैसला इसलिए लेना पड़ा क्योंकि पिछले साल शिवसेना पार्टी में दो गुट बन गए थे. एक गुट था एकनाथ शिंदे का, जिन्होंने पार्टी के ज्यादातर विधायकों को अपने साथ लेकर तख्ता-पलट कर दिया था. और बीजेपी के साथ सरकार बना ली थी. वहीं दूसरा गुट उद्धव ठाकरे का था, जिनके पास 56 में से 15 विधायक भी नहीं बचे थे. और इसकी वजह से तब उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ा था.
राजनीतिक दल में फूट कोई नई बात नहीं है. अतीत में भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें पार्टियां दो फाड़ हुईं और दो अलग-अलग गुटों ने वास्तविक पार्टी की मान्यता की मांग की. इतिहास के पन्नों को उलटकर देखें तो पार्टी दो फाड़ होने का कुछ नेताओं को लाभ हुआ तो कुछ नेताओं की नई पार्टी या तो अपनी जमीन खो बैठी या फिर अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. सबसे महत्वपूर्ण मामला जो बेंचमार्क बन गया था, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का है, जो 1969 में विभाजित होकर दो पार्टियों - कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आई) के गठन की ओर अग्रसर हुई.
जब कांग्रेस में हुई थी तकरार
इसके बाद, 1978 में कांग्रेस दूसरी बार विभाजित हुई, जब कांग्रेस (इंदिरा) और कांग्रेस (यू) बनाई गईं. जिसे कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री डी. देवराज उर्स द्वारा बनाया गया था. वहीं 1980 के दशक में, तमिलनाडु में AIADMK दो गुटों में विभाजित हो गई, एक MGR की पत्नी जानकी के नेतृत्व में और दूसरी जे जयललिता के नेतृत्व में. इसी तरह 1989 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गठित हुई जनता दल भी दो फाड़ हो गई थी. 1999 में लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी दो फाड़ होकर जद (यू) और जद (एस) हो गईं.
उत्तराखंड क्रांति दल और सपा भी हुई थी दो फाड़
2012 में उत्तराखंड में भी ऐसी ही स्थिति थी, जहां उत्तराखंड क्रांति दल दो फोड़ हुई. पार्टी दो गुटों दिवाकर भट्ट-यूकेडी (डी) और त्रिवेंद्र सिंह पंवार—यूकेडी (पी) में बंट गई. वहीं 2017 में यूपी में भी चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी टूटी और शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया. हालांकि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद चाचा भतीजे के बीच की खाई कम हुई और शिवपाल ने अपनी पार्टी का विलय सपा में कर दिया.
(रिपोर्ट- बिकास सिंह)