बाबासाहेब आंबेडकर ने 20 मार्च 1927 को महाड़ सत्याग्रह के ज़रिए जातिगत भेदभाव को सीधी चुनौती दी थी. इसी वजह से कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुरुवार को शिक्षाविद और अर्थशास्त्री सुखदेव थोराट के साथ दलितों की शासन, शिक्षा, नौकरशाही और संसाधनों तक पहुंच और जातीय जनगणना के विषय पर चर्चा की है. इस बातचीत का एक वीडियो भी राहुल गांधी ने पोस्ट किया है, जिसमें वह जातीय जनगणना के महत्व के बारे में चर्चा कर रहे हैं.
दलितों का अधिकार छीना गया
वीडियो में राहुल गांधी ने कहा कि दलितों और पिछड़ों के पास जातीय जनगणना का संवैधानिक अधिकार है लेकिन ऐसा न करके उनका हक छीना जा रहा है. उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना न कराकर उनके साथ अन्याय हो रहा है. संविधान में सभी भारतीयों को एक समान अधिकार हासिल है और सबको बराबरी के साथ देखा जाता है लेकिन सरकार इसे स्वीकार नहीं करना चाहती.
सुखदेव थोराट ने कहा कि बाबासाहेब के प्रयासों से हमें संविधान में बराबरी का हक हासिल है. लेकिन फिर भी रीति-रिवाजों और धार्मिक विश्वास में बराबरी नहीं मिल पाई है और वहां उच्च जातियों का दबदबा है. उन्होंने कहा कि 2014 से 2020 के बीच दलित उत्पीड़न के 4 लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं और हर साल ऐसे 14 हजार केस सामने आ रहे हैं. इसका बड़ा कारण है कि अनुसूचित जातियों तक संसाधनों की पहुंच नहीं है.
यहां देखें पूरी बातचीत:
पिछड़ों का इतिहास मिटाया
राहुल गांधी के कहा कि बीजेपी और RSS ने दलित, आदिवासी और पिछड़ों के इतिहास को मिटा दिया है. इस पर प्रोफेसर थोराट ने कहा कि रिसर्च और पाठ्यक्रम उच्च जातियों के हाथ में हैं और वे दलितों या पिछड़ी जातियों के वास्तविक हालात के बारे में कभी नहीं लिखेंगे. इसी वजह से महाराष्ट्र ने दलित साहित्य का नेतृत्व किया जिसे बाद में उच्च जातियों को भी स्वीकार करना पड़ा. इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि लेकिन यह इतिहास आज भी पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है और दिल्ली के स्कूल में पढ़ने वाले किसी भी लड़के या लड़की को इस बारे में नहीं पता क्योंकि वह मुख्य एजुकेशन सिस्टम का हिस्सा नहीं है.
राहुल गांधी ने कहा कि पिछड़ी जातियों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के लिए बीजेपी इस समाज के लोगों को सांसद या विधायक तो बना रही है लेकिन ऐसा प्रतिनिधित्व किसी मतलब का नहीं है क्योंकि उनसे वास्तविक शक्ति छीनी जा रही है. संस्थागत शक्ति जैसे नौकरशाही, कॉर्पोरेट और खुफिया एजेंसियों में पिछड़ी जातियों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है.
जातीय जनगणना का विरोध राष्ट्र का विरोध
उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली, स्वास्थ्य सेवाओं और नौकरशाही पर किसका कब्जा है यह जानना एक मौलिक राष्ट्रवादी अभ्यास है. कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि मुझे लगता है कि जातीय जनगणना का समर्थन न करना असल मायने में राष्ट्रविरोधी है. क्योंकि इससे साफ है कि आप देश की सच्चाई स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं.