संसद का मॉनसून सत्र सरकार और विपक्ष के सियासी युद्ध का अखाड़ा बना हुआ है. विपक्ष का आरोप है कि सदन में उनकी आवाजा को दबाया जा रहा है. वहीं, सरकार का कहना है विपक्षी दलों के नेता जानबूझकर सदन की कार्यवाही बाधित कर रहे हैं.
इस घमासान के बीच मंगलवार को राज्यसभा में संसदीय मर्यादाओं को तार-तार करने वाली घटना हुई. राज्यसभा में विपक्षी दलों के नेताओं ने जमकर हंगामा किया. इस दौरान विपक्षी दलों के नेता वेल में पहुंचे और डेस्क पर चढ़कर आसन की तरफ रूल बुक भी फेंक दी.
दरअसल, विपक्ष की मांग पर राज्यसभा में किसानों के मुद्दों पर चर्चा होनी थी. वक्त भी तय हो गया था लेकिन चर्चा की बजाय सिर्फ हंगामा देखना को मिला. कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा डेस्क पर चढ़कर जमकर नारेबाजी और रूल बुक फेंक दिया. विपक्ष दलों के नेताओं को कहना था कि सरकार कृषि कानूनों पर चर्चा ही नहीं करना चाहती है.
वहीं, आज तक से खास बातचीत में कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि सरकार नए कृषि कानूनों पर हमारी एक नहीं सुन रही है. जब सरकार ने हमारे लिए सारे रास्ते बंद कर दिए हैं तो हमारे पास और कोई रास्ता नहीं बचता. अगर मौका मिलता है तो हम सौ दफा और ऐसा करेंगे.
विपक्ष पर बरसे केंद्रीय कृषि मंत्री
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि राज्यसभा में आज कृषि पर चर्चा शुरू ही हुई थी लेकिन कांग्रेस, TMC, AAP का जो अलोकतांत्रिक रवैया रहा. उसकी मैं भर्त्सना करता हूं. कृषि के क्षेत्र में पीएम मोदी ने 2014 के बाद लगातार जो प्रयत्न किए हैं उससे लगातार कृषि का क्षेत्र आगे बढ़ रहा है. अगर कांग्रेस, TMC, AAP के मन में किसानों के प्रति चिंता होती तो वो सभी चीज़ों को छोड़कर अपने सुझाव और विचार रखते.
क्या बोले संसदीय कार्य मंत्री ?
वहीं, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि विपक्षी सांसदों ने कृषि मुद्दों पर चर्चा की मांग की थी, लेकिन जैसे ही हमारे सदस्य ने इस मुद्दे पर बोलना शुरू किया तो विपक्षी दलों के नेताओं ने नारेबाजी शुरू कर दी. हमारे सदस्यों पर रूलबुक फेंकने लगे. ये संसदीय गरिमा को गिराने वाली हरकत है. ये निंदनीय है.
मनोज झा ने सरकार पर खड़े किए सवाल
राज्यसभा में विपक्ष के हंगामे पर RJD सांसद मनोज झा ने कहा कि किसान आंदोलन 9वें महीने में जा चुका है. हम हाथ जोड़कर विनती करते रहे हैं इन कानूनों की वापसी पर चर्चा हो. अगर संसद सड़क पर बैठे किसानों की पीड़ा नहीं समझ रही यानी संसद की गरिमा का सत्ता प्रतिष्ठान को ख्याल नहीं है.