राजद्रोह कानून को लेकर लॉ कमीशन (विधि आयोग) की रिपोर्ट को वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने बेहद दुखद और विश्वासघाती बताया है. उन्होंने कहा कि बीजेपी राजद्रोह के कानून का उपयोग तोड़फोड़ और असहमति को दबाने के रूप में करती है. अब भाजपा सरकार औपनिवेशिक शासन की तुलना में अधिक कठोर और घातक बनने की योजना बना रही है.
दरअसल, राजद्रोह कानून को लेकर सरकार ने विधि आयोग से रिपोर्ट मांगी थी. इस पर लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है. विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि कुछ संशोधन के साथ इस कानून को बनाए रखा जा सकता है. आयोग ने ये भी कहा कि इस कानून को समाप्त करने की जरूरत नहीं है. इसके बाद एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की.
अभिषेक मनु सिंघवी की प्रेस कॉन्फ्रेंस की बड़ी बातें...
A. सिंघवी ने इस रिपोर्ट को लेकर कहा कि इस कानून के तहत सजा को कम से कम तीन और अधिकतम सात साल बढ़ाकर मौजूदा राजद्रोह कानून को कहीं अधिक कठोर, आक्रामक और पक्षपातपूर्ण बनाने का प्रयास किया गया है.
B. ये रिपोर्ट पिछले साल मई और अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही की भावना को नज़रअंदाज़ करती है. जिसने देश में राजद्रोह के पूरे अपराध को निष्क्रिय कर दिया था.
C. 2014 से देश में इस कानून के जारी रहने और उपयोग/दुरुपयोग को रोकने के लिए कोई प्रासंगिक या उपयोगी चेतावनी, सुरक्षा या सीमा प्रदान नहीं की गई है.
D. इस रिपोर्ट के जरिए एक स्पष्ट संकेत दिया गया है कि वह अपनी औपनिवेशिक मानसिकता को बरकरार रखे हुए हैं, ताकि भाषण, विचार और कार्रवाई की स्वतंत्रता पर एक खतरा मंडराता रहे.
E. राजनीतिक असहमति के खिलाफ इस कानून के पक्षपातपूर्ण दुरुपयोग को जारी रखने के अपने स्पष्ट इरादे को अस्पष्ट रूप से घोषित किया है.
लॉ कमीशन की रिपोर्ट पर कांग्रेस ने उठाए सवाल
1. भाजपा शासन के दौरान राजद्रोह के मामले क्यों बढ़े हैं? क्या सरकार आलोचना को रोकने के लिए एक हथियार के रूप में इसका दुरुपयोग कर रही है?
2. क्या यह आगामी आम चुनावों से पहले असहमति को और अधिक सख्ती से रोकने की दिशा में एक प्रारंभिक कदम है?
3. देशद्रोह के मुकदमे सिर्फ विपक्षी नेताओं पर ही क्यों लगाए गए हैं? कितने भाजपा नेताओं पर कानून के तहत आरोप लगाए गए हैं?
4. क्या भारत सरकार द्वारा विधि आयोग का संदर्भ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की सच्ची भावना को धोखा देना मात्र था? इसका उद्देश्य राजद्रोह की विनाशकारी अवधारणा को वैध बनाना और अतिरिक्त कानूनी आवरण प्रदान करना था?
5. इस सरकार ने अपनी कंट्रोल फ्रीक सरकार शैली क्यों नहीं बदली? उपनिवेशवाद के खिलाफ पाखंडी शपथ लेते हुए यह सरकार अपनी औपनिवेशिक मानसिकता को क्यों नहीं छोड़ पाई है?
लॉ कमीशन की रिपोर्ट पर क्या बोले कानून मंत्री?
देशद्रोह कानून पर विधि आयोग की रिपोर्ट को लेकर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की प्रतिक्रिया भी आ गई है. उन्होंने कहा कि राजद्रोह पर विधि आयोग की रिपोर्ट व्यापक परामर्श प्रक्रिया के बाद आई है. रिपोर्ट में की गई सिफारिशें प्रेरक हैं और बाध्यकारी नहीं हैं. सभी हितधारकों से विचार-विमर्श के बाद ही अंतिम फैसला लिया जाएगा. अब हमें रिपोर्ट मिल गई है, हम अन्य सभी हितधारकों के साथ भी परामर्श करेंगे, ताकि हम जनहित में तर्कपूर्ण निर्णय ले सकें.
विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा?
1- लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा के लिए इस कानून का रहना आवश्यक और अनिवार्य है. आयोग ने राजद्रोह अपराध को लेकर अपनी सिफारिश में ये भी कहा है कि राजद्रोह जैसे देश विरोधी अपराध के लिए सजा बढ़ाई जाए. आयोग ने इस कानून के तहत कम से कम तीन और अधिकतम सात साल कैद के साथ ही जुर्माना लगाने का प्रावधान किए जाने का भी प्रस्ताव दिया है.
2- विधि आयोग के चेयरमैन ने अपने पत्र में कहा है कि सीआरपीसी, 1973 की धारा-196(3) के अनुरूप सीआरपीसी की धारा-154 में एक प्रावधान जोड़ा जा सकता है. ये प्रावधान आईपीसी की धारा- 142ए के तहत अपराध के संबंध में एफआईआर दर्ज करने से पहले जरूरी प्रक्रिया को लेकर सुरक्षा उपलब्ध कराएगा.
3- किसी प्रावधान के दुरुपयोग का कोई भी आरोप उस प्रावधान को रद्द करने या वापस लेने का आधार नहीं हो सकता. इसके अलावा औपनिवेशिक विरासत होना भी इसे वापस लेने का वैध आधार नहीं है.
4- रिपोर्ट में आयोग का कहना है कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम जैसे कानून अपराध के उन सभी तत्वों को कवर नहीं करते, जिनका वर्णन आईपीसी की धारा-124 ए में किया गया है.
5- हर देश की कानून और न्याय प्रणाली वहां की अलग-अलग तरह की स्थानीय वास्तविकताओं से जूझती है और उसी तरह काम भी करती है. ये गलत परिपाटी होगी कि IPC की धारा-124 ए को केवल इस आधार पर निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा कदम उठाया है तो हमें भी उठाना चाहिए, सही नहीं है.
6- रिपोर्ट के साथ संलग्न पत्र में जस्टिस अवस्थी ने इस बात का भी जिक्र किया है कि धारा-124 ए की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई थी. तब सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि इस धारा की वस्तुस्थिति और प्रासंगिकता को लेकर सरकार नए सिरे से विचार कर रही है.