केंद्र की नीतियों की लगातार आलोचना करने वाली कांग्रेस ने एक बार फिर मोदी सरकार पर हमला बोला है. कांग्रेस ने कहा कि सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था में गड़बड़ी की है और कई क्षेत्रों को मूलतः समाप्त ही कर दिया. यह इस सरकार के आर्थिक प्रबंधकों और सलाहकारों की आर्थिक मामलों पर बुनियादी समझ पर सवालिया निशान है. महंगाई भत्ते को काटना डूबती अर्थव्यवस्था का एक और संकेत है.
कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान और उससे पहले भी अपने आर्थिक कुप्रबंधन के चलते अर्थव्यवस्था को ठप करने के बाद अब मोदी सरकार और आर्थिक विनाश करने पर आमादा है. इस बार सरकार ने फिर से लोगों कि आय पर एक और गहरा प्रहार किया है. 19 नवंबर को सरकार ने केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) के कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ते में होने वाली वृद्धि पर जून 30, 2021 तक रोक लगा दिया है.
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि सरकार की ओर से लगाई गई इस रोक से 339 केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के 14.5 लाख से अधिक कर्मचारियों पर असर पड़ेगा. इसी मोदी सरकार ने अप्रैल में 113 लाख केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनरों जिसमें हमारी सेना भी शामिल हैं उनके महंगाई भत्ते, महंगाई राहत व सभी पुरानी और भविष्य की किश्तें काट दी थीं.
कांग्रेस प्रवक्ता श्रीनेत ने कहा कि तेजी से बढ़ती महंगाई ने मुश्किलें और भी बढ़ा दी हैं. अक्टूबर माह में इन्फ्लेशन में 7.61% की वृद्धि, विशेष रूप से खाद्य पदार्थों में 11.6% की वृद्धि गहन चिंता का कारण है. सीधे शब्दों में कहें तो महंगाई के बावजूद DA में रोक केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों, PSU कर्मचारियों, पेंशन पाने वाले और सेना के वेतन में कटौती करेगी. केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों के महंगाई भत्ते को काटना डूबती अर्थव्यवस्था का एक और संकेत है. यह स्पष्ट है कि सार्वजनिक उपक्रम पैसा नहीं कमा रहे हैं और यही वजह है कि उनके कर्मचारियों का महंगाई भत्ता अब नहीं बढ़ाया जा रहा है.
'अर्थव्यवस्था नियंत्रण से बाहर हो रही है और समाज का हर वर्ग परेशानी में है. दिक्कतें सिर्फ असंगठित क्षेत्र में ही नहीं है, बल्कि यहां तक कि सरकारी कर्मचारी भी सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन का खामियाजा भुगत रहे हैं.'
रोजगार और अवसरों का विनाश अकल्पनीयः श्रीनेत
श्रीनेत ने आगे कहा, 'यह उन लोगों की स्थिति है जिनकी आय सुनिश्चित है, जो उन कंपनियों में कार्यरत हैं जहां कोई परेशानियां नहीं हैं. अनौपचारिक क्षेत्र जहां हमारे श्रम बल के 90% लोग काम करते हैं वहां की दुर्दशा तो कल्पना से भी परे है. वहां रोजगार और अवसरों का विनाश अकल्पनीय है. जो लोग सबसे कमजोर हैं, उनकी मांग को पुनर्जीवित करने के लिए आय समर्थन करने के बजाए, सरकार तो सुनिश्चित आमदनी वाले सरकारी कर्मचारियों और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों की आय पर भी सेंध लगा रही है, इसका सीधा प्रभाव उपभोग और मांग दोनों पर पड़ेगा.'
अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा, 'यह अभी भी समझ में नहीं आ रहा है कि मोदी सरकार 20,000 करोड़ रुपये की केंद्रीय विस्ता परियोजना, 1.10 लाख करोड़ रुपये की बुलेट ट्रेन परियोजना या अपने व्यर्थ व्यय का 30 प्रतिशत क्यों नहीं काटती है, जो 2.5 लाख रुपये के करीब आएगा.'
सरकार में बुनियादी समझ की आलोचना करते हुए सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र सरकार में अर्थव्यवस्था की बुनियादी समझ की कमी है. यह मानने से आखिर क्यों सरकार इनकार करती है कि मांग नष्ट हो गई है और भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए पहला कदम खपत को बढ़ावा देना है. क्या सरकार यह नहीं समझती है कि मध्यम वर्ग के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों की आय को कम करना केवल अनैतिक ही नहीं है, बल्कि मांग और उपभोग को भी कम करता है.
सरकार की बुनियादी समझ पर सवाल
सरकार पर हमले जारी रखते हुए श्रीनेत ने कहा, 'हर बार जब कोई आर्थिक मंदी का मुद्दा उठाता है तो सरकार का तर्क होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सुधर रही है, जीएसटी राजस्व संग्रह मजबूत है. लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था में एक तीव्र मंदी के नित नए प्रमाण सामने आते हैं और इसको आधे सच और स्पष्ट झूठ से छुपाया नहीं जा सकता है.'
उन्होंने आगे कहा, 'हम समझते हैं कि राज्य स्तर में वित्तीय प्रबंधन व्यय और राजस्व मात्र ही होता है जबकि केंद्र सरकार को व्यापक आर्थिक प्रबंधन की आवश्यकता होती है, लेकिन 6.5 साल से अधिक समय तक सत्ता में रहने के बाद यह सरकार अब अनभिज्ञ तो नहीं है और अनुभव की कमी के पीछे छिप नहीं सकती है. सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था में गड़बड़ी की है और विभिन्न क्षेत्रों को मूलतः समाप्त ही कर दिया है. इस सरकार के आर्थिक प्रबंधकों और सलाहकारों की आर्थिक मामलों पर बुनियादी समझ पर एक सवालिया निशान है.'
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, 'मोदी सरकार ने लोन मेले ही लगाए हैं. निवेश को बढ़ावा देने, निर्यात बढ़ाने, खपत बढ़ाने और अधिक रोजगार सृजित करने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है. खाली वादे और विभाजनकारी सामाजिक एजेंडा आर्थिक पुनरुत्थान में मदद नहीं करेगा. आर्थिक बर्बादी को रोकने के लिए सरकार को अपने प्रयासों में ईमानदारी बरतने की जरूरत है. सरकार को प्राइम टाइम टीवी और अखबारों की सुर्खियों के प्रबंधन से निकल कर वास्तविक आर्थिक प्रबंधन में अधिक समय बिताने की जरूरत है.'
श्रीनेत ने कहा कि हमें यह भी डर है कि पीएसयू कर्मचारियों के डीए में यह रोक जो कि पहले ही केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए हो गई थी, निजी क्षेत्र को एक और कारण देगी जिसके चलते वेतन वृद्धि नहीं होगी. कई राज्य सरकारों ने पहले से ही अपने कर्मचारियों के महंगाई वेतन और महंगाई भत्ते की बढ़त को रोक दिया था, वे अब राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों में काम कर रहे कर्मचारियों के लिए भी ऐसा ही करेंगे.
अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा, 'सरकार को अपने अथक आर्थिक कुप्रबंधन को स्वीकार करने के लिए और अधिक प्रमाण की क्या आवश्यकता है? दुनिया में 3 सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बाद अब हम 7 सबसे धीमी बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं. सरकार अकेले COVID के पीछे नहीं छिप सकती क्योंकि कोरोना से पहले ही अर्थव्यवस्था निढाल हो चुकी थी, COVID के पहले ही 8 लगातार तिमाहियों में आर्थिक विकास में गिरावट तो आयी ही, वित्तीय वर्ष 2015 में जीडीपी की वृद्धि दर 8.2% से घट कर वित्तीय वर्ष 20 में 4.3% पर आ गिरी. और अब सबसे ज़्यादा चिंता का कारण GDP वृद्धि के दर में गिरावट नहीं है बल्कि पूर्णतः GDP में संकुचन है जो कि भविष्य में रोजगार के अवसरों के लिए बड़ा खतरनाक संकेत है. और सरकार लोगों की आय का समर्थन करके मांग को पुनर्जीवित करने के बजाय राज्य और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कार्यरत कर्मचारियों की आय काम करके उन लोगों की खरीदने की क्षमता को कम करने पर तुली हुई है. आखिर सरकार जले पर नमक छिड़कने में क्यों लगी हुई है और इस असंवेदनशीलता और आर्थिक नासमझी का क्या कारण है यह केवल प्रधानमंत्री मोदी जी ही बता सकते हैं.'
कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव जनवरी तकः सुप्रिया
केंद्र सरकार पर हमला करने के इतर कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर होने वाले चुनाव पर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि पहली बात तो यह है कि ना राहुल गांधी एक्टिंग प्रेसिडेंट के तौर पर ना फॉर्मर प्रेसिडेंट के तौर पर पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं. वह हमारे शीर्ष नेता हैं और इसीलिए वह सरकार पर जब हमला करते हैं और जब वह सवाल करते हैं तो सरकार भी बौखला जाती है.
उन्होंने कहा, 'कांग्रेस कार्यसमिति ने यह तय किया था कि पार्टी में जल्द ही अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा और इसी प्रक्रिया में सेंट्रल इलेक्शन अथॉरिटी काम पर लगी हुई है. भविष्य के गर्भ में क्या है यह मैं नहीं कह सकती. जनवरी तक के चुनाव होने हैं और जहां तक राहुल गांधी का सवाल है उनसे बेहतर कोई पार्टी की विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करता और वह हमारा इसी तरह से मार्गदर्शन करते रहेंगे और हमको लीड करते रहेंगे.'
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी हमारे लोकप्रिय नेता हैं. हम तो यही उम्मीद करते हैं कि वह दोबारा बतौर अध्यक्ष पद पर वापसी करेंगे और हमारी पार्टी की विचारधारा को आगे बढ़ाने का काम करेंगे.