सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ बुधवार को कई मामलों पर सुनवाई करेगी. दरअसल, जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच सुबह 10.30 बजे महाराष्ट्र के शिवसेना विवाद समेत 4 अहम मामलों की सुनवाई करेगी. पीठ में जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पामिदीघंटम श्री नरसिम्हा शामिल हैं. यही संविधान पीठ दिल्ली में केंद्रीय सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति तबादला के अधिकार को लेकर हो रहे विवाद पर भी सुनवाई करेगी. इसके अलावा असम में NRC मुद्दे पर भी सुप्रीम कोर्ट की यही संविधान पीठ सुनवाई करेगी.
बता दें कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे वाले गुट ने मंगलवार सुबह सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की तो CJI यू यू ललित ने भरोसा दिलाया है कि वो बुधवार तक कुछ ना कुछ करेंगे. लेकिन मंगलवार समाप्त होने से पहले ही पीठ का ऐलान कर दिया गया. मंगलवार को मामले की मेंशनिग करते हुए शिंदे गुट के वकील सीनियर एडवोकेट एनके कौल ने कहा कि यह मामला संविधान पीठ को भेजा गया था. अब ठाकरे पक्ष चुनाव आयोग के समक्ष कार्यवाही रोक रहा है, जो चुनाव चिन्ह से संबंधित है. लिहाजा शीघ्र सुनवाई की जरूरत है.
1. सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर दिल्ली बनाम केंद्र विवाद
दिल्ली सरकार ने 2017 में शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर स्पष्टीकरण मांगा था कि क्या दिल्ली सरकार में प्रशासनिक सेवाएं, अधिकारियों का तबादला पोस्टिंग एलजी के माध्यम से निर्वाचित सरकार या केंद्र के नियंत्रण में होगी. इस पर एक और याचिका 2021 में जीएनसीटीडी अधिनियम में संशोधन के बाद दायर की गई थी जिसके द्वारा केंद्र ने दिल्ली में "प्रशासन" को एलजी के रूप में परिभाषित किया, और कहा कि राजधानी के रूप में इसकी विशेष स्थिति के कारण, दिल्ली की निर्वाचित सरकार के पास सीमित शक्तियां होंगी. दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि इससे राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासन और सरकारी काम में कठिनाई पैदा हुई है.
2. महाराष्ट्र राजनीतिक संकट का मुद्दा
इस साल की शुरुआत में महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट के दौरान शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट और एकनाथ शिंदे गुट द्वारा शीर्ष अदालत के समक्ष 6 याचिकाओं को पेश किया गया है. शीर्ष अदालत ने 5 न्यायाधीशों की पीठ के सामने कई कानूनी मुद्दें रखे, जिसमें अयोग्यता और दलबदल विरोधी कानून की बारीकियां, अयोग्यता में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की भूमिका, अयोग्यता के मुद्दे को तय करने के लिए अदालत की भूमिका और शक्तियां, चुनाव आयोग का पार्टी नेतृत्व में दावा सुनने की शक्ति जब पार्टी में अयोग्यता का मुद्दा लंबित हो और विधानसभा में कार्यवाही की वैधता जब पार्टी और व्हिप पर प्रतिस्पर्धा का दावा हो, शामिल हैं.
3. लोकसभा और विधानसभा चुनावों में आरक्षण और एंग्लो इंडियन के लिए सीटों की वैधता
साल 2000 की शुरूआत में दायर याचिकाओं ने संविधान (79वां संशोधन) अधिनियम, 1999 की वैधता को चुनौती दी थी, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति और एंग्लो इंडियन के लिए अनुमत आरक्षण की अवधि को बढ़ा दिया था. 1999 के अधिनियम के तहत संविधान के अनुच्छेद 334 में 'पचास साल' के स्थान पर 'साठ साल' शब्द रखा गया है. याचिका में तर्क दिया गया था कि आरक्षण नीति का विस्तार करना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है, क्योंकि संविधान में आरक्षण नीति के विस्तार की परिकल्पना नहीं की गई थी. 2009 और 2019 में आरक्षण की अवधि बढ़ाने वाले संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाएं भी सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई हैं और प्रमुख मामले के साथ टैग की गई हैं, जिसमें कुल 8 जनहित याचिकाएं हैं जो संविधान के तहत आरक्षण के विस्तार को चुनौती देती हैं.
4. असम में एनआरसी और नागरिकता अधिनियम के मामले
संविधान पीठ 18 जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करेगी, जिनमें एनआरसी और नागरिकता अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी गई थी. इस मुद्दे में पहली याचिका 2009 में दायर की गई थी, जिसमें नागरिकता अधिनियम और बंगाली शरणार्थियों और स्थानीय असमियों के प्रतिस्पर्धी अधिकारों के बारे में चिंता व्यक्त की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को दिसंबर 2014 में एक संविधान पीठ के पास भेज दिया था. असम में एनआरसी की प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी सभी मुद्दे लंबित हैं. याचिकाओं ने उस आधार को भी चुनौती दी है जिसके द्वारा व्यक्तियों को असम में एनआरसी अभ्यास की निगरानी के दौरान एनआरसी सूची के मसौदे से बाहर रखा गया है.