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महीनों से भारतीय डॉक्टर चेतावनी दे रहे हैं कि गंभीर बीमारियों से पीड़ित पुराने मरीजों को अस्पताल की सुविधा नहीं मिल पा रही है. कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुए हालात में उन मरीजों को बेहद मुश्किलें पेश आ रही है जो पहले से ही गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं. इन मरीजों को दवाएं, डायलिसिस और अन्य जीवन-रक्षक सुविधाएं मिलने में कठिनाई हो रही है.
हाल ही में जारी हुए आधिकारिक आंकड़ों से पुष्टि होती है कि भारत में लोगों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में भारी कमी आई है और इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के हेल्थ मैनेजमेंट सिस्टम (NHM-HMIS) ने देश भर के दो लाख से अधिक स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों के आंकड़ों को एकत्र किया. इसमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर देश भर के जिला अस्पतालों को शामिल किया गया है. इनमें से अधिकांश सरकारी स्वास्थ्य केंद्र हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में हैं.
इस हफ्ते जारी ये आंकड़े बताते हैं कि मार्च में लॉकडाउन लागू होने के बाद लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच में भारी गिरावट आई. ये सिलसिला जून तक जारी रहा. इसके बाद के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने इस हफ्ते अप्रैल, मई और जून के आंकड़े जारी किए. मार्च के ठीक बाद, नियमित तौर पर अस्पताल आने वाले मरीजों की उपस्थिति अचानक काफी कम हो गई. इस वजह से कैंसर, शुगर, स्ट्रोक्स, हाई ब्लड प्रेशर, और मानसिक रोग जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज करा रहे मरीजों की संख्या अचानक काफी कम हो गई.
ज्यादातर बीमारियों के लिए जून में ओपीडी में जो उपस्थिति दर्ज की गई, जनवरी के मुकाबले वह 50% भी नहीं है. इसका मतलब ये हो सकता है कि ग्रामीण भारत में गंभीर बीमारी वाले मरीजों को पिछले कई महीने से उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है.
इसी अवधि में प्रमुख संक्रामक रोगों से प्रभावित मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने में भी तेजी से गिरावट आई है. डेंगू, मलेरिया, बुखार, दस्त के लिए भर्ती होने वालों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है. सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी के उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या बेहद कम हो गई है. यह सांस से संबंधित ऐसा रोग है जिससे भारत में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं.
इन आंकड़ों में यह भी जिक्र किया गया है कि टीकाकरण सेवाएं कैसे बाधित हुई हैं. बच्चों में टीबी की रोकथाम के लिए बीसीजी का टीका लगता है. अप्रैल में जितने बच्चों को टीका लगा, वह संख्या जनवरी की तुलना में आधी है, यानी इस महीने करीब दस लाख बच्चों को टीका नहीं लग पाया.
आंकड़ों से यह भी पता चला है कि मार्च से लेकर अप्रैल 2020 के बीच प्रसव से जुड़ी सुविधाएं भी कम महिलाओं तक पहुंचीं. इस दौरान देश में सबसे सख्त लॉकडाउन लागू किया गया था. सर्जरी जैसे केस में हो सकता है कि कई लोगों ने संक्रमण के जोखिम से बचने के लिए ऐच्छिक सर्जरी को टालना उचित समझा हो, लेकिन हर तरह की सर्जरी की संख्या में भारी गिरावट आई है.
एक और चिंता का विषय है कि अस्पतालों की इमरजेंसी सेवाओं में भी मरीजों के भर्ती होने की संख्या में भारी गिरावट आई है. लॉकडाउन के चलते कम दुघर्टनाओं की बात समझी जा सकती है, लेकिन प्रसव जैसी जटिल समस्याओं वाले मरीजों का कम भर्ती होना सुविधाओं तक पहुंच न होने की ओर इशारा करता है.