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मीठा बनाने के चक्कर में कैसे जानलेवा हो जाते हैं कफ़ सिरप?: दिन भर, 29 दिसंबर

चुनाव में वोट डालने के लिए घर नहीं जा पाने वाले करोड़ों वोटरों के लिए इलेक्शन कमीशन ने जो तरक़ीब निकाली है, वो कितनी प्रैक्टिकल है? कफ़ सिरप बच्चों के लिए जानलेवा कैसे हो जाते हैं, दुनिया भर में तबाही मचाने वाली आपदाओं में क्लाइमेट चेंज का कितना रोल है और सियासत में इस साल मील के पत्थर क्या रहे, सुनिए आज के 'दिन भर' में नितिन ठाकुर से.

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cough syrup for kids
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कुछ लोग मज़ाक में कहते हैं- भारत एक चुनाव प्रधान देश है. इस साल को ही देख लीजिए अब तक 7 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, अलग-अलग निकाय, पंचायत और दूसरे छोटे बड़े उपचुनाव अलग हैं. अगले साल भी दस राज्यों में चुनाव होने हैं. अब चुनाव जो हैं वोटर्स के बग़ैर मीनिंगलेस हैं, और करोड़ों वोटर रोजी रोटी के लिए अपना शहर / गांव छोड़ कर दूसरी जगहों पर रहने को मजबूर हैं. चुनाव के वक़्त सिर्फ़ वोट डालने के लिए उनका घर लौटना हो नहीं पाता लेकिन अब शायद उनकी राह आसान हो जाए. चुनाव आयोग ने एक रिमोट वोटिंग सिस्टम बनाया है जिसके तहत देश के माइग्रेंट वोटर्स यानी प्रवासी मतदाता जहां हैं, वहीं से वोट डाल सकते हैं. 

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मतलब ये कि इसके लिए उन्हें वापस अपने गांव / कस्बा लौटने की जरुरत नहीं. मिसाल के तौर पर आप बिहार के बेगूसराय के रहने वाले हैं, नौकरी के लिए मुम्बई रह रहे हैं. बिहार में चुनाव हो रहा हो तो आप मुम्बई ही में रहकर अपना वोट, जिसे देना हो दे सकते हैं, ऐसा चुनाव आयोग का कहना है. इलेक्शन कमीशन ने इसके लिए एक प्रोटोटाइप तैयार किया है और सभी पार्टियों के लिए 16 जनवरी को लाइव डेमो भी रखा है.

रिमोट वोटिंग कितनी प्रैक्टिकल?

2019 में 30 करोड़ से ज्यादा लोगों ने इसलिए वोट नहीं डाला था क्योंकि वो उस इलाके में नहीं थे जहां के वोटर हैं.  कहा जा रहा है, चुनाव आयोग की इस नई पहल से तस्वीर बदलेगी और वोटिंग परसेंटेज बढ़ेगा. लेकिन सवाल है कि क्या ये राह इतनी आसान है? इस पर आएंगे लेकिन पहले ये जानने के लिए कि इस नए आईडिया में है क्या और कौन से सवाल ऐसे हैं जो अब भी अनुत्तरित हैं, जिन पर क्लेरिटी का अभाव है, सुनिए 'दिन भर' की पहली ख़बर में.

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बच्चों को कफ़ सिरप दें या नहीं?

दो महीने पहले की बात है. अफ्रीकी मुल्क़ गाम्बिया में कफ सिरप पीने से 66 बच्चों की मौत का मामला सामने आया था. ये कफ़ सिरप हरियाणा की एक फार्मा कंपनी ने बनाया था. अब उज्बेकिस्तान ने भी अपने यहां 18 बच्चों की मौत के लिए एक भारतीय दवा कंपनी को जिम्मेदार बताया है.  जिस सिरप को लेकर आरोप लगाए गए हैं उसका नाम Doc-1 Max syrup है और इसे नोएडा में मेरियन बायोटेक नाम की कंपनी बनाती है. इसमें भी एथलीन ग्लाइकोल और डी-एथलीन ग्लाइकोल मिला है जो गाम्बिया वाले कफ सिरप में भी पाया गया था. 

ख़बर जैसे ही आई WHO ने कहा कि उज्बेकिस्तान के अधिकारियों से बातचीत हो रही है. भारत सरकार भी एक्शन में दिखी और जांच शुरू कर दी गई. सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन और यूपी ड्रग्स लाइसेंसिंग अथॉरिटी इसकी जांच में जुट गई हैं. कंपनी के कफ़ सिरप का सैंपल लेकर चंडीगढ़ के रीजनल ड्रग्स टेस्टिंग लैबोरेटरी में भेजा गया है. गांबिया वाले केस में फिलहाल सरकार ने मैडेन फार्मास्यूटिकल्स की राहत दी है और कहा कि कंपनी स्टैंडर्ड क्वालिटी सिरप बनाती है लेकिन सवाल है कि बार बार क्यों एथलीन ग्लाइकोल और डी-एथलीन ग्लाइकोल से बने कफ सिरप शक के दायरे में आ रहे हैं, कफ़ सिरप को लेकर सख़्त क़ानून क्यों बनाया जाना चाहिए और छोटे बच्चों को कफ़ सिरप देना चाहिए या नहीं, सुनिए 'दिन भर' की दूसरी ख़बर में.  

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बड़ी बड़ी आपदाओं के पीछे क्लाइमेट चेंज? 

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून. कवि रहीम दास ने इसमें न सिर्फ़ विनम्रता का महत्व बताया बल्कि पानी जिसे अपन पीते हैं, उस का भी. पानी के बग़ैर सबकुछ सूना है. सूना यानी जैसे एक खालीपन और फिर अकाल, सूखा. प्रकृति को लेकर जो हमारा बेढब रवैया है, उससे न सिर्फ सूखा बल्कि बाढ़, जंगल की आग, ग्लेशियरों के पिघलने से दुनिया के कोने कोने में लगातार तबाही आ रही है. दो दशकों में सबसे बुरी प्राकृतिक आपदाएं इस साल देखने को मिलीं. तो इस दौरान सबसे ज़्यादा तबाही कहाँ हुई, जानमाल का कितना नुकसान हुआ? अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप, एशिया और ख़ासकर भारत में किस तरह की प्राकृतिक आपदाएं आईं और उनका स्केल क्या था, सुनिए 'दिन भर' की तीसरी ख़बर में.

साल की सबसे बड़ी पॉलिटिकल स्टोरीज़

पॉलिटिक्स एक ऐसा महकमा है जिसमें कोई इतवार नहीं होता. मतलब, साल के तीन सौ पैसठों दिन, 24 घंटे चलता रहता है. तो हमने सोचा कि इस साल इंडियन पॉलिटिक्स में कौन से मुद्दे छाए रहे, किन राजनीतिक घटनाओं के पदचाप ज़ोर-शोर से सुनाई दिए. इस पर एक बात हो जाए. उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब, गुजरात और हिमाचल में विधानसभा चुनाव हुए. कुछ जगह नई सरकारें बनीं तो कुछ जगह पुरानी सरकारें ही सत्ता में लौटीं. दो राज्य तो ऐसे थे जहाँ बिना चुनाव हुए ही सरकारें बदल गईं. इंडिया टुडे टीवी के नेशनल अफेयर्स एडिटर हैं राहुल श्रीवास्तव. देश की राजनीति की बढ़िया समझ रखते हैं, उनसे मैंने पूछा कि इस साल की सबसे बड़ी पॉलिटिकल हैप्पनिंग्स क्या रहीं और मोदी सरकार किन मुद्दों पर घिरी, सुनिए 'दिन भर' की आख़िरी ख़बर में.

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