नई संसद, नए सचिवालय, नए दफ्तर लेकिन कामकाज का वही पुराना ढर्रा. कोरोना संकट की वजह से सेंट्रल विस्टा यानी नए संसद भवन और सचिवालयों के दस ब्लॉक बनने में भी देरी हो सकती है. केंद्रीय लोक निर्माण विभाग यानी सीपीडब्ल्यूडी के उच्च पदस्थ अधिकारियों के मुताबिक इसका निर्माण पूरा होने की अनुमानित अवधि यानी डेड लाइन अब 2024 नहीं बल्कि 2026 या उससे भी आगे बढ़ सकती है. यानी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक यह प्रोजेक्ट पूरा तो नहीं होगा लेकिन धरातल पर नजर आने लगेगा. राजनीतिक प्रचार के लिए उतना भी काफी है.
कोरोना वायरस की महामारी के कारण हुए लॉकडाउन का असर इस पर भी पड़ा है. जैसे ही थोड़ी राहत मिली, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फौरन शुभ घड़ी में इस महत्वाकांक्षी परियोजना का शिलान्यास कर दिया. काम भी धीरे-धीरे शुरू हो रहा है. इस बीच भूमि उपयोग में बदलाव को लेकर कानूनी चुनौतियां भी साथ ही साथ चल रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. एक दूसरा मसला जवाहर लाल नेहरू भवन को ध्वस्त करने को लेकर भी है.
कई विशेषज्ञों ने इस नए महानिर्माण की वजह से पुरानी धरोहरों पर पड़ने वाले असर से भी चिंतित हैं. लेकिन सरकार का कहना है कि ल्युटियन जोन में आने वाली विरासती इमारतों जैसे संसद, राष्ट्रपति भवन से विजय चौक तक की इमारतों से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी. जो भी होगा, वह 1952 के बाद बनी इमारतों के साथ ही होगा. ये तो तय है कि परियोजना के साथ-साथ नई दिल्ली के पावर कॉरिडोर के संग ल्युटियन की दिल्ली में खासकर राजपथ का चेहरा, चाल और मिजाज सब बदल जाएंगे. इसके बाद ये दुनिया के मानचित्र पर एक अलग पहचान के साथ अस्तित्व में आएगा.
गौरतलब है कि दिल्ली में अभी तीन काल अवधि के स्थापत्य की झलक दिखती है. मुगल, ब्रिटिश और आधुनिक काल. मुगलों ने कलात्मक लालकिला और अन्य इमारतें बनवाईं. अंग्रेजों ने नई दिल्ली की प्रशासनिक इमारतें और आजाद भारत की हुकूमतों ने कृषि भवन, निर्माण भवन, उद्योग भवन, शास्त्री भवन, परिवहन भवन, वायुसेना भवन, सेना भवन, श्रम शक्ति भवन जैसी इमारतें बनवाईं. इनमें स्थापत्य का सौंदर्य कम दिखता है और सरकारी काम ज्यादा. लेकिन ये इमारतें 1955 से 1965 के बीच बनी है. हां, इंदिरा पर्यावरण भवन और जवाहर लाल नेहरू भवन जरूर कलात्मक और आधुनिक कॉन्सेप्ट के साथ बनाई गई इमारतें हैं.
बता दें कि 22 लाख वर्गफीट भूभाग पर सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत नए संसद भवन और सचिवालय समेत अन्य इमारतों का निर्माण होना है. इस परियोजना पर 20 हजार करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है. हालांकि, माना यही जा रहा है कि परियोजना के पूरा होने में जितनी देर होगी, इसकी लागत बढ़ती जाएगी.