दिल्ली में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की तैनाती और तबादले के अधिकार को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी पुनर्विचार याचिका में कहा है कि मामला बड़ी पीठ के समक्ष भेजे जाने के संदर्भ में किए गए उसके आवेदन पर विचार नहीं किया गया.
इस मामले मे जो रिकॉर्ड कोर्ट के सामने रखे गए उनके त्रुटिपूर्ण होने की वजह से इस मुद्दे पर सम्यक विचार करने में विफल रहा है. केंद्र ने कहा कि राष्ट्रपति और उपराज्यपाल जो राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं उनको लोकतांत्रिक प्रतिनिधियों के रूप में न मानना स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड के आधार पर त्रुटि दिखाई देता है.
अपनी अर्जी में केंद्र ने कहा है कि सेवाओं के मुद्दों पर केंद्र सरकार और संसद के कार्यों और अधिकार क्षेत्र पर विचार किए बिना निर्णय देना भी रिकार्ड के आधार पर त्रुटिपूर्ण दिखाई देता है.
केंद्र का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले में जिसमें निर्वाचित सरकार की सर्वोच्चता के सिद्धांत पर जोर दिया गया था. लेकिन 1996 के फैसले में दिल्ली को एक केंद्र शासित प्रदेश के समान बताया गया था. इन दोनों फैसलों में मतभेद की वजह से निर्णय की मांग की गई थी.
केंद्र का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का मौजूदा फैसला 1996 के 9 जजों की बेंच के फैसले के विपरीत है. केंद्र सरकार की दलील है कि संसद का इरादा सेवाओं के मामले को केंद्र शासित प्रदेशों में लागू करने का नहीं है. इसी वजह से केंद्र शासित प्रदेशों में सेवाओं के मसले के लिए संविधान ने कभी अलग कैडर पर विचार नहीं किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि संविधान ने केंद्र शासित प्रदेशों में सेवाओं के मसले को लेकर एक कैडर पर कभी विचार नहीं किया है.
केंद्र सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात की अनदेखी की है कि दिल्ली प्रशासन के तहत कई अन्य पदों पर नियुक्ति या स्थानांतरण राष्ट्रपति द्वारा उपराज्यपाल के माध्यम से बनाए गए नियमों के अनुरूप किए जाते है.
केंद्र सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में इस बात की उपेक्षा की गई की है कि लोक सेवा आयोग के कार्यों को राजनीतिक कार्यकारिणी से नागरिक सेवाओं को अलग करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट पूरी तरह से इस बात की अनदेखी करता है कि लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक रूप से स्थापित संस्था है. इसके कार्य अनुच्छेद 323 में निर्धारित किए गए हैं. जो राजनीतिक कार्यपालिका से सिविल सेवाओं की नियुक्ति को अलग करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं.
केंद्र का कहना है कि केंद्र शासित प्रदेश में अलग लोक सेवा आयोग नहीं हो सकता. क्योंकि, यह संविधान के भाग XIV की योजना के आधार पर तर्कसंगत नहीं होगा.