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असाराम पर लिखी किताब पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा

हार्पर कॉलिंस की तरफ से ये अपील दाखिल की गई थी जिसमें निचली अदालत ने पुस्तक के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया था. निचली अदालत ने इस किताब के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाते हुए अपना आदेश दिया कि बलात्कार के मामले में दोषी पाए जाने के खिलाफ आसाराम की अपील अभी राजस्थान हाई कोर्ट में विचाराधीन है.

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दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट
स्टोरी हाइलाइट्स
  • आसाराम की अपील अभी राजस्थान हाई कोर्ट में विचाराधीन है
  • कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित कर दिया है
  • 5 सितंबर को इसका विमोचन होना था, लेकिन कोर्ट की तरफ से किताब पर प्रतिबंध लगा दिया गया

दिल्ली हाई कोर्ट ने आज आसाराम पर एक पुस्तक के प्रकाशन को प्रतिबंधित करने के खिलाफ दाखिल की गई अपील पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है. हार्पर कॉलिंस की तरफ से ये अपील दाखिल की गई थी जिसमें निचली अदालत ने पुस्तक के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया था. निचली अदालत ने इस किताब के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाते हुए अपना आदेश दिया कि बलात्कार के मामले में दोषी पाए जाने के खिलाफ आसाराम बापू की अपील अभी राजस्थान हाई कोर्ट में विचाराधीन है.

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हार्पर कॉलिन्स ने हाई कोर्ट में लगाई अपील में आसाराम के ऊपर लिखी गई किताब ''गनिंग फॉर द गॉडमैन: द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम बापू कन्विक्शन''  (Gunning for the Godman: The True Story behind the Asaram Bapu Conviction) के प्रकाशन पर लगी अंतरिम रोक को हटाने का अनुरोध किया है.

हार्पर कॉलिन्स की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह प्रवृत्ति अब बहुत बढ़ गई है कि पुस्तक के विमोचन के दौरान लोग कोर्ट जाकर एक तरफा स्टे ऑर्डर ले आते हैं. पुस्तक वितरकों के पास तक पहुंच चुकी है. सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि पुस्तक की 5 हजार प्रतियां छप चुकी हैं. 5 सितंबर को इसका विमोचन होना था, लेकिन 4 सितंबर को कोर्ट की तरफ से किताब पर प्रतिबंध लगा दिया गया.

'किताब में मानहानि करने वाली सामग्री मौजूद है'

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आसाराम के खिलाफ बलात्कार के आरोप में कोर्ट में चले मामले को लेकर लिखी गई पुस्तक 'गनिंग फॉर द गॉडमैन: द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम बापू का कनविक्शन ’, अजय लांबा, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, जयपुर और संजीव माथुर द्वारा लिखित है, और इसे 5 सितंबर, 2020 को जारी किया जाना था. सिब्बल के तर्क थे कि ये पुस्तक बलात्कार के मामले के रिकॉर्ड के आधार पर लिखी गई है और यह जांच अधिकारी की अपनी कहानी है. पूरी कहानी सुनवाई के दौरान पेश साक्ष्यों और आसाराम तथा शिल्पी को दोषी करार दिए जाने के फैसले पर आधारित है.

लेकिन निचली अदालत से जिस महिला की अर्जी पर पुस्तक के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा है उस महिला की ओर से पेश हुए वकील देवदत्त कामत ने कहा कि किताब में मानहानि करने वाली सामग्री मौजूद है. कामत ने तर्क दिया कि मुफ्त भाषण का अधिकार इस जिम्मेदारी के साथ आया है कि इससे दूसरों के अधिकारों की प्रतिष्ठा को नुकसान नहीं पहुंचे. कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित कर दिया है.

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