दिल्ली के अध्यादेश के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. इस अध्यादेश को केजरीवाल सरकार ने चुनौती दी है. केंद्र सरकार ने इस याचिका का विरोध करते हुए इसे खारिज करने की अपील की.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस याचिका को खारिज करने की मांग की है. केंद्र का कहना है कि ये याचिका 'आधारहीन' और 'मनमानी' है और कानूनी या संवैधानिक आधार की बजाय राजनीति से प्रेरित है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए केजरीवाल सरकार पर बड़े आरोप लगाए हैं. गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार पर राष्ट्रीय राजधानी को 'पंगु' बनाने और सतर्कता विभाग के अफसरों को परेशान करने का आरोप लगाया है.
गृह मंत्रालय ने दावा किया है कि दिल्ली सरकार ने सतर्कता विभाग की कई फाइलों को अवैध रूप से अपने कब्जे में ले लिया है. जिनमें एक्साइज ड्यूटी, सीएम के आवास के रेनोवेशन से जुड़ी फाइलें भी शामिल हैं.
मामले में कोर्ट के दखल की जरूरत नहीं
केंद्र सरकार ने जवाब देते हुए कहा कि अगर इस अध्यादेश पर रोक लगाई जाती है तो इससे दिल्ली प्रशासन को अपूरणीय क्षति होगी. इस अध्यादेश को संसद के मॉनसून सत्र में पेश किया जाएगा. इस मामले में अदालत के दखल की जरूरत नहीं है.
केंद्र ने तर्क दिया कि राजधानी के प्रशासन और दिल्ली सरकार की चिंताओं को वैधानिक रूप से संतुलित करने के लिए ये अध्यादेश लाया गया था.
केंद्र ने बताया- अध्यादेश की जरूरत क्यों?
अपने जवाब में केंद्र सरकार ने ये भी बताया कि इस अध्यादेश को लाने की जरूरत क्यों पड़ी? केंद्र ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों ने नियमों की उपेक्षा करते हुए अफसरों को हटा दिया.
केंद्र ने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार ने सतर्कता विभाग के अधिकारियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. कई फाइलों को अवैध रूप से अपने कब्जे में लेने की शिकायतें भी सामने आईं.
केंद्र का दावा है कि सतर्कता विभाग के एक्साइज ड्यूटी घोटाला, सीएम आवास के रेनोवेशन, दिल्ली सरकार के विज्ञापनों, बिजली बिल पर सब्सिडी से जुड़ी फाइलें थीं.
केंद्र का कहना है कि इन सब वजहों से अध्यादेश लाना पड़ा. केंद्र ने तर्क दिया कि अगर अध्यादेश लाने में देरी होती तो राजधानी 'पंगु' हो जाती.
क्या है मामला?
11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि दिल्ली की नौकरशाही पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल है और अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी अधिकार भी उसी का है.
प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण और अधिकार से जुड़े मामले पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, दिल्ली की पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर केंद्र का अधिकार है, लेकिन बाकी सभी मामलों पर चुनी हुई सरकार का ही अधिकार होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया था कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी.
केंद्र का अध्यादेश क्या है?
केंद्र सरकार 19 मई को अध्यादेश लेकर आई थी. इसका नाम 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023' है.
चूंकि, अभी संसद नहीं चल रही है, इसलिए केंद्र सरकार ये अध्यादेश लेकर आई है. नियम के तहत, 6 महीने के अंदर इस अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों में पास कराना होगा, तब जाकर ये स्थायी कानून बनेगा.
अध्यादेश के तहत, अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा आखिरी फैसला लेने का हक फिर से उपराज्यपाल को दे दिया गया है.
इसके तहत, दिल्ली में सेवा दे रहे 'दानिक्स' कैडर के ग्रुप-A अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए एक अथॉरिटी का गठन किया जाएगा. दानिक्स यानी दिल्ली, अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दमन एंड दीव, दादरा एंड नागर हवेली सिविल सर्विसेस.
इस अथॉरिटी में तीन सदस्य- दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और दिल्ली के गृह प्रधान सचिव होंगे. इस अथॉरिटी के अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री होंगे.
अथॉरिटी को सभी ग्रुप-A और दानिक्स के अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग और नियुक्ति से जुड़े फैसले लेने का अधिकार होगा, लेकिन इस पर आखिरी मुहर उपराज्यपाल की होगी.
अगर उपराज्यपाल अथॉरिटी के फैसले से सहमत नहीं होते हैं तो वो इसे बदलाव के लिए लौटा भी सकते हैं. फिर भी मतभेद रहता है तो आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही होगा.