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सोना-चांदी हो या हीरा... ज्वैलरी की वैल्यू उसकी प्योरिटी से ही होती है. आपकी ज्वैलरी जितनी असली, उतनी ही ज्यादा उसकी वैल्यू होती है. ज्वैलरी की परख जौहरी तो बखूबी जानते हैं लेकिन आम लोगों के लिए ये पहचान पाना थोड़ा मुश्किल होता है. इसीलिए कई बार लोग ज्वैलरी खरीदते समय बेइमानी का शिकार हो जाते हैं. इसी बात को समझते हुए भारत सरकार ने असली सोने की पहचान के लिए कई जागरूकता अभियान चलाए और जौहरी के लिए कुछ पैमाने और उनकी पहचान देना सुनिश्चित किया, जिससे आम लोग किसी झांसे में आकर गलत चीज न खरीद लें.
क्योंकि भारतीय लोग पुराने जमाने से ही सोना खरीदने और आड़े वक्त के लिए इकट्ठा करने में यकीन रखते हैं इसलिए ये जरूरी था कि सोने के नाम पर हो रही धोखाधड़ी को रोका जा सके. इसलिए सरकार द्वारा हॉलमार्क का चिह्न दिया गया. इसके अलावा भी कई ऐसी चीजें लाई गई, जिससे आम लोग खरीदे गए सोने को लेकर सुनिश्चित महसूस करें. चांदी के लिए भी एक तय प्योरिटी मार्क है लेकिन इसके लिए अभी उतनी गाइडलाइन्स नहीं है, जितनी सोने के लिए तय की गई हैं.
अब बात करते हैं हीरे की... सोने-चांदी से इतर हीरा एक बेशकीमती रत्न है. हीरे की कद्र की बात हो तो ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ के ताज को याद किया जा सकता है, जिस पर भारत की बेशकीमती हीरा, कोहिनूर लगा है. जिसे समय-समय पर भारत वापस लाने की मुहिम छिड़ती रहती है. अब हीरा भारत की युवा पीढ़ी की पहली पसंद बनती जा रही है. हालांकि, सरकार द्वारा अभी इसकी प्योरिटी की पहचान के लिए बहुत कुछ नहीं किया गया है. तो आज हम आपको बताएंगे कि किस तरफ आप सही हीरा खरीद सकते हैं या हीरा खरीदते वक्त आपको किन बातों का ख्याल रखना जरूरी है.
हीरे के लिए GIA यानी Gemological Institute of America द्वारा कुछ मानक तैयार किए गए हैं, जिनके आधार पर दुनियाभर में हीरे की खरीद-फरोख्त की जाती है. GIA के इन्हीं मानकों को समझने के लिए हमने Vercha Jewels (V-Verma Jewellers pvt. ltd) के मालिक और ज्वैलर नितिन वर्मा से खास बात की और जानने की कोशिश की कि किस तरह एक आम इंसान असली हीरे की पहचान कर सकता है.
दरअसल, हीरा कार्बन तत्व का एक ठोस रूप है जिसके परमाणु एक क्रिस्टल संरचना में व्यवस्थित होते हैं जिसे डायमंड क्यूबिक कहा जाता है, जिसे तराशकर उसके वजन, आकार और क्वालिटी के आधार पर एक बेशकीमती रत्न बनाया जाता है. हीरे के इन्हीं पैमानों के आधार पर इसकी वैल्यू मापी जाती है. GIA के तय मानकों के मुताबिक, हीरे की पहचान के लिए 4C के रूल को फॉलो किया जाता है. ये 4C हैं...
Cut: हीरा अपनी चमक के लिए जाना जाता है यानी उस पर पड़ने वाली रौशनी टकराकर कितनी तेजी से वापस जाती है, उतना ही वो चमकता है. ये क्वालिटी हीरे के कट पर निर्भर करती है यानी उसे कितनी अच्छी तरह तराशा गया है. हीरे के कट को लोग आकार समझते हैं यानी वो गोल है, दिल के आकार का है या अंडाकार है. जबकि कट का मतलब हीरे के तराशने से होता है, जिसके आधार पर हीरा चमकता है. हीरे का कट जितना शार्प होगा, वो उतना ही कीमती होगा. हीरे के कट की पहचान तीन आधार पर की जाती है.
Clarity: हीरे को अंदर से आप जितना क्लीयर देखेंगे, वो उतना ही कीमती होगा. अन्य स्टोन मिल्की दिखते हैं. इनमें धुआं सा नज़र आता है. हीरे की क्लियरिटी (Clarity) मापने के लिए ज्वैलर कुछ पैमाने का इस्तेमाल करते हैं. जिन्हें आपको लेते वक्त ध्यान रखना है. इसके साथ ही हीरे पर स्क्रैच नहीं आते जबकि अन्य स्टोन पर स्क्रैच आ जाते हैं.
Colour: हीरे के रंग का मतलब समझने से सही हीरा चुनने में मदद मिलती है. दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश रत्न-गुणवत्ता वाले हीरों के रंग का मूल्यांकन रंग की अनुपस्थिति पर आधारित होता है. रासायनिक रूप से शुद्ध और संरचनात्मक रूप से परिपूर्ण हीरे में साफ पानी की एक बूंद की तरह कोई रंग नहीं होता है, और यही हीरा सबसे कीमती होता है. GIA की D to Z हीरे की रंग-ग्रेडिंग प्रणाली है. हालांकि, नितिन बताते हैं कि ज्वैलर D to M कैटेगरी का हीरा ही ज्वैलरी के लिए इस्तेमाल करते हैं. इसमें D सबसे बेहतर और M सबसे नीचे की कैटेगरी का माना जाता है.
Carat: सीधे शब्दों में कहें तो हीरे का कैरेट वजन मापता है कि हीरे का वजन कितना है. 1 कैरेट या उससे ज्यादा कैरेट के सोने को सॉलिटेयर की कैटेगरी में रखा जाता है. जबकि 1 कैरेट से कम के हीरों को प्वाइंटर्स कहा जाता है.
हालांकि, अब हीरे के गुणों को ध्यान में रखते हुए सभी क्वालिटी के आधार पर लैब में भी हीरे बनाए जा रहे हैं. जिन्हें Synthetic Diamond कहा जाता है. हालांकि, खरीदते वक्त ये सर्टिफिकेट पर लिखा जाता है कि हीरा नेचुरल है या Synthetic लेकिन अगर इन दोनों के बीच पहचान की बात की जाए तो ये आम इंसान के लिए तो मुमकिन नहीं है.