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क्या 1971 की हार का बदला लेना चाह रहा था पाक, करगिल में क्यों खानी पड़ी मुंह की?

2 दशक से ज्यादा वक्त पहले करगिल की पहाड़ियों पर भारत के शूरवीरों ने विजयगाथा लिखी थी. भारत के जवानों ने पाकिस्तानी सैनिकों के मनसूबों को धूल चटाई और करगिल की चोटियों पर तिरंगा लहरा दिया. हर भारतीय को गर्व से भर देने वाली वह तारीख थी 26 जुलाई. जिसे हम करगिल विजय दिवस के रूप में मनाते हैं.

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करगिल जंग (फाइल फोटो)
करगिल जंग (फाइल फोटो)

26 जुलाई 1999 को करगिल युद्ध में भारत विजयी हुआ था. जंग की शुरुआत 3 मई 1999 को हुई थी. वैसे तो इस युद्ध के कई विश्लेषण किए जा चुके हैं. लेकिन फिर भी कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें जिनके बारे में फिर विचार करने की जरूरत है, ताकि भविष्य में सबक लेकर रणनीति और सामरिक दृष्टिकोण में सुधार किया जा सके. 

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भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों ने करगिल सेक्टर में एक दूसरे के सैनिकों को देखकर ही तैनाती की थी. सैनिकों ने बेहतर कनेक्टिविटी वाली धुरी पर ज्यादा मजबूती से पहरा दिया. दोनों तरफ गैर नियंत्रित क्षेत्र बड़ी तादाद में मौजूद थे.
 
उस समय, बिना नियंत्रण वाले क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए बड़ी सैन्य कार्रवाई को विवेकपूर्ण सैन्य कार्रवाई नहीं माना जाता था. तब युद्ध शुरू करने के लिए किसी शहर, संचार केंद्र या विरोधी की किसी मूल्यवान संपत्ति पर कब्जा करना होता था. 

चूंकि गैर-नियंत्रित क्षेत्र सामरिक दृष्टि से इतना जरूरी नहीं था. इसलिए दोनों पक्ष इसे अनियंत्रित ही रहने देते थे. इन इलाकों में पैदल गश्त या लड़ाकू विमानों के द्वारा निगरानी की जाती थी. सर्दियों में ज्यादा बर्फबारी होने पर यह काम मुश्किल हो जाता था.

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अब ऐसे में सवाल उठता है कि पाकिस्तान की सेना ने आतंकवाद की आड़ में करगिल सेक्टर के इन अनछुए इलाकों पर कब्जा करने की कोशिश क्यों की? इसका उद्देश्य क्या था? पाक की इस दुस्साहस के कई कारण बताए जाते हैं, इनमें से एक जोजिला-करगिल-लेह अक्ष पर प्रभाव डालकर लद्दाख क्षेत्र को अलग-थलग करने की कोशिश करना था.

हालांकि बाद में हुए कई विश्लेषण में सामने आया कि पाकिस्तानी सेना ने पूरी ताकत का इस्तेमाल नहीं किया था. अधिकांश नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री (एनएलआई) बटालियनों का उपयोग फायर के साथ किया गया. हालांकि, बाद में भारतीय सेना के ऑपरेशन लॉन्च करने की जानकारी मिलने पर पाकिस्तानी सेना ने अपनी भागीदारी बढ़ा दी.

1971 की जंग में भारत ने पाकिस्तान को तोड़कर एक अलग देश बांग्लादेश बना दिया था. इस युद्ध को छोड़ दिया जाए तो भारत के साथ हुए सभी युद्धों में पाकिस्तान अब तक फायदे में ही रहा है. 

26 अक्टूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह के इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन करने के बाद पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया था.  लेकिन 1947-48 के युद्ध के अचानक अंत होने के कारण जम्मू-कश्मीर का लगभग 45 प्रतिशत इलाका पाकिस्तान के साथ चला गया. 1963 में इसमें से एक हिस्सा पाकिस्तान ने चीन को सौंप दिया.

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1965 के युद्ध को देखें तो 1966 के ताशकंद समझौते के दौरान हमने जिन भी क्षेत्रों पर कब्जा किया, वे पाकिस्तान को वापस कर दिए गए.

दरअसल, 1971 का संघर्ष सभी मानकों पर एक सैन्य शासन के तहत हुआ था, इसलिए पाकिस्तानी सेना के मन पर बुरा प्रभाव पड़ा था, जिसका बदला लेने के लिए उसने करगिल को अंजाम दिया. पाकिस्तान बस जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना चाहता था, फिर चाहे वह पाकिस्तान में शामिल हो जाए या स्वतंत्र भी हो जाए.

1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में सैन्य गतिविधि बढ़ी. कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ. मई 1999 में करगिल हुआ. जब 1971 का 13 दिनों का युद्ध 16 दिसंबर, 1971 को समाप्त हुआ, तो दोनों देशों ने 2 अगस्त, 1972 को शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस दौरान भारत युद्ध के सभी कैदियों के आदान-प्रदान के लिए सहमत हो गया, लेकिन ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि पाकिस्तान ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. 

(रिपोर्ट: मेजर जनरल अशोक कुमार रि.)

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