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ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का समापन गुरुवार को हो गया. इस सम्मेलन में वित्तीय सुधारों से जुड़ी कई चर्चाएं हुईं. सोशल मीडिया पर एक करेंसी की तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें ताजमहल की फोटो छपी हुई दिख रही है. इस करेंसी के साथ दावा किया जा रहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिकी डॉलर के विकल्प के रूप में ब्रिक्स करेंसी का ऐलान किया है और डी-डॉलराइजेशन के आइडिया को आगे बढ़ाया है. De-Dollarization का मतलब होता है, अमेरिका की करेंसी US डॉलर को छोड़कर दूसरी करेंसी में व्यापार करना। वहीं, करेंसी की तस्वीरें वायरल होने के साथ ही सोशल मीडिया पर नई बहस छिड़ गई है. सोशल मीडिया पर पुतिन की टिप्पणी का हवाला देते हुए दावा किया गया कि डॉलर को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और इसे ऐसे इस्तेमाल करने वालों की ये एक बड़ी गलती है.
अब हम आपको ये बताएंगे कि क्या BRICS देशों के Currency Note पर भारत के ताजमहल की तस्वीर होगी? और क्या इस Currency Note को BRICS देशों ने अपनी सहमति दे दी है? 23 अक्टूबर को जब रशिया के कज़ान शहर में BRICS देशों का वार्षिक सम्मेलन हुआ, उस दौरान पूरी दुनिया में इन तस्वीरों की सबसे ज्यादा चर्चा हुई.
ये तस्वीरें उस वक्त की हैं, जब रशिया के एक अधिकारी ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को एक Currency नोट दिया था और राष्ट्रपति पुतिन ने इस नोट को अपने मंत्रियों को दिखाने के बाद इसे रशिया की सेंट्रल बैंक की प्रमुख को सौंप दिया था.
और रशिया के मीडिया ने इस करेंसी नोट की एक तस्वीर भी जारी की है, जिसमें भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के साथ ताजमहल को दिखाया गया है और अब इसको लेकर हमारे देश में काफी विवाद भी हो रहा है. सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि क्या इस नोट पर ताजमहल की जगह अयोध्या के राम मंदिर, अशोक चक्र या ओडिशा के ''कोणार्क मन्दिर'' की तस्वीर अंकित नहीं होनी चाहिए थी और क्या इस नोट पर ताजमहल को दिखाना भारत की प्रचीन सभ्यता और संस्कृति का अपमान नहीं है?
ऐसा माना जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी तीसरी बेगम मुमताज महल की याद में 17वीं सदी में ताजमहल का निर्माण कराया था, जब 38 वर्ष की उम्र में मुमताज महल ने अपने 14वें बच्चे को जन्म देने के बाद 30 घंटे तक दर्द में तड़पते हुए अपने प्राण त्याग दिए थे. उस समय मुमताज महल की मृत्यु से शाहजहां को इतना गहरा धक्का लगा कि उसने सफेद संगमरमर से ताजमहल का निर्माण कराया, जो आगे चलकर दुनिया का सातवां अजूबा बना.
लेकिन आज BRICS देशों के Currency नोट पर ताजमहल की तस्वीर अंकित होने के बाद लोग इसका विरोध कर रहे हैं और ये कह रहे हैं कि ताजमहल एक मकबरा है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक कभी नहीं हो सकता? तो सोचिए, कैसे एक नोट की तस्वीर ने ताजमहल के खिलाफ लोगों की भावना को सबके सामने ला दिया है और इससे ये पता चलता है कि भारत के बहुत सारे लोग ताजमहल को अपने देश की सांस्कृतिक पहचान से जोड़कर नहीं देखते?
नोट को अभी सिर्फ प्रतीकात्मक माना गया है
हालांकि, ये सारा विवाद जिस करेंसी नोट से शुरू हुआ, उस नोट को अभी सिर्फ प्रतीकात्मक माना गया है, जिसका मतलब ये है कि, ना तो BRICS देशों ने इस नोट को स्वीकार किया है और ना ही BRICS देशों के अंतिम करेंसी नोट पर ताजमहल की तस्वीर होगी? इसके अलावा ये प्रतीकात्मक नोट भी दक्षिण अफ्रीका में Russian Diplomatic Mission के अधिकारियों ने तैयार किया था, जिसे उन्होंने UAE के Ambassador को भी दिया था, लेकिन इस प्रतीकात्मक नोट को बनाने में BRICS देशों से कोई चर्चा नहीं हुई थी और ये सिर्फ ये दर्शाने के लिए बनाया गया था कि भविष्य में BRICS देशों के नेता अपनी कैसी करेंसी बना सकते हैं.
Treated Taj Mahal Pic On Currency
अब भी BRICS देशों के नेताओं के बीच इस पर लगातार चर्चा की जा रही है लेकिन यहां एक तथ्य ये भी है कि अभी BRICS देशों की औपचारिक करेंसी का कोई ऐलान नहीं हुआ है और जिस नोट पर आप ताजमहल की तस्वीर देख रहे हैं, वो सिर्फ एक प्रतीकात्मक तस्वीर है और इसका असली करेंसी नोट से फिलहाल कोई संबंध नहीं है और सबसे बड़ी बात ये है कि कल जब राष्ट्रपति पुतिन ने ये नोट अपनी सेंट्रल बैंक की प्रमुख को दिया था, तब उन्होंने ये कहा था कि उन्हें ये नोट देखने में पसंद नहीं आया.
आज आपको ये भी पता होना चाहिए कि BRICS देशों के नेता अपनी एक अलग करेंसी क्यों बनाना चाहते हैं और इसे De-Dollarization क्यों कहते हैं?
अमेरिकी डॉलर में होता है पेमेंट
उदाहरण के लिए, अगर भारत सऊदी अरब से कच्चा तेल खरीदता है तो उसे इसका भुगतान अमेरिका की करेंसी US DOLLAR में करना होता है, जबकि भारत की अपनी करेंसी रुपया है और सऊदी अरब की अपनी करेंसी, सऊदी रियाल है.
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दुनिया के ज्यादातर देश अमेरिका की करेंसी में ही एक दूसरे के साथ व्यापार करते हैं और इसकी शुरुआत वर्ष 1944 में दूसरे विश्व युद्ध के समय हुई थी. उस समय अमेरिका की करेंसी स्थिर थी और यही देखते हुए लगभग सभी देशों ने ये तय किया कि... वो अब से US DOLLAR में एक दूसरे के साथ व्यापार करेंगे. और जब उन्हें ज़रूरत होगी, तब अमेरिका इन डॉलर्स के बदले में उन्हें अपने गोल्ड रिज़र्व से सोना दे देगा. हालांकि वर्ष 1970 और 1980 के दशक में जब अमेरिका में सोने के भंडार खाली होने लगे, तब ये व्यवस्था बदली लेकिन दुनिया में अलग अलग देशों के बीच व्यापार तब भी US DOLLAR में ही होता रहा.
54 पर्सेंट अंतरराष्ट्रीय व्यापार अमेरिका की करेंसी में होता है
और आज भी दुनिया का 54 पर्सेंट अंतरराष्ट्रीय व्यापार अमेरिका की करेंसी में होता है, जिससे अमेरिका की करेंसी मजबूत और स्थिर रहती है और क्योंकि पेमेंट सिस्टम के लिए भी पूरी दुनिया अमेरिका के SWIFT बैंकिंग सिस्टम का इस्तेमाल करती है, इसलिए अमेरिका की पांचों उंगलियां हमेशा घी में रहती हैं. और अमेरिका भी अपने हित साधने के लिए इसका फायदा उठाता है और रशिया और चीन के खिलाफ कई बार उसने ऐसा किया भी है, जिसकी वजह से अब BRICS देशों में रशिया, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील अपनी एक खुद की अलग करेंसी बनाना चाहते हैं, जिससे डॉलर में व्यापार करने की निर्भरता कम हो जाएगी और ये देश अपनी एक अलग करेंसी में व्यापार कर सकेंगे.
और इसे ही De-Dollarization कहते हैं, जिसका अमेरिका विरोध करता है और डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया है कि... अगर वो राष्ट्रपति बने तो डॉलर की जगह दूसरी करेंसी में व्यापार करने वाले देशों पर वो 100 पर्सेंट टैरिफ लगाएंगे और इससे आप अमेरिका की मनमानी को भी समझ सकते हैं. हालांकि BRICS देशों की अपनी करेंसी आने में अभी काफी समय लग सकता है और ये बात खुद राष्ट्रपति पुतिन ने भी मानी है.
आज जब पूरी दुनिया में CURRENCY का एक WAR छिड़ा हुआ है, तब हमें एक विचार याद आ रहा है कि..रंग पैसे ने अपना कुछ ऐसा जमाया है कि इंसान भूल गया है कि पैसे ने उसे नहीं, उसने पैसे को बनाया है.