सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी शादी पर असहमति व्यक्त करना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं माना जा सकता. जस्टिस बी वी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एक महिला के खिलाफ आरोपपत्र को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर एक अन्य महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था, जो कथित तौर पर उसके बेटे से प्यार करती थी.
अपीलकर्ता के खिलाफ एक भी सबूत नहीं: SC
ये आरोप मृतका और अपीलकर्ता के बेटे के बीच विवाद पर आधारित थे, जिसने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था. अपीलकर्ता पर शादी का विरोध करने और मृतक के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था. अदालत ने कहा कि भले ही आरोपपत्र और गवाहों के बयानों सहित रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सबूतों को सही माना जाए, लेकिन अपीलकर्ता के खिलाफ एक भी सबूत नहीं है.
पीठ ने कहा, 'हमें लगता है कि अपीलकर्ता के कृत्य इतने दूरगामी और अप्रत्यक्ष हैं कि वे धारा 306, आईपीसी के तहत अपराध नहीं बनते. अपीलकर्ता के खिलाफ इस तरह का कोई आरोप नहीं है कि मृतक के पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.'
अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि अपीलकर्ता ने अपने परिवार के साथ मिलकर मृतक पर उसके और अपीलकर्ता के बेटे के बीच संबंध खत्म करने के लिए कोई दबाव डालने की कोशिश नहीं की.
वास्तव में, मृतक का परिवार ही इस रिश्ते से नाखुश था. भले ही अपीलकर्ता ने बाबू दास और मृतक के विवाह के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की हो, लेकिन यह आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आरोप के स्तर तक नहीं पहुंचता.