बीकानेर के अंतिम महाराजा डॉ. करणी सिंह के उत्तराधिकारियों ने मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर की है, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से दिल्ली स्थित बीकानेर हाउस का बकाया किराए की मांग की है.
मुख्य न्यायाधीश डी.के उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की बेंच ने उत्तराधिकारियों और केंद्र को परिसर से संबंधित डॉक्यूमेंट्स रिकॉर्ड पेश करने को कहा है.
उत्तराधिकारियों ने अपनी इस याचिका में सिंगल जज के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें उत्तराधिकारियों को कोई राहत देने से इनकार कर दिया था.
जुलाई में होगी सुनवाई
इस मामले की जुलाई में सुनवाई की तारीख तय करते हुए पीठ ने अपीलकर्ता से कहा कि वह याचिका की एक प्रति राजस्थान के वकील को देने का निर्देश दिया, ताकि वह सुनवाई की तारीख पर उपस्थित हो सके.
24 फरवरी को एकल न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि राजस्थान सरकार को बीकानेर हाउस पर निर्विवाद रूप से पूर्ण और सम्पूर्ण अधिकार है और महाराजा के उत्तराधिकारी, जिन्होंने 1991 से 2014 तक भुगतान की मांग की थी, वह संपत्ति पर अपना कोई भी कानूनी अधिकार साबित करने में विफल रहे और केंद्र से किराए के बकाए का कोई दावा भी नहीं किया.
न्यायाधीश ने कहा कि केन्द्र द्वारा महाराजा को किया गया प्रारंभिक भुगतान अनुग्रह राशि के आधार पर किया गया था और पूछा कि क्या शासक की मृत्यु के बाद कानूनी उत्तराधिकारियों को इस पर कोई दावा करने का अधिकार है.
अदालत ने अपीलकर्ता के वकील से एकल न्यायाधीश के समक्ष याचिका की स्थिरता के मुद्दे और उस समय की अवधि के बारे में पूछा, जिसमें इस तरह की याचिका दायर की जा सकती है कि यह अंतहीन कवायद नहीं हो सकती.
'केंद्र ने भुगतान के लिए कभी नहीं किया इनकार'
वकील ने तर्क दिया कि केंद्र ने कभी-भी उन उत्तराधिकारियों को भुगतान से इनकार नहीं किया जो अनुग्रह राशि पाने के हकदार थे और वारिसों के बीच कोई विवाद नहीं था. उन्होंने कहा, 'वे कहते रहे कि मैं भुगतान करूंगा. भुगतान करने से इनकार नहीं किया जा सकता.'
'सिंगल जज ने बिना विचार किए सुनाया फैसला'
वकील ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने मामले पर विचार किए बिना ही फैसला कर दिया.
वारिसों ने 1991 से 2014 तक का बकाया मांगते हुए तर्क दिया है कि जब बीकानेर हाउस, (जिसे 1922 और 1949 के बीच डॉ. करणी सिंह के पूर्ववर्ती द्वारा विकसित किया गया था) का अधिग्रहण किया गया था. तब 1951 में भारत सरकार द्वारा एक संदेश भेजा गया था कि संपत्ति से एक तिहाई किराया महाराजा एस्टेट को जारी किया जाएगा. हालांकि, उन्होंने कहा कि 1991 में डॉ. करणी सिंह की मृत्यु के बाद केंद्र ने भुगतान बंद कर दिया.
एकल न्यायाधीश ने फैसला दिया कि केंद्र सरकार का भुगतान अनुग्रह के आधार पर था, जिसे हक के रूप में दावा नहीं किया जा सकता और केंद्र ने बीकानेर हाउस के कब्जे के लिए राजस्थान राज्य द्वारा एक सूट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2014 में संपत्ति को खाली कर दिया था.