दिल्ली-NCR में शनिवार देर रात भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए. भूकंप के झटकों की तीव्रता 5.8 रही. 9 बजकर 34 मिनट पर ये झटके महसूस किए गए है. सामने आया है कि भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान के हिंदुकुश में था. अभी तक किसी तरह के जान-माल की हानि की जानकारी नहीं मिली है. 5.8 तीव्रता का भूकंप मध्यम तीव्रता का भूकंप माना जाता है. हालांकि झटके महसूस होने के बाद लोगों में अफरा-तफरी का माहौल देखा गया.
सामने आई जानकारी के मुताबिक, भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान के हिंदुकुश में था. इसके कारण जम्मू-कश्मीर में भी इसके झटके महसूस हुए हैं. हिंदुकुश में केंद्र होने के कारण पाकिस्तान, अफगानिस्तान और भारत तीनों में ही इसके झटके महसूस किए गए हैं. जम्मू-कश्मीर में तो कई बार भूकंप आ चुके हैं तो वहीं दिल्ली-एनसीआर भी लगातार भूकंप के झटकों से कांपते रहे हैं.
जम्मू कश्मीर में कब-कब महसूस हुए भूकंप के झटके
जम्मू कश्मीर में अभी बीते महीने 17 जुलाई को भूकंप के महीने महसूस किए गए थे. यहां कटरा में भूकंप के झटके लगे हैं. ये भूकंप रात 10 बज कर 7 मिनट पर आया. रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 3.8 मापी गई थी. भूकंप के झटके बेहद हल्के थे.
14 जून को भी कांपी थी घाटी में धरती
इससे पहले बीते महीने 14 जून बुधवार को भी जम्मू कश्मीर में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. उस दिन किश्तवाड़ में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. 3.3 तीव्रता का ये भूकंप सुबह 8.30 बजे आया. उस दिन राज्य में 18 घंटे में तीसरी बार घाटी की धरती कांपी थी. इससे पहले 14 जून को ही बुधवार तड़के 2 बजे और 13 जून यानी मंगलवार दोपहर 1.30 बजे भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के मुताबिक, मंगलवार-बुधवार की दरमियानी रात 2 बजे भूकंप के झटके महसूस किए गए. रिक्टर स्केल पर इनकी तीव्रता 4.3 थी. उस दिन भी भूकंप का केंद्र कटरा था.
30 अप्रैल को भी आया था भूकंप
इससे पहले 30 अप्रैल को भी जम्मू-कश्मीर में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के मुताबिक, भूकंप 30 अप्रैल सुबह पांच बजकर 15 मिनट पर आया था, रिक्टर स्केल पर भूकंप तीव्रता 4.1 मापी गई थी. जानकारी के मुताबिक, भूकंप 30 अप्रैल रविवार की सुबह 05:15:34 बजे आया था. इसका केंद्र जमीन के अंदर पांच किलोमीटर गहराई में था. नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी ने ट्वीट कर बताया कि रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 4.1 मैग्नीट्यूड मापी गई है.
दिल्ली में कब-कब आए भूकंप के झटके
दिल्ली में इससे पहले 13 जून को भूकंप के झटके महसूस किए गए थे. इससे पहले मार्च में भारत के कई राज्यों में भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए थे. रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 6.6 थी. भूकंप का असर दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, मध्यप्रदेश और उत्तराखंड समेत पूरे उत्तर भारत में था. भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान का हिंदू कुश क्षेत्र था.
दिल्ली में क्यों बड़े भूकंप का खतरा?
दिल्ली में बड़े भूकंप का अंदेश लंबे समय से लगाया जा रहा है. जानकार मानते हैं कि राजधानी में बड़ी तीव्रता का भूकंप आ सकता है. असल में दिल्ली भूकंपीय क्षेत्रों के जोन 4 में स्थित है. देश को इस तरह के चार जोन में बांटा गया है. जोन-4 में होने की वजह से दिल्ली भूकंप का एक भी भारी झटका बर्दाश्त नहीं कर सकती. दिल्ली हिमालय के निकट है जो भारत और यूरेशिया जैसी टेक्टॉनिक प्लेटों के मिलने से बना था. धरती के भीतर की इन प्लेटों में होने वाली हलचल की वजह से दिल्ली, कानपुर और लखनऊ जैसे इलाकों में भूकंप का खतरा सबसे ज्यादा है.
दिल्ली के पास मौजूद हैं तीन फाल्ट लाइन
दिल्ली के पास सोहना, मथुरा और दिल्ली-मुरादाबाद तीन फॉल्ट लाइन मौजूद हैं, जिसके चलते भूकंप की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. दिल्ली रिज क्षेत्रकम खतरे वाला क्षेत्र है. वहीं मध्यम खतरे वाले क्षेत्र हैं दक्षिण पश्चिम, उत्तर पश्चिम और पश्चिमी इलाका. सबसे ज्यादा खतरे वाले क्षेत्र हैं उत्तर, उत्तर पूर्व, पूर्वी क्षेत्र. भू-विज्ञान मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में कहा था कि दिल्ली में अगर रिक्टर स्केल पर छह से अधिक तीव्रता का भूकंप आता है तो बड़े पैमाने पर जानमाल की हानि होगी.
दिल्ली में आधे से अधिक इमारतें इस तरह के झटके को नहीं झेल पांएगी वहीं घनी आबादी की वजह से बड़ी संख्या में जनहानि हो सकती है. दुर्भाग्य की बात है कि भूकंप के खतरों को देखते हुए भी राजधानी ने सबक नहीं लिया. यहां ना तो उससे बचने के उपाय किए गए और ना ही इमारतों के निर्माण में सावधानी बरती गई है.
क्यों आता है भूकंप?
धरती मुख्यत: चार परतों से बनी हुई है. इनर कोर, आउटर कोर, मैनटल और क्रस्ट. क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल कोर को लिथोस्फेयर कहा जाता है. अब ये 50 किलोमीटर की मोटी परत कई वर्गों में बंटी हुई है जिन्हें टैकटोनिक प्लेट्स कहा जाता है. यानि धरती की ऊपरी सतह 7 टेक्टोनिक प्लेटों से मिलकर बनी है. ये प्लेटें कभी भी स्थिर नहीं होती, ये लगातार हिलती रहती हैं, जब ये प्लेटें एक दूसरे की तरफ बढ़ती है तो इनमें आपस में टकराव होता है. कई बार ये प्लेटें टूट भी जाती हैं. इनके टकराने से बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है जिससे इलाके में हलचल होती है. कई बार ये झटके काफी कम तीव्रता के होते हैं, इसलिए ये महसूस भी नहीं होते. जबकि कई बार इतनी ज्यादा तीव्रता के होते हैं, कि धरती फट तक जाती है.