पांच राज्यों में होने वाले चुनाव की तारीखें घोषित करते हुए, भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने कोरोना को लेकर एक बयान दिया था. उन्होंने कहा था, 'सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में हैं, उसके बाद दिल्ली, कर्नाटक में हैं. मुझे नहीं लगता कि इन क्षेत्रों में कोई चुनाव है. लेकिन मामले अभी भी बढ़ रहे हैं, इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि कोरोना सिर्फ चुनाव की वजह से है.'
औसत टेस्ट रेट का सीधा संबंध पॉज़िटिविटी रेट से है
चुनाव वाले राज्यों में Covid-19 के मामले कम क्यों सामने आ रहे हैं, इसका जवाब आसान है. इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) के विश्लेषण से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड के 3 मतदान वाले राज्यों में रोज़ाना के औसत टेस्ट उस दर से नहीं बढ़े हैं, जो अब एक महीने में बढ़ने चाहिए थे. जबकि आंकड़ों से पता चलता है कि महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में आक्रामक तरीके से टेस्ट किए जा रहे हैं.
हमने रोज़ाना के औसत टेस्ट की तुलना उन राज्यों से की है, जहां पिछले एक महीने में कोई चुनावी रैली और प्रचार नहीं हुआ है. लेकिन वहां मामलों की संख्या बहुत ज़्यादा है. ये महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य हैं, जहां का पॉज़िटिविटी रेट चुनाव वाले राज्यों की तुलना में बहुत ज़्यादा है. आंकड़ों से पता चलता है कि इन राज्यों में औसत टेस्ट रेट का सीधा संबंध पॉज़िटिविटी रेट से है.
उत्तर प्रदेश
7 दिसंबर, 2021 और 7 जनवरी, 2022 के बीच, मतदान वाले उत्तर प्रदेश में रोज़ाना के औसत टेस्ट में केवल 19.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. महाराष्ट्र से तुलना करें, तो पिछले एक महीने में वहां टेस्ट में कम से कम 43.9% की वृद्धि हुई है. जबकि दिल्ली में टेस्टिंग रेट में 46.2% बढ़ा है और पश्चिम बंगाल में 51.7% की बढ़ोतरी हुई है.
टेस्टिंग के डेटा के मुताबिक, यूपी में 1 दिसंबर 2021 तक 1,72,593 टेस्ट किए गए, 15 दिसंबर 2021 को बढ़कर 1,82,749 टेस्ट हुए. 1 जनवरी 2022 को टेस्ट की संख्या सिर्फ 1,82,995 हुई, जबकि 7 जनवरी को यह संख्या बढ़कर 2,32,291 पहुंच गई.
अन्य बड़े आबादी वाले चुनावी राज्यों उत्तराखंड और पंजाब से तुलना करें, तो उत्तर प्रदेश इन राज्यों के मुकाबले ज़्यादा टेस्ट करा रहा है. लेकिन गोवा और मणिपुर जैसे छोटे राज्यों की तुलना में, जहां रोज़ाना का औसत टेस्टिंग रेट 47.8% और 37.8% है, उत्तर प्रदेश पीछे है.
पंजाब
पंजाब में भी कोविड के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और अस्पतालों में मरीज़ों की संख्या भी. हालांकि, यहां टेस्ट कम होना अब भी चिंता की बात है. 7 दिसंबर 2021 से 7 जनवरी 2022 तक पंजाब में एवरेज टेस्टिंग माइनस में चली गई है- उत्तर प्रदेश (19.6%) या दिल्ली(46.2%) की तुलना में यह -21.7% है.
अस्पताल में भर्तियों के बावजूद भी, चुनाव आयुक्त ने पंजाब का पॉज़िटिविटी रेट 8 जनवरी को 2.1% बताया था. जबकि आज पंजाब का पॉज़िटिविटी रेट बेहद खतरनाक यानी 23.72% है.
1 दिसंबर को पंजाब में कुल 26,298 टेस्ट किए गए, 15 दिसंबर को 26,576 टेस्ट किए, 31 दिसंबर को यह संख्या गिरकर 15,995 हो गई. 1 जनवरी को यहां कोविड के सिर्फ 332 मामले दर्ज किए गए, जबकि कुल 15,981 सैंपल की जांच की गई थी. राज्य में. 7 जनवरी को कोविड के 3,643 मामले दर्ज हुए, जबकि उस दिन कुल 26,154 टेस्ट किए गए थे. पंजाब में टेस्टिंग की दर तीसरी लहर की शुरुआत से ही जस की तस बनी हुई है.
उत्तराखंड
उत्तराखंड की बात करें, तो अन्य चुनावी राज्यों की तुलना में उत्तराखंड में रोज़ाना की एवरेज टेस्टिंग में 17.4% की वृद्धि हुई है. उत्तराखंड में 1 दिसंबर को 14,746 सैंपल की जांच की गई, जबकि 15 दिसंबर को 17,049 टेस्ट हुए. 1 जनवरी की भी केवल 15,927 टेस्ट किए गए, जबकि 7 जनवरी को राज्य में 15,217 सैंपल की जांच हुई.
8 जनवरी को, राज्य का पॉज़िटिविटी रेट 1.01% था, जो उत्तर प्रदेश से भी कम है. लेकिन आज, केवल तीन दिनों में ही, पहाड़ी राज्य में पॉज़िटिविटी रेट (TPR) बढ़कर 7.57% हो गया है.
गोवा और मणिपुर
गोवा और मणिपुर में टेस्टिंग की बात करें तो इन दोनों राज्यों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. गोवा में टेस्टिंग दोगुनी हो गई है. दिसंबर 2021 में, गोवा की रोज़ाना की औसत टेस्टिंग 2988 थी, जो 4 जनवरी 2022 को बढ़कर 3,389 हो गई. 7 जनवरी तक यह संख्या बढ़कर 4,458 टेस्ट तक पहुंच गई. गोवा में टेस्टिंग की दर 47.8 प्रतिशत बढ़ी तो पॉज़िटिविटी रेट भी 27.38% हो गया है.
1 दिसंबर, 2021 को मणिपुर के औसत टेस्ट 1,911 थे, जो अब 7 जनवरी, 2022 को 2,225 पर पहुंच गए. मणिपुर में टेस्टिंग में 37.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और पॉज़िटिविटी रेट 4.14% हो गया है, जो 8 जनवरी को 1.1% था.
इस बीच, पूरे भारत में रोज़ाना की औसत टेस्टिंग में 9.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. कोविड टेस्टिंग को लेकर ICMR के ताजा दिशानिर्देश भी उतने ही चिंताजनक हैं. सोमवार को टेस्टिंग को लेकर दिशानिर्देश बदले गए कि किसको टेस्ट करने की जरूरत नहीं है -
1. सामुदायिक सेटिंग में एसिंपटोमैटिक व्यक्ति
2. COVID-19 के कंफर्म मामलों के संपर्क, अगर उम्र या कोमॉर्बिडिटी के आधार पर हाई रिस्क न हो.
3. होम आइसोलेशन दिशा-निर्देशों के अनुसार डिस्चार्ज होने वाले मरीज
4. संशोधित डिस्चार्ज पॉलिसी के अनुसार जिन मरीजों को कोविड-19 के इलाज के बाद छुट्टी दी गई हो.
5. अंतर-राज्यीय घरेलू यात्रा करने वाले व्यक्ति.
इन सभी कारकों ने पहले से ही मतदान वाले राज्यों में, कोविड की स्थिति को गलत तरीके से पेश किया है. चुनाव आयोग ने कहा है कि इन राज्यों में कोविड की स्थिति की एक और समीक्षा की जाएगी और पार्टियों को अपने चुनाव प्रचार को आभासी अभियानों तक ही सीमित रखना होगा, ताकि इस चुनावी मौसम में अतीत की गलतियों को फिर से न दोहराया जाए.