राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दूसरे दिन बहस जारी रही. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (SG) ने कोर्ट में कहा कि डिजिटल पेमेंट की पसंद तेजी से बढ़ी है. सब्जी बेचने वाले से लेकर ई रिक्शा वाले तक डिजिटल पेमेंट ले रहे हैं. भारत में डिजिटल पेमेंट यूरोपियन यूनियन से भी सात गुना ज्यादा है. चीन के मुकाबले तीन गुना अधिक. उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से पहला कदम डिजिटाइजेशन और शेल यानी फर्जी कंपनियों के डी रजिस्ट्रेशन के रूप में उठाया गया. दो लाख 38 हजार 223 शेल यानी फर्जी कंपनियों को डी रजिस्टर्ड किया. देश में 750 मिलियन मोबाइल इंटरनेट यूजर हैं. हर तीन सेकेंड में देश में नया इंटरनेट यूजर आ जाता है.
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों के आय के अनजान स्रोत बीस हजार रुपए से कम रकम के मामूली चंदा से आता है. ज्ञात स्रोत में सदस्यों का आजीवन सहयोग, मेंबरशिप, संपत्तियों के किराए, खरीद बिक्री आदि से होता है. सभी पार्टियों को क्लीन मनी की जरुरत होती है ताकि वो रैली जलसे आदि के खर्च के तौर पर दिखा सकें.
उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों की अधिकतर आय अज्ञात स्रोतों से ही होती है. बीस हजार रुपए से कम का एकमुश्त चंदा मिले तो कानूनन भी उसका रिकॉर्ड रखने या दिखाने की जरूरत या बाध्यता नहीं है. एडीआर निर्वाचन आयोग के पास जमा इन पार्टियों के हिसाब किताब का अध्ययन करता है.
कई पार्टियां तो अपनी आय व्यय का ब्योरा आयोग को देते ही नहीं. कई आधी अधूरी जानकारी देते हैं. कुछ पार्टियां तो पिछले कई वर्षों से यही हिसाब देती रही हैं कि उनको बीस हजार रुपए से ज्यादा रकम का चंदा किसी ने भी नहीं दिया.
एसजी ने कहा कि पिछले कई दशकों से देखा जा रहा है कि सत्ताधारी दल को चंदा ज्यादा मिलता है उनकी आय कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है. सीजेआई ने इसका कारण पूछा कि क्या वजह है सत्ता में आने वाली या आ चुकी पार्टियों को चंदा की मात्रा बढ़ जाती है?
एसजी ने कहा कि मेरा निजी तौर पर मानना है कि कई बार तो चंदा दाताओं को उस पार्टी को सरकार में बिजनेस के अनुकूल स्थितियां लगती हैं. कॉरपोरेट को अपने कारोबार को बढ़ाने में लालफीताशाही की कमी, प्रक्रियागत आसानी, कम परेशानी, बिजनस के ज्यादा आयाम अवसर मिलने की उम्मीद रहती है.