
केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) कानून के तहत कम्पनसेशन सेस (मुआवजा उपकर) का भुगतान न किए जाने के मुद्दे पर एक तरह का संवैधानिक संकट मंडराता प्रतीत हो रहा है.
जीएसटी कलेक्शन में कमी से निपटने के लिए हुई जीएसटी परिषद की आखिरी बैठक में केंद्र की ओर से पेश दो प्रस्तावों को लगभग सभी गैर-बीजेपी शासित राज्यों ने नामंजूर कर दिया. विपक्षी पार्टियों की ओर से शासित 10 राज्यों के मुख्यमंत्रियों-वित्त मंत्रियों ने आजतक/ इंडिया टुडे को बताया कि उन्होंने केंद्र के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. वहीं ओडिशा जैसे कुछ अन्य राज्यों ने कहा कि वे विकल्पों को तौल रहे हैं.
केंद्र का दावा है कि उधार लेने के लिए राज्य बेहतर स्थिति में हैं. राज्यों का इस पर जवाब है कि केंद्र कर्तव्यबद्ध है और उसकी क्रेडिट रेटिंग बेहतर है जो उधार लेने के लिए अहम है. साथ ही उसके पास लैंडर्स (उधार देने वालों) के व्यापक विकल्प हैं.
जीएसटी परिषद की पिछली बैठक में वित्त मंत्री और परिषद की अध्यक्ष निर्मला सीतारमन की अगुवाई में केंद्रीय सरकार ने माना था कि राजस्व में भारी कमी आई है, साथ ही राज्यों को लंबित बिना भुगतान वाले मुआवजे की भरपाई के लिए उधारी का सुझाव दिया था.
केंद्र ने बकाया पूरे जीएसटी मुआवजे का सम्मान करने का वादा करते राजस्व की कमी को दो श्रेणियों में बांट दिया- एक- जीएसटी राजस्व में कमी की वजह से और दूसरा- कोविड-19 महामारी की वजह से. केंद्र ने राज्यों को उधारी के लिए दो फॉर्मूले प्रस्तावित किए और वापस जवाब देने के लिए 7 दिन की विंडो दी. ये 7 दिन की समय सीमा समाप्त हो गई है. आम सहमति बनने की जगह केंद्र बनाम राज्यों की लड़ाई तेज होने की संभावना बन रही है. केंद्र मजबूती से इस मत पर कायम है कि राज्यों को सुविधागत प्रक्रिया के जरिए उधार लेना चाहिए. दूसरी ओर बड़ी संख्या में राज्य अड़े हैं कि केंद्र को उधार लेना चाहिए और उन्हें जीएसटी एक्ट में उल्लेखित वादे के मुताबिक बकाया का भुगतान करना चाहिए. ऐसे में सीधे टकराव और राजनीतिक निहितार्थ की वजह से 19 सितंबर को होने वाली जीएसटी परिषद की बैठक हंगामेदार रहने की संभावना है.
कौन ले उधार- केंद्र या राज्य?
कई मुख्यमंत्रियों और वित्त मंत्रियों ने सीधे प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उनके हस्तक्षेप की मांग की है. आजतक/इंडिया टुडे ने पाया कि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, दिल्ली, पुडुचेरी, पंजाब और झारखंड ने खुले तौर पर सामने आकर केंद्र सरकार के प्रस्तावों को खारिज किया है. साथ ही मांग की कि ये केंद्र है जिसे उधार लेना चाहिए और राज्यों के बकाया का भुगतान करना चाहिए.
झारखंड
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बताया कि उन्होंने मुआवजे के संदर्भ में केंद्र और राज्यों के बीच "बढ़ते अविश्वास" का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी को "सहकारी संघवाद की भावना" को बरकरार रखने के लिए इस मामले में दखल देना चाहिए, न कि राज्यों से पल्ला झाड़ लिया जाए.
सोरेन ने जोर देकर कहा, “राज्यों को पूरा मुआवजा मुहैया कराने में केंद्र सरकार की अनिच्छा और असफलता संसद और सांविधानिक संशोधन में किए गए वादे के साथ धोखा है.”
पश्चिम बंगाल
प्रधानमंत्री को पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने भी पत्र लिखा है. उन्होंने कहा कि “वह जीएसटी गतिरोध से बहुत नाराज हैं क्योंकि ये भारत सरकार की ओर से विश्वास और नैतिक जिम्मेदारी के साथ धोखे के समान है. अपने 4 पन्ने के पत्र में मित्रा ने कहा कि कानून और केंद्र की प्रतिबद्धताओं के बावजूद, राज्यों पर दो "एकतरफा विकल्प" लादे जा रहे हैं.
उन्होंने दावा किया कि केंद्र के प्रस्ताव “पूरी तरह से अस्वीकार्य” हैं क्योंकि उनमें से कोई एक विकल्प अपनाने से राज्यों की वित्तीय हालत खराब होगी और “केंद्रवाद की निरंकुशता” को बढ़ावा मिलेगा.
उन्होंने सवाल किया कि केंद्र सीधे उधार लेने के लिए क्यों तैयार नहीं है, वो भी ये अच्छी तरह जानने के बावजूद कि वो उधार को करेंसी प्रिटिंग से मॉनेटाइज कर सकती है जबकि यह विकल्प राज्यों के पास मौजूद नहीं है.
पंजाब
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा. “मैं केंद्र सरकार के रवैये से 1% भी सहमत नहीं हूं. मुझे मार्च से ही जीएसटी मुआवजे का भुगतान नहीं मिला है. अगर केंद्र के पास पैसा नहीं है तो यह हमें कैसे मिलेगा?”
पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने केंद्रीय राजस्व सचिव को पत्र लिखकर केंद्र के दोनों प्रस्तावों को खारिज कर दिया. उन्होंने आजतक/इंडिया टुडे से कहा, “राज्यों को बकाया भुगतान न किया जाना जीएसटी अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन है और राज्यों को मुआवजा बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता है.”
आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश के वित्त मंत्री बुगना राजेंद्रनाथ रेड्डी ने कई अन्य राज्यों के विचारों का ही समर्थन किया. उन्होंने कहा, “राज्य सरकारें बड़ी संख्या में मुश्किल बहुआयामी कर्तव्यों का पालन करती हैं. “बकाया राशि के बारे में कोई एक विकल्प इस्तेमाल करना गलत है... यह प्रस्ताव 10% की दर से बकाया में वृद्धि की बात करता है जबकि कानून 14% का है. बाकी 4% का क्या होगा? हम मांग करते हैं कि केंद्र आरबीआई से कर्ज ले और राज्यों को भुगतान करे.”
दिल्ली
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के पास वित्त मंत्री का भी प्रभार हैं. सिसोदिया ने केंद्र के प्रस्तावों को खारिज कर दिया. उन्होंने आजतक/इंडिया टुडे से कहा, "इन प्रस्तावों का कोई आधार नहीं है और इन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता है. भारत सरकार जीएसटी कानून के तहत बाध्य है. हम एक साधारण मांग करते हैं, या तो केंद्र सरकार कर्ज लेकर राज्यों को भुगतान करती है, या फिर जीएसटी काउंसिल संप्रभु निकाय के तौर पर कर्ज लेकर भुगतान करती है."
सिसोदिया ने आगे कहा कि दिल्ली सरकार ने केंद्र के प्रस्ताव के साथ सहमति व्यक्त की है कि उधार का पुनर्भुगतान भविष्य में एकत्रित सेस (उपकर) से 2022 की समयसीमा से परे जा कर भी किया जा सकता है, जब मुआवजे की समीक्षा होनी है.
विवाद समाधान प्रक्रिया की मांग
कुछ राज्य इस मुद्दे को उठाने के लिए 'विवाद समाधान तंत्र' तैयार किए जाने पर जोर दे रहे हैं. वे महसूस करते हैं कि बीजेपी और उसके सहयोगियों की परिषद में बड़ी संख्या है और अगर केंद्र को जरूरत पड़ती है तो वे अपने प्रस्तावों को आगे बढ़ा सकती है और उन्हें दरकिनार किया जा सकता है.
विपक्षी दलों की ओर से शासित राज्यों का दावा है कि केंद्र को इस विचार पर गौर करना चाहिए कि जीएसटी पूरे भारत के लिए एक टैक्स हो सकता है, लेकिन इस पर अमल एक आधार पर नहीं हो सकता जो सबके लिए फिट माना जाए. “एक राष्ट्र-विभिन्न विकल्प’’ को भी आजमाया जा सकता है.
हालांकि अमल की आसानी के लिए केंद्र सरकार यह पसंद करेगी कि सभी राज्य दो विकल्पों में से एक पर सहमत हों. वहीं, राज्य इस पर जोर दे सकते हैं कि प्रत्येक राज्य की उधार जरूरतों पर अलग अलग विचार किया जाए और केंद्र की ओर से मंजूरी दी जाए.
केंद्र और राज्यों के बीच इस मुद्दे को लेकर बड़ी खाई है. साथ ही बीजेपी शासित राज्यों और विपक्षी दलों की ओर से शासित राज्यों के बीच भी.
बीजेपी और सहयोगी
बिहार में बीजेपी के अहम सहयोगी नीतीश कुमार जीएसटी राजस्व की कमी की भरपाई के लिए केंद्र द्वारा प्रस्तावित पहले विकल्प को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं.
बिहार भी कर्नाटक और असम जैसे बीजेपी शासित राज्यों में शामिल हो गया है, जिन्होंने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो वे विकल्प नंबर एक को अपनाएंगे. बाकी बीजेपी शासित राज्यों के भी वैसा ही करने की संभावना है जैसा कि केंद्र ने प्रस्तावित किया है.
27 अगस्त को केंद्र ने क्या प्रस्ताव रखा?
41वीं जीएसटी परिषद की बैठक में केंद्र ने राज्यों को दो विकल्प प्रस्तावित किए थे.
पहला विकल्प- एक विशेष विंडो से संबधित था जिसमें महामारी और लॉकडाउन के कारण अनुमानित 97,000 करोड़ रुपए की जीएसटी की कमी को पूरा करने के लिए उधारी में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सक्रिय भागीदारी से जुड़ा था. इस प्रस्ताव में जीएसटी के पांच साल बाद भी, जो जून 2022 को समाप्त हुआ, मुआवजा उपकर (कम्पनसेशन सेस) से पुनर्भुगतान का प्रावधान शामिल था. इसमें साथ ही फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट(FRBM) एक्ट के तहत उधार सीमा में 0.5% की छूट दी गई.
दूसरा विकल्प- 2.35-लाख-करोड़ (जिसमें जीएसटी संग्रह में गिरावट और महामारी के कारण कमी दोनों शामिल हैं) की उधारी विंडो का था- आरबीआई की ओर से सुविधा प्रदत्त.
जो राज्य दो विकल्पों में से किसी एक के लिए जाते हैं, उन्हें औपचारिक प्रस्ताव तैयार करने की आवश्यकता होगी, साथ ही केंद्र सरकार से FRBM एक्ट के तहत मंजूरी लेना होगा, तब उधार लेने के आगे बढ़ सकते हैं.
राजस्व संग्रह में 3 लाख करोड़ रुपए की कमी का अनुमान है. केंद्र का आकलन है कि 65,000 करोड़ कम्पनसेशन सेस से इकट्ठा होगा. लड़ाई बाकी 2.35-लाख करोड़ रुपए के लिए है.
केंद्र क्या चाहता है
अटॉर्नी जनरल की ओर से केंद्र को विधिक सलाह दी गई कि कम्पनसेशन की अवधि जुलाई 2022 के बाद आगे बढ़ाई जा सकती है लेकिन गैप को भारत के समेकित कोष से पूरा नहीं किया जा सकता. इसी के बाद केंद्र सरकार ने राज्यों को कमी की भरपाई के लिए उधार का प्रस्ताव दिया. राय में यह हवाला भी दिया गया कि राज्यों के पास कम्पनसेशन सेस का स्वामित्त्व है, इसलिए इसके आधार पर केंद्र उधार नहीं ले सकता.
हालांकि, केंद्र का कहना है कि उसने इस वित्तीय वर्ष के बजट मेंउ उधारी का लक्ष्य बढ़ा कर 12 लाख करोड़ रुपए कर दिया है, जबकि बजट में 7.8 लाख करोड़ का ही प्रस्ताव किया गया था. अब आगे और कोई भी उधारी राज्यों के लिए दरों को बढ़ा सकती है.
अपेक्षा है कि केंद्र की ओर से राज्यों को उधार लेने के विकल्पों को मनाने के लिए कोशिशें जारी रखी जाएंगी. सूत्रों का कहना है कि सरकार एक स्टीमुलस पैकेज के लिए एक व्यापक वित्तीय गुंजाइश रख रही है.
केंद्र का तर्क है कि राज्य उधार या कर्ज लेने के लिए बेहतर स्थिति में है क्योंकि उनकी उधारी FBRM एक्ट के नुस्खे से नीचे हैं. दूसरा कारण यह है कि केंद्र राज्यों पर जोर दे रहा है कि दो लाख करोड़ का कॉर्पस राज्यों ने ट्रेजरी बिल्स में पार्क किया हुआ है.
केंद्र यह आश्वासन दे रहा है कि वह राज्यों को पूरा बकाया देने के लिए प्रतिबद्ध है अगर राज्य विकल्प नंबर 1 के तहत 97,000 करोड़ रुपए उधार लेते हैं. सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए आरबीआई को साथ लाने की योजना बनाई है कि राज्य समान दरों पर उधार ले सकें और उन्हें ज्यादा भागदौड़ की जरूरत न पड़े.
ये भी पढ़ें-