कुतुब मीनार परिसर में बहुत जल्द खुदाई का काम शुरू किया जाएगा. संस्कृति मंत्रालय ने कुतुब मीनार में मूर्तियों की आइकोनोग्राफी (Iconography) कराए जाने के निर्देश दिए हैं. खुदाई के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) संस्कृति मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा. लेकिन आइकोनोग्राफी क्या होती है और कैसे ये की जाती है. बता रहे हैं इतिहास के जानकार अंकित अग्रवाल...
'आइकोनोग्राफी को हिंदी में प्रतिमा विज्ञान कहा जाता है. किसी भी प्रतिमा को किस तरह बनाया गया है. अगर किसी दीवार को देखें तो उसे किस तरह से बनाया जाता है. दीवार पर इंग्रेविंग होती है. उसके आधार पर हम जब उसका अध्ययन करते हैं. उसे इकॉनोग्राफी कहते हैं. इकॉनोग्राफी के तीन मूल होते हैं.'
ऐसे पहचानी जाती है मूर्ति
आइकोनोग्राफी का सबसे पहला मूल प्रतिमा विज्ञान है. उदारण के तौर पर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति को देखें तो उनके हाथ में बांसुरी और पैर मुड़े हुए होते हैं. साथ ही उनके सिर पर किस तरह का मुकुट है, इसी आधार पर आप हम इनको पहचानते हैं कि यह भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति है. लेकिन सवाल यह उठता है कि यह कृष्ण की मूर्ति किस शैली में बनी है? और किस काल में बनी है.
शैली का निर्धारण हम मूर्ति के भाव भगनी से करते हैं. यानी मूर्ति में भाव भगनी पर ज्यादा जोर दिया गया है तो यह मूर्ति मथुरा की हो सकती है. अगर मूर्ति में शारीरिक सौंदर्य पर ध्यान दिया जाता है तो यह मूर्ति गंधार शैली की हो सकती है. इसके साथ ही राधा जी की मूर्ति में जिस साड़ी को उन्होंने पहना है, उनमें जिस तरह से कारीगरी है वह एक विशेष टाइम पीरियड को दर्शाती है, जिससे इस मूर्ति का टाइम पीरियड पता चल पाता है.
अगर पुराने स्टेटस की बात करें तो दीवारों पर इंग्रेविंग होती है. यह खास तरह की इंग्रेविंग होती है. उदाहरण के तौर पर अगर 'ओम' भगवान शिव की प्रतिमा का प्रतीक है लेकिन 'ओम' किस स्ट्रक्चर में बना है उसके आसपास किस तरीके की कारीगरी है, उसकी शेप, उसकी कार्विंग, उसकी कला शैली और टाइम पीरियड को दर्शाती है.
कब मुश्किल आती है इकॉनोग्राफी में...
आइकोनोग्राफी में दिक्कत तब सबसे ज्यादा आती है जब मूर्तियां खंडित होती हैं. उदाहरण के तौर पर अगर भगवान श्री गणेश की मूर्ति की पहचान उनकी सूंड से होती है, लेकिन अगर वह सूंड ना हो तो उनकी आइकोनोग्राफी करना थोड़ा मुश्किल होता है. और उसमें काफी ज्यादा वक्त भी लगता है.
संस्कृत मंत्रालय की तरफ से जो कुतुबमीनार को लेकर आइकोनोग्राफी कराए जाने के लिए निर्देश दिए गए हैं उसमें करीब 1 महीने से ज्यादा का वक्त लग सकता है. क्योंकि वहां पर कई सारी मूर्तियां खंडित हैं.
मानसून से पहले खुदाई करवाने की सलाह
दरअसल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की हालिया रिपोर्ट के आधार पर संस्कृति मंत्रालय ने निर्देश दिए हैं कि कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत उल इस्लाम मंस्जिद में मौजूद खंडित की गई मूर्तियों की आइकोनोग्राफी तकनीक से जांच और परीक्षण कराया जाए. संस्कृति मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, कुतुब मीनार के दक्षिणी भूभाग में और कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद से 15 से 20 मीटर दूरी पर जियोलोजिकल तकनीकी जांच के बाद संभवत: अगले महीने में खुदाई हो सकती है. विशेषज्ञों ने दिल्ली में मानसून आने से पहले ही खुदाई कराने का मशविरा दिया है.
तीन जगह खुदाई का काम हो सकता है
संस्कृति मंत्रालय के सचिव ने पुरातात्विक और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ शनिवार को कुतुब मीनार परिसर का दौरा किया था, उसके बाद ही विशेषज्ञ अधिकारियों की सलाह पर मंत्रालय ने खुदाई करवाने का फैसला किया है. मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक खुदाई का कार्यक्रम सिर्फ कुतुब मीनार तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि तीन-तीन जगह खुदाई का काम चल सकता है.
सात बार बसने और उजड़ने के क्रम में पहली दिल्ली राजा अनंगपाल ने बसाई थी. वहां बनवाए गए सरोवर अनंग ताल के अवशेषों के आसपास भी खुदाई होगी. साथ ही उसी दौर की दिल्ली की कहानी कह रहे लाल कोट के अवशेषों के आसपास और नीचे भी खुदाई कर इतिहास का सच जानने की कोशिश होगी.