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आदिवासियों पर क्यों लागू नहीं होते हिंदुओं के लिए बने कानून? द्रौपदी मुर्मू से क्या है आस?

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद आदिवासियों की सरना धर्म कोड लागू होने की उम्मीद बढ़ गई है. झारखंड के आदिवासी लंबे समय से अपने लिए अलग से धर्म कोड लागू करने की मांग कर रहे हैं. झारखंड सरकार ने धर्म कोड का बिल पास भी किया था, लेकिन अभी इसे केंद्र सरकार से मंजूरी नहीं मिली है. सरना धर्म कोड का पूरा मामला क्या है? और क्या आदिवासी हिंदू नहीं हैं? जानें इससे जुड़ी सारी बातें.

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झारखंड में सरना धर्म को मानने वाले आदिवासियों की बड़ी संख्या है. (फाइल फोटो)
झारखंड में सरना धर्म को मानने वाले आदिवासियों की बड़ी संख्या है. (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • जनगणना में आदिवासियों के लिए धर्म कोड की मांग
  • देश में अनुसूचित जनजाति की आबादी 10.45 करोड़

Sarna Religious Code: द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद आदिवासियों ने एक बार फिर से अपने लिए अलग धर्म कोड की मांग तेज कर दी है. आदिवासी वर्षों से 'सरना धर्म कोड' लागू करने की मांग कर रहे हैं. झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार ने भी 'सरना आदिवासी धर्म कोड' बिल को पास किया था, लेकिन मंजूरी के लिए ये केंद्र सरकार के पास अटका है. आदिवासियों का एक बड़ा तबका ऐसा है, जो खुद को हिंदू नहीं मानता है. इनमें झारखंड के आदिवासियों की आबादी सबसे ज्यादा है. ये आदिवासी खुद को 'सरना धर्म' का बताते हैं.

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संविधान में अनुसूचित जनजातियों यानी आदिवासियों को 'हिंदू' माना जाता है. लेकिन बहुत से कानून ऐसे हैं, जो इन पर लागू नहीं होते. हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, और हिन्दू दतकत्ता और भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा 2(2) और हिन्दू वयस्कता और संरक्षता अधिनियम 1956 की धारा 3(2) अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होते.

इसका मतलब ये हुआ कि बहुविवाह, विवाह, तलाक, दत्तकता, भरण-पोषण, उत्तराधिकार जैसे तमाम प्रावधान अनुसूचित जनजाति के लोगों पर लागू नहीं हैं. इसकी एक वजह ये भी है कि सैकड़ों जनजातियों और उप-जनजातियों के शादी, तलाक और उत्तराधिकार को लेकर अपने अलग रीति-रिवाज और परंपराएं हैं. 

2001 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला दिया था कि अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोग हिंदू धर्म मानते हैं, लेकिन ये हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2(2) के दायरे से बाहर हैं. लिहाजा इन्हें आईपीसी की धारा 494 (बहुविवाह) के तहत दोषी नहीं माना जा सकता. इसी तहत 2005 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जनजाति के लोग अपने समुदाय के रीति-रिवाजों के अनुसार शादी कर सकते हैं.

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तो क्या आदिवासी हिंदू नहीं हैं?

आदिवासी खुद को हिंदू नहीं मानते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि सारे आदिवासी खुद को हिंदू नहीं मानते हैं. एक बड़ा तबका ऐसा है जो खुद को हिंदू नहीं 'सरना' मानता है. 

सरना यानी वो लोग जो प्रकृति की पूजा करते हैं. झारखंड में सरना धर्म मानने वालों की बड़ी संख्या है. ये लोग खुद को प्रकृति का पुजारी बताते हैं. ये किसी ईश्वर या मूर्ति की पूजा नहीं करते. 

खुद को सरना धर्म का मानने वाले तीन तरह की पूजा करते हैं. पहला धर्मेश यानी पिता, दूसरा सरना यानी मां और तीसरा प्रकृति यानी जंगल. सरना धर्म मानने वाले 'सरहुल' त्योहार मनाते हैं. इसी दिन से इनका नया साल शुरू होता है. 

सरना धर्म मानने वाले खुद को हिंदुओं से अलग बताते हैं. पिछले साल फरवरी में एक कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था, 'आदिवासी कभी भी हिंदू नहीं थे, ना ही हैं. इसमें कोई कन्फ्यूजन नहीं है. हमारा सबकुछ अलग है. हम प्रकृति की पूजा करते हैं.'

ये सरना धर्म कोड क्या है?

ये सरना धर्म कोड क्या है? इसे ऐसे समझिए कि जनगणना रजिस्टर में धर्म का एक कॉलम होता है. इस कॉलम में अलग-अलग धर्मों का अलग-अलग कोड होता है. जैसे हिंदू धर्म का 1, मुस्लिम का 2, क्रिश्चियन धर्म का 3. ऐसे ही सरना धर्म के लिए अलग कोड की मांग हो रही है. अगर केंद्र सरकार सरना धर्म के लिए अलग से कोड की मांग को मान लेती है तो फिर हिंदू, मुस्लिम की तरह 'सरना' भी अलग धर्म बन जाएगा.

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झारखंड के आदिवासी वर्षों से अपने लिए अलग से 'सरना धर्म कोड' लागू करने की मांग कर रहे हैं. आदिवासियों की ये मांग 80 के दशक से चली आ रही है. 2019 में झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार आने के बाद ये मांग और तेज हो गई. सोरेन सरकार ने 'सरना धर्म कोड बिल' पास किया था. ये बिल अभी केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए अटका है. 

एक महीने पहले ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर कहा था कि हमने तो सरना धर्म कोड बिल पास कर दिया, लेकिन केंद्र सरकार नहीं कर रही. 

पिछले साल झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर कहा था कि 1931 में राज्य में आदिवासियों की आबादी 38.3% थी, जो 2011 में घटकर 26% पर आ गई. इसका एक कारण ये है कि काम के लिए लोग दूसरे राज्यों में चले जाते हैं और वहां इनकी गिनती आदिवासियों में नहीं होती. इसलिए, अगर इनको अलग कोड मिल जाए तो पूरी जनसंख्या की गिनती की जा सकती है.

लेकिन अलग धर्म की जरूरत क्यों?

ब्रिटिश इंडिया में 1871 में पहली बार जनगणना हुई थी. तब आदिवासियों के लिए अलग से धर्म कोड की व्यवस्था थी. 1941 तक ये व्यवस्था लागू रही. लेकिन आजादी के बाद 1951 में जब पहली जनगणना हुई तो आदिवासियों को शेड्यूल ट्राइब्स यानी ST यानी अनुसूचित जनजाति कहा जाने लगा. और जनगणना में 'अन्य' नाम से धर्म की कैटेगरी बना दी गई.

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2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 10.45 करोड़ से ज्यादा है. इनमें से 86.45 लाख आबादी झारखंड में है. झारखंड की 26 फीसदी से ज्यादा आबादी आदिवासी है. 

2011 की जनगणना में 79 लाख से ज्यादा लोग ऐसे थे, जिन्होंने धर्म के कॉलम में 'अन्य' भरा था, लेकिन साढ़े 49 लाख से ज्यादा लोग ऐसे थे जिन्होंने अन्य की बजाय 'सरना' लिखा था. और इन 49 लाख में से 42 लाख झारखंड के थे. सरना धर्म के लिए अलग से कोड की मांग करने वालों का तर्क है कि जब 45 लाख की आबादी वाले जैन धर्म के लिए अलग से कोड होता है, तो फिर 49 लाख लोगों ने सरना को धर्म चुना, तो फिर अलग धर्म मानने में क्या दिक्कत है?

झारखंड विधानसभा में जब 'सरना आदिवासी धर्म कोड बिल' पास हुआ था, तब सोरेन सरकार ने कहा था कि इससे आदिवासियों को पहचान मिलेगी और उनकी संस्कृति और धार्मिक आजादी की रक्षा की जा सकेगी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी सरना समुदाय से आते हैं.

 

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