केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन पिछले एक महीने से जारी है. दिल्ली से सटी सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान कड़ाके की ठंड में डटे हुए हैं और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. आंदोलन के बीच बीते दिन सरकार ने एक बार फिर किसानों को एक चिट्ठी लिखी और फिर से बातचीत का न्योता दिया. ऐसे में सरकार और किसानों के बीच बनती है या नहीं, इसपर हर किसी की नज़रें बनी हुई हैं.
सरकार ने अपनी चिट्ठी में क्या लिखा?
किसानों और सरकार के बीच कृषि कानून के मसले पर अबतक 6 से अधिक राउंड की बातचीत हो चुकी है. लेकिन किसी भी राउंड में चर्चा अंत तक नहीं पहुंची. जब किसानों ने कृषि कानून वापस लेने की मांग की तो बातचीत रुकी, लेकिन अब सरकार ने फिर चर्चा को आगे बढ़ाने की कोशिश की है.
गुरुवार को कृषि मंत्रालय की ओर से फिर किसानों को चिट्ठी लिखी गई, इसमें कहा गया कि किसान संगठनों द्वारा सभी मुद्दों का तर्कपूर्ण समाधान करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है. सरकार ने अपनी चिट्ठी में बीते दिनों लिखित संशोधन प्रस्ताव का जिक्र किया, साथ ही आवश्यक वस्तु अधिनियम पर सफाई दी. कृषि मंत्रालय के मुताबिक, जिन मुद्दों को किसान संगठनों ने उठाया उसी का जवाब लिखित में दिया गया लेकिन अन्य मुद्दे भी हैं तो चर्चा के लिए तैयार हैं.
सरकार ने अपनी चिट्ठी में स्पष्ट किया है कि नए कृषि कानूनों का MSP से मतलब नहीं है, ऐसे में इन कानूनों से MSP पर कोई असर नहीं होगा. साथ ही MSP पर किसी तरह की नई डिमांड रखने से सरकार ने आपत्ति जताई है और चर्चा की बात की है. सरकार ने इसके अलावा विद्युत संशोधन अधिनियम, पराली जलाने के कानूनों को लेकर चर्चा का रास्ता भी खुला रखा है.
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किसानों का अब क्या है रुख?
किसानों की ओर से पहले ही सरकार द्वारा भेजे गए लिखित संशोधनों को नकार दिया गया था, लेकिन अब जब बातचीत का न्योता फिर से भेजा गया है तो किसान उसपर मंथन करेंगे. शुक्रवार को दिल्ली से सटे सिंघु बॉर्डर पर सभी किसान संगठनों की बैठक होनी है.
हालांकि, किसानों ने इससे पहले भी स्पष्ट किया है कि वो सरकार के साथ बात तभी करेंगे जब चर्चा कृषि कानूनों को वापस लेने की होगी. किसान संगठनों ने बीते दिनों एक वेबीनार किया, जिसमें अपने मुद्दों को रखा. किसान नेताओं के मुताबिक, सिर्फ हरियाणा-पंजाब ही नहीं बल्कि आधा दर्जन से अधिक राज्यों के किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं.
गौरतलब है कि सरकार ने इससे पहले जो लिखित संशोधन प्रस्ताव भेजा था, उसमें MSP पर लिखित गारंटी का आश्वासन, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में SDM के अलावा स्थानीय कोर्ट जाने का प्रस्ताव जैसे विषयों पर चर्चा की बात की थी. हालांकि, किसान संगठनों ने किसी तरह के प्रस्ताव को नकारा और सिर्फ तीनों कानूनों की वापसी की मांग की.