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कृषि कानूनों के विरोध में सिंधु बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन जारी है. सरकार जल्द से जल्द किसानों का आंदोलन खत्म करवाना चाहती है, लेकिन किसान किसी हड़बड़ी में नहीं हैं. सिंधु बॉर्डर पर जमे किसानों का दावा है कि वे छह महीने का राशन-पानी लेकर पहुंचे हैं. सड़क पर किसानों के लिए लंगर लग रहा है. तरह-तरह के पकवान बन रहे हैं. सेवा में लगे मनोहर कहते हैं कि हम 1 साल तक यहां लंगर चला सकते हैं. ऐसे में अगर हम ये कहें कि सड़क रसोई बन गई है तो गलत नहीं होगा.
सिंधु बॉर्डर से पंजाब जाने वाली सड़क पर जब हमने हाइवे का जायजा लिया तो कई तस्वीरें हमको नजर आईं. सड़क के बीचों-बीच सब्जियों का पहाड़. आलू, गोभी, लौकी, टिंडे, टमाटर किसी चीज की कमी नहीं. राशन, पानी, आटा-चावल के बोरे लगे हुए हैं.
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बड़े-बड़े परातों में दूध गर्म होते हैं. दिन-रात पंक्ति में लंगर लग रही है और दाल, चावल, सब्जी के साथ-साथ खीर भी बन रही है. तरनतारन के बाबा जगतार सिंह पिछले 10 दिन से यह सेवा कर रहे हैं और उनके साथ धीरे-धीरे लोग मदद के लिए आगे आते जा रहे हैं.
जगतार सिंह का कहना है कि राशन खत्म होने का तो सवाल ही नहीं उठता. उनके पास ज्यादा राशन आ गया है. लोग लगातार मदद कर रहे हैं. अब तो मना करना पड़ रहा है. सेवा में लगे मनोहर कहते हैं कि हम 1 साल तक यहां लंगर चला सकते हैं. जब तक जरूरत होगी हम लोगों को खाना खिलाएंगे. हजारों-लाखों लोगों को हम खाना खिला चुके हैं. दिन-रात यहां पर लोग सेवा कर रहे हैं.
दिलचस्प बात यह है कि कई छात्र और युवा यहां पर दिन-रात बैठकर सब्जी काट रहे हैं और पराठे सेक रहे हैं. पटियाला से आई सुनील हो या फिर दिल्ली से आए रवि, सबके मन में बस एक भाव है वह है इंसानियत का. रवि रोज दिल्ली से आते हैं और फिर वापस जाते हैं. वो कहते हैं कि हम लोग यहां सिर्फ किसानों को खाना नहीं खिलाते, बल्कि आसपास जो लोग रह रहे हैं वह गांव वाले भी आकर प्रसाद का आनंद लेते हैं.
आज यह सड़क ही इनका घर है और यह लंगर ही इनकी रसोई. पटियाला से आए सुनील पूरे दिन मटर छीलते हैं और आटा गूंथते हैं. फिर भी थकते नहीं हैं. उन्होंने कहा कि किसान ना भूखा रहता है और ना किसी को भूखा रहने देता है. हम तब तक यहां से नहीं हटेंगे जब तक सरकार कृषि कानून वापस नहीं लेती.