Farm Laws Withdrawn: किसानों के सालभर तक चले आंदोलन के आगे आखिरकार मोदी सरकार को झुकना पड़ा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद शुक्रवार सुबह लोगों को संबोधित करते हुए तीनों कृषि कानूनों को आगामी संसद सत्र में वापस लेने का ऐलान कर दिया. दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों ने खुशी जताई है. हालांकि, एक्सपर्ट्स इस बात से हैरान हैं कि आखिरकार कैसे मोदी सरकार ने अपने किसी फैसले को पलट दिया. इससे पहले कई मौके आए, जब सड़कों से लेकर संसद तक खूब संग्राम हुआ, लेकिन सरकार टस-से-मस नहीं हुई.
नोटबंदी, तीन तलाक, CAA पर अड़ गई सरकार
केंद्र में जब से मोदी सरकार बनी है, तब से कई अहम फैसले लिए गए हैं. 8 नवंबर, 2016 को अचानक से 500-1000 रुपये के पुराने नोट बंद करने का ऐलान कर दिया गया, जिससे जनता को कुछ दिनों तक काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था. लोगों को खुद के ही रुपये निकालने के लिए कई दिनों तक बैंक और एटीएम की लाइनों में लगना पड़ा था. नोटबंदी से लोगों पर आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह का असर पड़ा.
हालांकि, उस समय भी केंद्र सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने खूब हमला बोला था, लेकिन सरकार अड़ गई और फैसले को न ही वापस लिया और न उस ओर चर्चा की. इसी तरह, तीन तलाक और सीएए पर भी विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर हमला बोला, पर केंद्र ने फैसले को वापस नहीं लिया.
कृषि कानूनों पर सरकार को क्यों झुकना पड़ा?
पिछले साल संसद से पारित हुए तीन कृषि कानूनों को लेकर सरकार लगातार निशाने पर रही. किसानों ने जब आंदोलन की शुरुआत की, तब शायद ही किसी को यकीन होगा कि एक साल तक यह आंदोलन चलता रहेगा. लेकिन तकरीबन सालभर तक आंदोलन चलने की वजह से सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान करना पड़ा. हालांकि, इसके पीछे कई अन्य वजहें भी हैं. राजनैतिक जानकार मानते हैं कि बीजेपी को अगले साल होने वाले पंजाब और यूपी विधानसभा चुनाव में बड़ा झटका लग सकता था.
चूंकि, आंदोलन में ज्यादातर किसान पश्चिमी यूपी और पंजाब के ही रहने वाले हैं, ऐसे में दोनों चुनावों में ज्यादा सीटें गंवाने का खतरा मंडरा रहा था. किसान संगठन भी महापंचायत करके लोगों से बीजेपी नेताओं के खिलाफ वोट देने की अपील करते रहे हैं. वहीं, हाल ही में हुए विधानसभा और लोकसभा उप-चुनाव में भी बीजेपी को हिमाचल प्रदेश की सभी सीटें गंवानी पड़ी थीं.