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नए कृषि कानूनों को रद्द किया जाना चाहिए, सरकार आग से खेल रही है: पी साईनाथ

नए कृषि कानूनों को लेकर चल रहे विवाद पर वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ ने इंडिया टुडे से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि इन कानूनों से केवल किसानों का नहीं बल्कि आम आदमी का भी बड़ा नुकसान होगा.

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पी साईनाथ (इंडिया टुडे)
पी साईनाथ (इंडिया टुडे)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पी साईनाथ ने इंडिया टुडे से की खास बातचीत
  • पूछा- समिति किसके साथ मध्यस्थता करेगी?
  • कृषि कानून के विरोध में किसानों का प्रदर्शन जारी है

केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 50 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. बुधवार को लोहड़ी पर्व के मौके पर किसानों ने नए कृषि कानूनों की प्रतियां जलाईं. साथ ही गणतंत्र दिवस के मौके पर 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड करने का ऐलान किया है. 
 
नए कृषि कानूनों को लेकर चल रहे विवाद पर वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ ने इंडिया टुडे से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि नए कृषि कानूनों को रद्द किया जाना चाहिए. इस मसले पर सरकार आग से खेल रही है. इन कानूनों से केवल किसानों का नहीं बल्कि आम आदमी का भी बड़ा नुकसान होगा. 

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा कृषि कानूनों पर रोक लगाने और अदालत द्वारा नियुक्त समिति को मौका देने का समय है? इस सवाल के जवाब में पी साईनाथ ने कहा कि कोर्ट ने किसानों की बात सुनने और सरकार को सिफारिशें देने के लिए एक समिति का गठन किया है. पहला सवाल यह है कि समिति किसके साथ मध्यस्थता करेगी? किसानों ने समिति को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. वहीं, समिति के सदस्य सरकार को समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध पाए गए हैं. क्या कमेटी दिल्ली के सिंघु या टिकरी बॉर्डर तक जा पाएगी?

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फिर कौन तय करेगा? क्या किसान संघ अकेले ही हुक्म चलाएंगे ? इस पर पी साईनाथ ने कहा कि मध्यस्थता का मूल सिद्धांत कहता है कि मध्यस्थ सभी पक्षों के लिए स्वीकार्य होना चाहिए, विशेष रूप से आंदोलनकर्ता को. मैं समिति के गठन के पीछे के पूरे विचार पर सवाल उठा रहा हूं. ये कानून असंवैधानिक हैं. सरकार एक कदम पीछे हट सकती है. गेंद अब सरकार के पाले में है. 

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क्या जनसुनवाई एक समाधान है?

इस सवाल के जवाब में पी साईनाथ ने कहा कि सरकार आग से खेल रही है. तीनों कानून को निरस्त किया जाना चाहिए. हां, हम अन्य लोकतंत्रों से सीख सकते हैं जहां तक ​​सार्वजनिक सुनवाई का संबंध है.

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